USA Israel Relation: सोमवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए गाजा युद्धविराम प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई. चीन द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर इजरायल के पारंपरिक सैन्य साझेदार अमेरिका ने दूरी बनाई जिस कारण यह प्रस्ताव पारित होने में सफल रहा. इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राफा में इजरायली कार्रवाई के संभावित विकल्पों पर बाइडन द्वारा बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में अपने प्रतिनिधिमंडल को वॉशिंगटन जाने से मना कर दिया. दोनों देशों के ताजा फैसलों पर यदि ध्यान दिया जाए तो यह उनके संबंधों में गिरावट की ओर इशारा करता है. वॉशिंगटन का यूएन में गाजा सीजफायर पर दूरी बनाना तेल अवीव के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. इससे पहले यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में पेश गाजा युद्धविराम प्रस्तावों पर अमेरिका अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर उसे पास होने से रोक देता था. जिसका फायदा उठाकर इजरायल फिलिस्तीनी इलाकों में सैन्य कार्रवाई करता था. जानकारों के मुताबिक, इस प्रस्ताव के बाद भी इजरायल द्वारा जमीनी हमलों में शायद ही कोई फर्क पड़े लेकिन ताजा हालातों ने अमेरिका और इजरायल को अपने संबंधों को लेकर नए सिरे से सोचने पर मजबूर जरूर कर दिया है.
अमेरिका का ताजा फैसला इजरायल के लिए हैरान करने वाला है क्योंकि हमास के साथ जंग शुरु होने के बाद वॉशिंगटन की ओर से उसे अरबों डॉलर की सहायता और युद्धक सामग्री प्राप्त हुई. अमेरिकी प्रशासन लंबे अरसे से इजरायली सरकार से कहता आ रहा था कि वह गाजा में जंग के तरीके बदलने पर विचार करे. इसके अलावा वॉशिंगटन पर अंतरराष्ट्रीय दवाब भी पड़ रहा था कि वह इजरायल को गाजा में सैन्य कार्रवाई से रोके और दीर्घकालिक शांति के समाधान का ठोस रास्ता निकाले. महीनों पहले अमेरिका ने अपने एक बयान में कहा था कि इजरायली कार्रवाई में आतंकियों को निशाना बनाने की एवज में आम फिलिस्तीनियों की मौतों से राष्ट्रपति जो बाइडन खासा चिंतित हैं. सोमवार को अमेरिकी अधिकारियों ने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि सात अक्टूबर के हमास हमले के बाद इजरायल ने बड़ी संख्या में आम फिलिस्तीनियों को भी नुकसान पहुंचाया है और उन्हें मार रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने इजरायली बमबारी को भयानक करार दिया था. दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाके में इस तरह के हमले बेहद भयावह हैं. इजरायल को अपनी रणनीतियों पर विचार करना होगा उसे आतंकियों और आम नागरिकों में अंतर करना होगा नहीं तो पूरा इलाका तबाह हो जाएगा. इस मानवीय तबाही के घाव को भरना बेहद मुश्किल होगा. गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, इजरायली कार्रवाई में अब तक 32,333 लोगों की जान जा चुकी है. लाखों लोग विस्थापित होकर शरणार्थी शिविरों में अपना जीवन गुजार रहे हैं. हालांकि इस जंग के कई पहलू हैं एक ओर इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जंग में इस्तेमाल की गई रणनीति को लेकर सवालों के घेरे में हैं. हमास के चंगुल से बंधकों की रिहाई और बड़ी संख्या में इजरायली सैनिकों की मौतों ने उनकी समस्या को आग में घी डालने जैसा काम किया है. इजरायली जनता ने भी उनके खिलाफ सड़कों पर उतर विरोध जताया है और युद्धकालीन रणनीति पर सवाल उठाए हैं. बेंजामिन चाहकर भी युद्ध रोकने की स्थिति में नहीं है इसका सबसे अहम कारण है उनकी सरकार के धुर दक्षिणपंथी लोगों का दबाव जो युद्ध जारी रखना चाहते हैं और गाजा के एक बड़े हिस्से को कब्जाने की मंशा रखते हैं.
यूएन सिक्योरिटी काउंसिल से पारित गाजा युद्धविराम प्रस्ताव तकनीकी रुप से देखा जाए तो बाध्यकारी है लेकिन इजरायल के हटी रवैये को देखते हुए यह मुश्किल है कि वह अपनी सैन्य कार्रवाई में कोई कमी करे. रिपोर्ट के अनुसार, यूएन चाहकर भी इजरायल को युद्ध रोकने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल द्वारा प्रस्ताव की शर्तों को न मानने की स्थिति में इस बात की संभावना बेहद कम है कि अमेरिका इजरायल के खिलाफ किसी प्रकार के प्रतिबंधों की घोषणा करे. सोमवार को पास हुए गाजा युद्धविराम प्रस्ताव में तत्काल युद्धविराम के साथ -साथ शेष सभी इजराइली बंधकों की तत्काल रिहाई का आह्वान किया गया है.
इजरायल और अमेरिकी मामलों के जानकारों का कहना है कि गाजा जंग को लेकर वॉशिंगटन और तेल अवीव में असंतोष लंबे समय से कायम था. अमेरिका के ताजा फैसले ने दोनों देशों के संबंधों में आई गिरावट को सार्वजनिक कर दिया है. इजरायल ने हमास के साथ जारी जंग के बीच पेश किए गए तमाम युद्धविराम प्रस्तावों का दृढ़ता से विरोध किया है और उन पर आपत्ति जताई है. इजरायल ने तर्क देते हुए कहा कि अपनी सैन्य कार्रवाई को रोककर हमास को किसी अन्य हमले का मौका नहीं दे सकता है. यदि वह ऐसा करता है तो हमास के खात्मे का उसका उद्देश्य ही कमजोर हो जाएगा. इजरायली सरकार ने हमास के पूर्ण खात्मे तक जंग का आह्नान किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका का ताजा फैसला यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में इजरायल का वीटो रक्षक बनने की भूमिका में बदलाव प्रदर्शित करता है. इससे पहले अमेरिका उन प्रस्तावों पर वीटो कर देता था जिन्हें इजरायल अपने लिए खतरा मानता था. इससे यह पता चलता है कि दोनों देशों के बीच भारी तनाव है और बाइडन-बेंजामिन प्रशासन के बीच विश्वास की जंजीरें टूट रही हैं. मध्य पूर्व में अमेरिका के प्रमुख वार्ताकार रहे डेविड मिलर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि यदि गाजा संकट को सही तरीके से प्रबंधित नहीं किया गया तो यहां के हालात बद से बदतर हो जाएंगे जिसे संभालना किसी भी शक्ति के लिए मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि गाजा में इजरायल द्वारा गिराए जा रहे अंधाधुंध बम अमेरिकी निर्मित हैं.
मिडिल ईस्ट में अमेरिका के पूर्व वार्ताकार डेविड मिलर के मुताबिक, बेंजामिन इस समय दो ताकतों के बीच फंस गए हैं. एक तरह व्हाइट हाउस है जो युद्ध की जल्द से जल्द समाप्ति चाहता है. बाइडन किसी भी सूरत में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं. बाइडन का मानना है कि अमेरिका द्वारा इसी तरह यदि इजरायल का समर्थन जारी रहा तो इस बात की अच्छी भली संभावना है कि उन्हें चुनावों में मुंह की खानी पड़ जाए. वहीं, दूसरी ओर उन्हें धुर दक्षिणपंथी गठबंधन के मंत्रियों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है जिस कारण उनकी सरकार सत्ता में है. इनका नाम है इतामार बेन -ग्विर और वित्त मंत्री बेलेजल स्मोट्रिच. यह दोनों ही हमास के खात्मे तक जंग रोकने का विरोध कर रहे हैं. दक्षिणपंथी नेताओं के समर्थकों का कहना है कि इजरायल तब तक अपनी जीत का दावा नहीं कर सकता जब तक वह हमास के कमांडर याह्या सिनवार को ठिकाने नहीं लगा देता.
अमेरिका के रुख में बदलाव के बाद इजरायली पीएमओ ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे भड़काऊ कदम बताया. बेंजामिन के कार्यालय ने अपने बयान में कहा कि ऐसा करके अमेरिका ने आतंकियों के खिलाफ इजरायल के युद्धक अभियान को नुकसान पहुंचाया है. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राफा में इजरायली कार्रवाई के संभावित विकल्पों पर बाइडन द्वारा बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में अपने प्रतिनिधिमंडल को वॉशिंगटन जाने से भी मना कर दिया. नेतन्याहू के इस फैसले पर अमेरिका ने चिंता जताई है. व्हाइट हाउस के स्पोक्सपर्सन जॉन किर्बी ने कहा कि हम इस फैसले से बेहद निराश हैं कि इजरायली दल बातचीत के लिए वॉशिंगटन नहीं आ रहा है. अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश ने इजरायल का इतनी मजबूती के साथ समर्थन नहीं किया है. उन्होंने कहा कि यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में मतदान से दूरी के बाद भी अमेरिका की इजरायल के प्रति नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है.