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कोटा... आरक्षण... नहीं, इस एक शब्द के कारण बांग्लादेश में भड़के युवा! सड़कों पर बहने लगा खून

Bangladesh Quota Protests: बांग्लादेश की राजधानी समेत आसपास के शहरों में इन दिनों युवा सड़कों पर हैं. कहा जा रहा है कि कोटा...आरक्षण को लेकर युवा सड़कों पर हैं और शेख हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन क्या यही वजह है, जिसके कारण यूथ सड़कों पर हिंसा करने में जुटे हैं? एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये सब असली वजह नहीं है.असली वजह एक शब्द का यूज है, जिसका प्रयोग खुद प्रधानमंत्री हसीना ने किया था.

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Edited By: India Daily Live
Bangladesh Protests
Courtesy: Social Media

Bangladesh Quota Protests: जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने नौकरी में आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को 'रजाकार' कहा, तो गुस्साए छात्र और उग्र हो गए और हिंसा में शामिल हो गए. कुछ सप्ताह पहले बांग्लादेश में कोटा सिस्टम के खिलाफ छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ है, जो 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वालों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% तक आरक्षण देता है. अब तक बांग्लादेश में हिंसा से जुड़ी घटनाओं में 105 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

सिविल सेवा नौकरियों के आवंटन को लेकर हुई झड़पों में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने और सैकड़ों के घायल होने के बाद शनिवार को पुलिस ने बांग्लादेश में कड़ा कर्फ्यू लगा दिया और देखते ही गोली मारने का आदेश दिया. सैन्य बलों ने राजधानी के कई हिस्सों में गश्त की. सवाल ये कि आखिर जिस 'रजाकार' शब्द का यूज प्रधानमंत्री शेख हसीना ने किया, आखिर उसका मतलब क्या होता है, आखिर एक शब्द ने युवाओं को इतना उग्र कैसे कर दिया?

आखिर रजाकार शब्द का मतलब क्या होता है?

एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'रजाकार' शब्द को बांग्लादेश में काफी अपमानजनक माना जाता है. ये शब्द लंबे समय से उन बांग्लादेशियों के लिए प्रयोग किया जाता रहा है, जिन्होंने पाकिस्तानी सरकार का साथ दिया था, जिसे 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में मुक्तिजोद्धाओं ने हटा दिया था, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र का जन्म हुआ.

बांग्लादेश में जब किसी को रजाकार कहा जाता है तो उस व्यक्ति को अक्सर देशद्रोही के बराबर माना जाता है. बीबीसी बांग्ला की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ये शब्द 1971 में अस्तित्व में आया और इसका इस्तेमाल उन व्यक्तियों के लिए किया गया जो पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को मुक्तिजोधा विद्रोहियों के घरों तक ले गए थे, जो बांग्लादेश में उर्दू को थोपे जाने के खिलाफ लड़ रहे थे और बंगाली को देश की आधिकारिक भाषा बनाए रखने के लिए लड़ रहे थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि रज़ाकार कैंप की स्थापना सबसे पहले बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के खुलना जिले के अंसार अली रोड पर हुई थी, जिसमें 100 पाकिस्तान समर्थक बांग्लादेशी शामिल थे. रज़ाकारों की स्थापना में जमात-ए-इस्लामी नेता ए.के.एम. यूसुफ़ की अहम भूमिका थी. पाकिस्तान सेना के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ ने रजाकार कानून भी पेश किया था, जिसके तहत रजाकारों को मासिक वजीफा दिया जाता था.

रजाकारों की संख्या बढ़कर अब 50 हजार हुई

बीबीसी बांग्ला ने अपनी रिपोर्ट में विशेषज्ञों का हवाला देते हुए कहा कि रजाकारों की संख्या बढ़कर 50,000 हो गई है. ये रजाकार उन तीन मिलिशिया समूहों में से एक हैं जिन्हें पाकिस्तानी सरकार ने बांग्लादेश में रहने वाले बंगालियों की नागरिक स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाया था, जो पाकिस्तानी शासन के विरोधी थे. रजाकारों, अल-बद्र और अल-शम्स को कट्टरपंथी इस्लामवादियों का समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने बांग्लादेश में बलात्कार, यातना, बंगाली हिंदुओं और मुसलमानों के सामूहिक निर्वासन जैसे जघन्य युद्ध अपराध किए. उन्होंने बुद्धिजीवियों, स्वतंत्रता सेनानियों और कुछ मामलों में निर्दोष नागरिकों को भी निशाना बनाया।

रजाकारों के सदस्यों की पहचान बांग्लादेश की आजादी के बाद की गई थी और पिछले कुछ दशकों में उन्हें युद्ध अपराध न्यायाधिकरणों और समितियों के समक्ष पेश किया गया तथा जेल, आजीवन कारावास और कुछ मामलों में मृत्युदंड की सजा दी गई. अमजद हुसैन हौलादार, सहर अली सरदार, अतीयार रहमान, मोताचिम बिल्लाह, कमाल उद्दीन गोल्डर और नज़रुल इस्लाम को 2022 में बांग्लादेश में मौत की सजा सुनाई गई. ये सभी रजाकार सेना के सदस्य हैं और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं.

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से भी जुड़ा है रजाकार शब्द का इतिहास

बांग्लादेश के चटगांव यूनिवर्सिटी में बंगबंधु चेयर के डॉक्टर मुंतसिर मामून ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि रजाकार शब्द की उत्पत्ति 'रेजाकार' शब्द से हुई है और इसका इतिहास तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से जुड़ा है, जो भारत की आजादी से पहले एक रियासत थी. ये रेजाकार हैदराबादी राज्य के होमगार्ड और अर्धसैनिक स्वयंसेवी बल थे, जिन्होंने भारत के साथ एकीकरण का विरोध किया, लेकिन ऑपरेशन पोलो में भारतीय सेना के हाथों हार गए.

अखबार से बात करते हुए मामून ने यह भी कहा कि बांग्लादेश के इन रजाकारों में 'बिहारियों और गरीब लोग शामिल हैं' और वे 'बांग्लादेश की आजादी' के खिलाफ हैं. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में येलेना बिबरमैन की पुस्तक ' गैम्बलिंग विद वायलेंस: स्टेट आउटसोर्सिंग ऑफ वार इन पाकिस्तान एंड इंडिया' के अंशों का भी हवाला दिया है, जहां लेखक ने एक पूर्व रजाकार का हवाला देते हुए कहा है कि रजाकार 'गरीब और अशिक्षित सैनिक थे, जो धार्मिक मकसद से पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के लिए लड़ते थे और उनका मानना ​​था कि वे इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं.

हसीना ने क्या कहा और प्रदर्शनकारियों की क्या प्रतिक्रिया रही?

शेख हसीना का 'रजाकार' बयान पिछले रविवार (14 जुलाई) को आया, जिसमें उन्होंने कहा कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को (कोटा) लाभ नहीं मिलेगा, तो किसे मिलेगा? रजाकारों के पोते-पोतियों को? इसके बाद 'तुई के? अमी के? रजाकार, रजाकार!' जैसे विरोध गीत सामने आए थे, जो मूल तुमी के अमी के, बंगाली, बंगाली (तुम कौन हो? मैं कौन हूँ? बंगाली, बंगाली!) का बांग्ला वर्जन था. मूल वर्जन को प्रदर्शनकारियों ने 2013 में युद्ध अपराध करने के दोषी बांग्लादेशी इस्लामवादी नेता अब्दुल कादर मोल्लाह को फांसी देने के लिए गाया था.

प्रदर्शनकारियों का दावा है कि हसीना असहमति को दबाने के लिए उन्हें रजाकार करार दे रही हैं. इस शब्द ने पहले भी कई अन्य मुद्दे पैदा किए हैं. 2019 में, हसीना सरकार ने 10,780 से अधिक रजाकारों के नामों की एक सूची जारी की, जिन्होंने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सरकार के साथ साजिश रची थी. सूची, जिसे बाद में बांग्लादेश सरकार ने रद्द कर दिया, में तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) के मुख्य अभियोजक गुलाम आरिफ टीपू का नाम शामिल था, जो स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते हैं. बांग्लादेश सरकार ने कहा कि 2024 में रजाकार सूची में दो श्रेणियां होंगी - एक, जो स्वेच्छा से समूह में शामिल हुए और दो, जो जबरन शामिल हुए।

हसीना ने छात्रों की निंदा की, कहा- आप नहीं जानते...

शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों पर भी निशाना साधा और कहा कि छात्र नहीं जानते कि 1971 में लोगों ने कितना दर्द झेला था. उन्होंने यह भी कहा कि यह गीत गाने वाली महिला छात्र प्रदर्शनकारियों को पता होना चाहिए कि मुक्ति संग्राम के दौरान रजाकारों ने महिलाओं के साथ क्या किया था?

हसीना ने प्रोथोम अलो से कहा कि कल जब मैंने सुना कि रुकय्या हॉल के छात्र खुद को रजाकार कह रहे हैं तो मुझे दुख हुआ. क्या उन्हें पता है कि 25 मार्च 1971 को वहां क्या हुआ था? करीब 300 लड़कियों को मार दिया गया और 40 लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया और उन्हें पाकिस्तानी शिविरों में ले जाया गया.

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें खुद को रजाकार कहने में शर्म नहीं आती...उन्हें नहीं पता कि पाकिस्तानी सेना और रजाकार वाहिनी ने देश में किस तरह से अत्याचार किए हैं, उन्होंने अमानवीय अत्याचार और सड़कों पर पड़ी लाशें नहीं देखीं? अवामी लीग के एक समर्थक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हसीना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान रजाकार शब्द का प्रयोग 'व्यंग्यात्मक रूप से' किया और प्रदर्शनकारी छात्रों ने संदेश को गलत समझ लिया.