मानवाधिकार दिवस के अवसर पर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने एक भावनात्मक और गंभीर संदेश साझा किया है, जिसमें उन्होंने सीरिया की जेलों और यातना शिविरों में हो रही अमानवीयता को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए जेलेंस्की ने लिखा, इस साल मानवाधिकार दिवस पर जो तस्वीरें सीरियाई जेलों और यातना शिविरों से सामने आई हैं, वे दिल को झकझोर देने वाली हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये शिविर असद के शासन के तहत वर्षों से चले आ रहे थे और वहां हर रोज हिंसा, प्रताड़ना और यातना का शिकार होने वाले लोग कोई और नहीं, बल्कि निर्दोष नागरिक थे, जिनमें पुरुष और महिलाएं शामिल थे.
जेलेंस्की ने विशेष रूप से उन लोगों का जिक्र किया जिन्होंने सीरिया की सरकार के अत्याचारों के कारण अपमान, पिटाई, प्रताड़ना और यौन हिंसा का सामना किया. उनका कहना था कि "हज़ारों लोग इस हिंसा की फैक्ट्री से होकर गुज़रे हैं", और यह दिखाता है कि सीरियाई शासन ने किस हद तक लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है.
असद और पुतिन की तानाशाही का एक समान चेहरा
जेलेंस्की ने यह भी कहा कि असद की सरकार दशकों से हिंसा और दमन पर आधारित रही है. उन्होंने इसे पुतिन के शासन से भी जोड़ा, और कहा कि रूस और सीरिया में तानाशाही का चेहरा एक जैसा है. जेलेंस्की ने स्पष्ट रूप से यह दावा किया कि असद जैसे तानाशाह पुतिन जैसे तानाशाह के बिना जीवित नहीं रह सकते और यह दिखाता है कि दोनों ही शासक अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे वह हिंसा हो, यातना हो, या मानवाधिकारों का उल्लंघन हो.
यूक्रेनी राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उनके देश में रूसी आक्रमणकारियों के कब्ज़े वाले क्षेत्रों में भी ऐसी ही जेलें और यातना शिविर देखने को मिली हैं. इसका मतलब है कि सीरिया के शासक असद का शासन केवल एक उदाहरण नहीं है, बल्कि पुतिन के नेतृत्व में रूस द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का भी यही पैटर्न है. जेलेंस्की ने यह भी बताया कि सीरिया में असद के शासन की असफलता के बाद वह भागकर रूस में शरण लेने गए थे, और अब पुतिन उनकी मदद से अपनी सत्ता को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.
एकजुटता की आवश्यकता
जेलेंस्की ने इस बात पर जोर दिया कि असद और पुतिन जैसे तानाशाही शासनों का मुकाबला करने के लिए दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों को एकजुट होना होगा. उनका कहना था कि जब तक दुनिया इन अत्याचारों के खिलाफ एकजुट होकर नहीं खड़ी होगी, तब तक ऐसे शासकों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो सकती. उन्होंने विश्व समुदाय से अपील की कि वे ऐसे शासनों के खिलाफ खड़े हों और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों को जवाबदेह ठहराएं.