पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार, अमेरिका के साथ अभूतपूर्व स्तर के सहयोग में शामिल होने को तैयार है, लेकिन साथ ही साथ भारत सरकार को 'फंसने और त्याग दिए जाने' का भी 'डर' है. इसका मुख्य कारण चीनी आक्रमकता है. ये बात पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) एचआर मैकमास्टर ने अपनी नई किताब में कही है.
डोनाल्ड ट्रंप सरकार के दौरान नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के रूप में अपने कार्यकाल का किस्सा बताते हुए मैकमास्टर ने अपनी किताब 'ऐट वॉर विद अवरसेल्व्स' में कहा है कि ट्रंप की ओर से बर्खास्त किए जाने से एक दिन पहले उन्होंने भारत के एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात की थी.
मैकमास्टर ने अपनी किताब में लिखा कि मुझे नौकरी से निकाले जाने से एक दिन पहले, मैं अजीत डोभाल से क्वार्टर 13, फोर्ट मैकनेयर में डिनर के लिए मिला था. अपने देश के खुफिया ब्यूरो के पूर्व डायरेक्टर के रूप में अपनी छवि के विपरीत वे बातचीत में झुकते थे, बोलते समय अपना सिर एक तरफ झुकाते थे और सबसे सामान्य विषयों पर चर्चा करते समय भी धीमी आवाज़ का इस्तेमाल करते थे.
उन्होंने कहा कि डिनर के बाद जब हम टहल रहे थे, तब उन्होंने धीमी आवाज में पूछा कि हम कब तक साथ काम करेंगे? डोभाल को ये समझने में देर नहीं लगी कि मैं ट्रंप प्रशासन से अलग हो रहा हूं. सीधे जवाब दिए बिना, मैंने उनसे कहा कि यह एक विशेषाधिकार है और विश्वास व्यक्त किया कि निरंतरता बनी रहेगी.
मैकमास्टर लिखते हैं कि वे एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह जानते थे कि डोभाल ने सीधे तौर पर बात की. डोभाल ने उनसे पूछा कि आपके जाने के बाद अफ़गानिस्तान में क्या होगा? अमेरिकी जनरल लिखते हैं कि डोभाल को यह पता था, लेकिन कभी-कभी आप अपने सबसे करीबी विदेशी समकक्षों के साथ भी पूरी तरह से ईमानदार नहीं हो सकते. वास्तव में, मैं डोभाल की चिंता को समझता था और मुझे पता था कि मेरा जवाब आश्वस्त करने वाला नहीं था.
मैकमास्टर ने अपनी किताब में 14 से 17 अप्रैल, 2017 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की अपनी यात्रा के बारे में डिटेल से लिखा है. इस दौरान उन्होंने नई दिल्ली में तत्कालीन विदेश सचिव एस जयशंकर, डोभाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. डोभाल के जनपथ स्थित आवास पर हुई अपनी मुलाकात के बारे में मैकमास्टर लिखते हैं कि बातचीत आसान थी, क्योंकि डोभाल, जयशंकर और मुझे विश्वास था कि हमारे पास अपने आपसी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए साथ मिलकर काम करने का एक शानदार अवसर है. उस समय जयशंकर विदेश सचिव थे और सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं.
मैकमास्टर लिखते हैं कि हमने अफ़गानिस्तान में युद्ध और परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान से भारत को होने वाले ख़तरे के बारे में बात की, लेकिन जयशंकर और डोभाल ने मुख्य रूप से चीन की बढ़ती आक्रामकता के बारे में बात की. शी जिनपिंग की आक्रामकता के कारण अजीत डोभाल और एस जयशंकर सहयोग के लिए तैयार थे.
अपनी यात्रा के अंतिम दिन, मैकमास्टर ने पीएम मोदी से उनके आवास पर मुलाकात की. पूर्व NSA लिखते हैं कि मोदी ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया. ये स्पष्ट था कि हमारे संबंधों को गहरा करना और विस्तारित करना उनके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता थी. उन्होंने भारत की कीमत पर अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए चीन के बढ़ते आक्रामक प्रयासों और क्षेत्र में उसकी बढ़ती सैन्य उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की.
मैकमास्टर कहते हैं कि मोदी ने सुझाव दिया कि अमेरिका, भारत, जापान और समान विचारधारा वाले साझेदारों को चीन की 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के विपरीत, सभी को लाभ पहुंचाने के लिए एक समावेशी प्रयास के रूप में एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की अवधारणा पर जोर देना चाहिए.