Afghanistan Women Activist in Pakistan: तालिबान के शासन के खिलाफ आवाज उठाने वाली अफगान महिला एक्टिविस्ट्स आज पाकिस्तान में छुपकर अपनी जिंदगी बिता रही हैं. ये महिलाएं, जिन्होंने अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था, अब पाकिस्तान में भी सुरक्षा के संकट से जूझ रही हैं. आइए आज इन महिलाओं के बारे में जानते हैं.
अफगानिस्तान से भागना पड़ा
जहरा मूसवी, एक महिला अधिकार कार्यकर्ता, जिन्होंने तालिबान शासन के खिलाफ अफगानिस्तान में कई सड़कों पर प्रदर्शन किए. 2022 में पाकिस्तान भागी थीं. तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में सत्ता संभालने के बाद से महिलाओं और लड़कियों पर कई पाबंदियां लगा दी थीं. मूसवी का कहना है कि उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरकर आवाज उठाई, लेकिन तालिबान के बढ़ते दबाव ने उन्हें अफगानिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.
पाकिस्तान में मूसवी और उनके जैसे कई अन्य अफगान महिला एक्टिविस्ट्स के लिए स्थिति और भी मुश्किल हो गई है. मूसवी ने DW से कहा, "मैं और मेरी बेटी पाकिस्तान में रह रहे हैं, लेकिन यहाँ रहने के लिए जरूरी दस्तावेज प्राप्त करना मुश्किल हो गया है." 22 फरवरी 2023 को मूसवी और उनकी बेटी को पाकिस्तान पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, और एक डिटेंशन कैंप में डाल दिया गया था. हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दबाव के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
हमेशा बना रहता है जान का खतरा
जमिला अहमदी, एक और अफगान महिला एक्टिविस्ट, भी पाकिस्तान में छुपकर रह रही हैं. उनका कहना है कि तालिबान के खिलाफ उनकी गतिविधियाँ और उनके द्वारा किए गए रिपोर्टिंग कार्य ने उन्हें खतरों में डाल दिया है. "अगर मुझे फिर से अफगानिस्तान लौटाया गया, तो यह मेरी मौत का कारण बन सकता है," अहमदी ने DW को बताया. अहमदी ने बताया कि 2021 में तालिबान के हमले में उन्हें गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन उनका संघर्ष अब भी जारी है.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंधों में हालिया वर्षों में कड़ी दरार आई है, खासकर तालिबान के सत्ता में आने के बाद. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान सीमा पार आतंकवादी संगठन TTP को नियंत्रित करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके कारण पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को वापसी के लिए दबाव डाला है.
2023 के अंत तक पाकिस्तान ने 800,000 अफगान शरणार्थियों को वापस अफगानिस्तान भेज दिया है. इस अभियान से महिला एक्टिविस्ट्स जैसे मूसवी और अहमदी पर विशेष दबाव बढ़ गया है. इन एक्टिविस्ट्स के लिए पाकिस्तान में सुरक्षित जीवन सुनिश्चित करना अब एक बड़ी चुनौती बन गया है.