Swiss Peace Summit में 80 देशों ने एक साथ शांति के लिए उठाई आवाज, अब यूक्रेन में रुकेगी रूस की तबाही?

Swiss Peace Summit: स्विट्जरलैंड के ब्यु्र्गेनसटॉक में दो दिवसीय स्विस पीस सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस आयोजन में 92 देश और आठ अंतरराष्ट्रीय संगठनों ेने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. भारत ने भी इस सम्मेलन में अपना प्रतिनिधि भेजा था. लेकिन भारत ने साझा बयान पर अपने हस्ताक्षर नहीं किए. 80 देशों ने साझा बयान का समर्थन किया.

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Swiss Peace Summit: रूस और यूक्रेन के बीच बीते 2 सालों से चल रहे युद्ध को रोकने के लिए स्विस पीस सम्मेलन का आयोजन हुआ. स्विट्जरलैंड के ब्यु्र्गेनसटॉक में हुए इस शांति सम्मेलन में करीब 80 देशों शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. भारत, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात ने हस्ताक्षर से दूरी बनाई. साझा बयान में कहा गया कि हम मानते हैं कि शांति के लिए सभी पक्षों का शामिल होना और उनमें आपसी संवाद होने की जरूरत है.

इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों का अलग-अलग रुख रहा. सम्मेलन में शामिल होने वाले अधिकतर देश रूस का विरोध करने वाले थे. यूक्रेन का समर्थन करने वाले देशों ही इस सम्मेलन में प्रमुखता से भाग लेने पहुंचे थे. यहां ये बात गौर करने वाली है कि जब दो देश युद्ध कर रहे हैं वही टेबल पर साथ नहीं बैठेंगे तो समझौता किससे होगा? शांति की बहाली कैसी होगी? ये अपने आप में बड़ा सवाल है. 

सम्मेलन में भारत का रुख

भारत की ओर से पवन कुमार इस शांति सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचने थे. भारत की ओर से इस शांति सम्मेलन में कहा गया कि यूक्रेन की चिंता को भारत भी साझा करता है. केवल संवाद और कूटनीति के जरिए ही स्थाई शांति संभव है. शांति के लिए सभी पक्षों को साथ लाने की आवश्यकता है. दोनों पक्षों को एक ही विकल्प स्वीकार हो तभी शांति आ सकती है.

सम्मेलन में इतने देशों ने की शिरकत

इस सम्मेलन में रूस नहीं शामिल हुआ. 15 जून से शुरू हुए इस दो दिवसीय शांति सम्मेलन में 92 देश और आठ अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल हुए थे. इस शांत सम्मेलन से युद्ध रुकेगा या नहीं यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

इस सम्मेलन को लेकर जानकारों का कहना है कि इस तरह के मंच पर रूस और उसके साथी देशों को लाना जरूरी है. रूस या फिर उसके सहयोगी देशों के शामिल हुए बगैर ऐसे सम्मेलन का सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा. जो देश रूस का विरोध करते आ रहे हैं वह इस मंच पर साथ आ रहे हैं. जबकि होना ये चाहिए कि रूस का साथ दे रहे देशों को एक साथ आना चाहिए.  

महत्वाकांक्षी नहीं रहा यह सम्मेलन

यूक्रेन का लगभग एक चौथाई हिस्सा रूस के कब्जे में है. यूक्रेन का कहना है कि इस युद्ध में अब तक 20 हजार बच्चों को रूस या फिर उसके कब्जे वाले इलाके में ले जाया गया है. यह शांति सम्मेलन जिस लक्ष्य को लेकर आयोजित किया गया था कहीं न कहीं वह उस लक्ष्य को भेदने में बहुत महत्वाकांक्षी नहीं रहा.

रूस राष्ट्रपति ने सम्मेलन के पहले दिन कहा कि हम कूटनीति को एक मौका देने में सफल हुए हैं. वहीं, ऑस्ट्रियाई चांसलर ने कहा कि ऐसे सम्मेलनों में भारत, चीन, ब्राजील जैसे देशों की मौजूदगी जरूरी है. उन्होंने कहा कि इस बैठक में भारत और ब्राजील ने अपने प्रतिनिधि भेजे जो भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं.

इस सम्मेलन में भारत को लाने के लिए स्विट्जरलैंड ने बहुत कोशिश की. फरवरी 2024 में स्विट्जरलैंड के विदेश मंत्री इंग्यांसियो कासिस दिल्ली पहुंचे थे.