NCERT Controversy: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की बदलाव की गई किताबों को लेकर चल रहा विवाद सोमवार को उस वक्त और बढ़ गया, जब जाने-माने शिक्षाविद योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर ने परिषद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी. एनसीईआरटी की ओर से कथित रूप से उनकी सहमति के बिना उनके नाम से नई किताबें पब्लिश करने का आरोप है.
यादव और पलशीकर ने एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी को पत्र लिखकर किताबों में किए गए नवीनतम बदलावों पर कड़ा ऐतराज जताया है. उनका कहना है कि एनसीईआरटी को नैतिक और कानूनी रूप से किताबों को खराब करने और साफ-साफ इनकार के बावजूद उनके नामों के तहत पब्लिश करने का कोई अधिकार नहीं है.
बाजार में अब उपलब्ध बदलाव की गई किताबों में कथित तौर पर बीजेपी की 'रथयात्रा' और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद के घटनाक्रम के संदर्भों को कम से कम किया गया है, जबकि विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया गया है.
बदलाव की गई कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में बाबरी मस्जिद का उल्लेख नहीं है, बल्कि इसे "तीन गुंबद वाली संरचना" के रूप में बताया गया है. इसने अयोध्या से संबंधित घटना को चार के बजाय 2 पन्नों तक घटा दिया है और पिछले एडिशन की डिटेल्स को हटा दिया है. हालांकि, बदलाव की गई किताबों में अभी भी योगेंद्र यादव और सुहास पलशीकर को मुख्य सलाहकार के रूप में मान्यता दी गई है.
सकलानी को भेजे गए ईमेल में, दोनों स्कॉलर्स ने पिछले साल की अपनी बातचीत का हवाला दिया, जहां उन्होंने साफ-साफ कहा था कि "इस अनुरोध को तुरंत प्रभावी बनाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि हमारे नाम एनसीईआरटी वेबसाइट पर उपलब्ध किताबों की सॉफ्ट कॉपिज के साथ-साथ बाद के पब्लिश एडिशन में भी इस्तेमाल न किए जाएं. एनसीईआरटी ने हमारे अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं की, न ही हमें वापस लिखने की शिष्टता दिखाई. हम यह जानकर हैरान हैं कि हमारे मना करने के अनुरोध के एक साल से अधिक समय बाद भी एनसीआरटी ने उन प्रकाशनों से हमारे नाम हटाए बिना इन 6 किताबों के नए एडिशन को पब्लिश किया और बाजार में उपलब्ध करा दिया है, जिनसे हम जुड़े रहना नहीं चाहते हैं."
मेल में कहा गया है कि सेलेक्टिव डिलिशन के पहले के अभ्यास के अलावा, एनसीईआरटी ने असली किताबों की भावना को ध्यान में न रखते हुए उसमें कई बदलाव और इतिहास को दोबारा लिखने की कोशिश की है.... एनसीआरटी को हममें से किसी से परामर्श किए बिना इन किताबों को खराब करने और हमारे साफ-साफ मना करने के बावजूद हमारे नामों के तहत पब्लिश की गई किताबों का इस्तेमाल करने का कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं है. किसी भी काम की क्रिएटिविटी को लेकर किए जाने वाले दावों के बारे में तर्क-विर्तक और बहस हो सकती है. लेकिन यह हैरान करने वाला मामला है कि लेखकों और संपादकों को उनके नामों को ऐसे कामों के साथ जोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, जिन्हें वे अब अपना नहीं मानते हैं."
बढ़ती आलोचना के जवाब में, एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने बदलावों का बचाव किया, यह दावा करते हुए कि परिवर्तन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ संरेखित नियमित अपडेट का हिस्सा थे. उन्होंने भगवाकरण के आरोपों को खारिज करते हुए तर्क दिया कि इन बदलावों का उद्देश्य पॉजिटिव एजुकेशनल एनवॉयरमेंट को बढ़ावा देना और संभावित रूप से ऐसी घटनाओं का प्रसार रोकना है जो ऐतिहासिक रूप से अलगाव के विचार को बढ़ावा देते हैं.
गुजरात दंगों या बाबरी मस्जिद विध्वंस के संदर्भों को एनसीईआरटी की किताबों में बदले जाने के बारे में पूछे जाने पर सकलानी ने कहा, "स्कूली किताबों में हमें दंगों के बारे में क्यों पढ़ाना चाहिए? हम सकारात्मक नागरिक बनाना चाहते हैं, हिंसक और निराश व्यक्ति नहीं. क्या हमें अपने छात्रों को इस तरह से पढ़ाना चाहिए कि वे आक्रामक हो जाएं, समाज में नफरत पैदा करें या नफरत का शिकार हों? क्या यही शिक्षा का उद्देश्य है? क्या हमें इतने छोटे बच्चों को दंगों के बारे में पढ़ाना चाहिए ... जब वे बड़े होंगे तो वे इसके बारे में सीख सकते हैं लेकिन स्कूली किताब से क्यों. उन्हें यह समझने दें कि क्या हुआ और क्यों हुआ जब वे बड़े हो गए. बदलावों के बारे में हंगामा करना बेफिजूल है."
एनसीईआरटी के इस कदम से जुड़ा यह विवाद इस बात को लेकर बहस को जन्म देता है कि इतिहास को किस तरह से पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. क्या यह सेंसरशिप का एक रूप है, या यह छात्रों को संतुलित दृष्टिकोण देने का एक प्रयास है?