सेना की पश्चिमी कमान में तैनात एक महिला कर्नल ने कुछ ऐसे आरोप लगाए हैं जिनकी वजह से सनसनी मच गई है. इस अधिकारी ने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ खुद के साथ हुए उत्पीड़न, सेना की प्रतिष्ठा और निचले रैंक के सैनिकों के सामने उसकी छवि को खराब करने का आरोप लगाते हुए अपने पोस्टिंग वाले आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है. इस घटना के बाद कर्नल को कोर मुख्यालय से एक डिवीजन मुख्यालय में 'एडिशनल ऑफिसर' के रूप में नियुक्ति करने का आदेश दिया गया, जिसको लेकर भी महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है.
महिला के मुताबिक, ऐसा उनके साथ इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने फरवरी में तीन ब्रिगेडियर और एक लेफ्टिनेंट कर्नल के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी. उनका कहना है कि उन्हें हर तरह से परेशान किया जा रहा है, जिससे कि वह उस एफआईआर को वापस ले लें.
कर्नल के अनुसार, सीनियर अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पीछा करने, मानहानि और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम के तहत FIR दर्ज करवाई है. उन्होंने बताया, 'जैसे ही यह मामला 5 जून को सुनवाई के लिए आया, न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति विकास महाजन की अवकाश पीठ ने अधिकारी को अपनी नई पोस्टिंग पर रिपोर्ट करने और फिर छुट्टी पर जाने के लिए कहते हुए इस मामले को जुलाई के लिए स्थगित कर दिया'.
महिला अधिकारी ने आरोप लगाया कि उन्हें ऐसे डिवीजन में तैनात किया गया है. जहां उनके रैंक के अधिकारी के लिए कोई पद खाली नहीं है. इसके बावजूद 27 मई को जब वह छुट्टी पर थीं तो उन्हें जल्दबाजी में उस जगह पर तैनात कर दिया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि पोस्टिंग आदेश जारी किया गया था. राष्ट्रीय महिला आयोग ने जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) सहित सेना अधिकारियों द्वारा निष्क्रियता के संबंध में उनकी शिकायत पर संज्ञान भी लिया है. वहीं, इस मामले में सरकारी वकील ने तर्क दिया कि ट्रांसफर वाला आदेश पारदर्शी तरीके और संबंधित नियमों के अनुसार पारित किया गया है.
बता दें कि महिला कर्नल ने जिन चार अधिकारियों का जिक्र है उनमें स्टेशन कमांडर, मुख्य सिग्नल अधिकारी जो कोर्ट ऑफ इंक्वायरी कर रहे थे, पश्चिमी कमान के डिप्टी जज एडवोकेट जनरल और सैन्य पुलिस यूनिट के कार्यवाहक कमांडिंग ऑफिसर शामिल हैं. FIR दर्ज होने के बाद इन चारों सैन्य अधिकारियों ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में एफआईआर को रद्द करने की मांग की. जिसमें न्यायालय की ओर से एक आदेश अप्रैल में आया था कि फिलहाल उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.
अब बात सेना की पश्चिमी कमान के कमांड मुख्यालय की करें तो उन्होंने इस मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, ये कहते हुए कि यह मामला अब न्यायालय में विचाराधीन है.