PIL against Rahul Gandhi: राहुल गांधी की रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद के रूप में चुनाव को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है. याचिका में यह दावा किया गया है कि राहुल गांधी भारतीय नागरिक नहीं बल्कि ब्रिटिश नागरिक हैं और इसलिए वह लोकसभा चुनाव लड़ने के अयोग्य थे.
कर्नाटक के रहने वाले एस. विग्नेश शिशिर द्वारा एडवोकेट अशोक पांडे के माध्यम से दायर इस याचिका में लोकसभा अध्यक्ष को भी राहुल गांधी को पद की शपथ ग्रहण न कराने और उन्हें संसद सदस्य के रूप में कार्य करने की अनुमति न देने का निर्देश देने की मांग की गई है. यह तब तक के लिए लागू रहेगा जब तक गृह मंत्रालय उनकी विदेशी नागरिकता के मुद्दे को सुलझा न ले.
याचिका में "रिट ऑफ क्वो वारंटो" जारी करने की भी मांग की गई है, जिसमें राहुल गांधी से पूछा जाए कि वह किस कानूनी अधिकार के तहत रायबरेली लोकसभा सीट से लोकसभा सदस्य के रूप में कार्य कर रहे हैं. साथ ही, सांसद के रूप में उनके कामकाज पर रोक लगाने की भी मांग की गई है.
याचिका में तर्क दिया गया है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि (मोदी उपनाम मामले में) पर रोक लगा दी हो, लेकिन केवल दोषसिद्धि पर रोक उन्हें चुनाव लड़ने का हक नहीं देता. याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 102 और धारा 8(3) उन्हें सांसद चुने जाने या बने रहने के लिए अयोग्य बनाती है.
याचिका में आगे कहा गया है कि राहुल गांधी भारत के नागरिक नहीं हैं. वह ब्रिटेन के नागरिक हैं और इसलिए सांसद चुने जाने के लिए योग्य नहीं हैं. याचिका में दावा किया गया है कि राहुल गांधी M/s BACKOPS LIMITED के निदेशक थे और कंपनी हाउस, यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन सरकार) के साथ दायर दस्तावेजों में राहुल गांधी ने अपनी राष्ट्रीयता ब्रिटिश बताई थी.
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि मुख्य निर्वाचन आयोग और वायनाड और रायबरेली के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों सहित विभिन्न प्राधिकारियों को कई मेमोरियल भेजे गए थे. हालांकि, ऐसे किसी भी मेमोरियल पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
याचिका में यह भी कहा गया है कि जिस दिन राहुल गांधी ने ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त की, उस दिन से वे भारत के नागरिक नहीं रहे और अगर उन्होंने 2003/2006 के बाद भारतीय नागरिकता हासिल की, तो उन्हें इसे अपने नामांकन पत्र के साथ दाखिल करना चाहिए था.
मामला हाईकोर्ट में आइटम नंबर 18 के रूप में सूचीबद्ध है. पीठ फिलहाल आइटम नंबर 17 पर सुनवाई कर रही है. सुनवाई शुरू होने पर पीठ ने एडवोकेट अशोक पांडे (याचिकाकर्ता के वकील) के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2016 में पारित फैसले के बारे में पूछा.
जानें क्या था 2016 का फैसला?
'हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले में एडवोकेट पांडे को 2016 के फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि एडवोकेट पांडे या हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर प्रत्येक याचिका को तभी स्वीकार किया जाएगा जब उसके साथ 25,000 रुपये का डिमांड ड्राफ्ट अटैच्ड हो.
जज की जिज्ञासा के जवाब में, एडवोकेट पांडे ने अदालत को सूचित किया कि 2016 के फैसले को चुनौती देते हुए उन्होंने उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की है और मामला अभी भी पेंडिंग है. उन्होंने अदालत से निवेदन किया कि 2016 के फैसले को इस मामले में लागू नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक अलग मुद्दा है.
इस दौरान एडवोकेट अशोक पांडे और जस्टिस माथुर के बीच कुछ तीखी बातचीत भी हुई है जिस पर न्यायमूर्ति भड़क गए. आइये एक नजर डालते हैं.
सुनवाई के दौरान एडवोकेट अशोक पांडे ने दलील दी कि 2016 में हाईकोर्ट द्वारा उक्त आदेश पारित किए जाने के बाद भी उनकी कई याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री द्वारा कोई आपत्ति उठाए बिना ही सुनवाई की थी.
इस दौरान जस्टिस माथुर ने मामले की लाइव रिपोर्टिंग कर रहे मीडिया के रिपोर्टर से अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिंग बंद करने और कोर्ट रूम से बाहर जाने को आदेश दिया और उसे बाहर कर दिया.
गौरतलब है कि 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने दो निजी व्यक्तियों की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें राहुल गांधी को 2019 के आम चुनाव लड़ने से रोकने की मांग की गई थी. याचिका कथित तौर पर ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त करने के बाद उनके दोहरी नागरिकता के मुद्दे के निर्धारण तक रोक लगाने की मांग कर रही थी.