उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट अचानक से एक बार फिर चर्चा में आई है. इस सीट पर चुनाव के लिए नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस पार्टी ने गांधी परिवार के पुराने वफादार के एल शर्मा याना किरोड़ी लाल शर्मा को चुनाव में उतार दिया है. मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की उम्मीदवार हैं. बीजेपी आरोप लगा रही है कि कांग्रेस ने यहां से हार मान ली है. वहीं, कांग्रेस के नेता इसे 'शतरंज की चाल' बता रहे हैं. इस सबके बीच किरोड़ी लाल शर्मा पर लोगों की नजरें हैं कि क्या वह गांधी परिवार की खोती जा रही विरासत को अमेठी में बचाने में कामयाब हो पाएंगे?
पहली बार कोई चुनाव लड़ने जा रहे के एल शर्मा की पहचान यह रही है कि वह रायबरेली और अमेठी में गांधी परिवार के प्रतिनिधि रहे हैं. ऐसे में उनकी तुलना कैप्टन सतीश शर्मा से की जाने लगी है. दरअसल, कैप्टन सतीश शर्मा ने ही साल 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद अमेठी में उपचुनाव लड़ा था. सोनिया गांधी के चुनावी राजनीति में उतरने से पहले तक कुल सात साल सतीश शर्मा ने ही अमेठी में गांधी परिवार का झंडा ऊंचा रखा. 1999 में वह रायबरेली से चुनाव लड़े और वहां भी गांधी परिवार का परचम ऊंचा रखा.
1991 में आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की मौत के बाद सहानुभूति वाली लहर थी. ऐसे में सतीश शर्मा बहुत आराम से चुनाव जीत गए थे. 1996 में कांग्रेस ने फिर उन्हीं पर भरोसा जताया और वह एक बार फिर विजयी हुए. 1999 के चुनाव में रायबरेली से जब गांधी परिवार के ही अरुण नेहरू बागी हो गए तो रायबरेली में उनको टक्कर देने के लिए सतीश शर्मा ही चुनाव में उतरे और एक बार फिर से विजयी रहे.
के एल शर्मा भले ही अभी तक चुनाव न लड़े हों लेकिन स्थानीय जनता उन्हें अच्छे से जानती है. उनकी जमीनी पकड़ भी अच्छी है, यही वजह है कि गांधी परिवार ने उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर चुनाव में उतार दिया है. इससे पहले, रायबरेली और अमेठी दोनों लोकसभा क्षेत्रों में वह गांधी परिवार के आंख और कान की तरह काम करते रहे हैं. बता दे कि साल 1984 में के एल शर्मा ही थे जिन्हें राजीव गांधी के साथ भेजा गया था और उन्हें तिलोई का कोऑर्डिनेटर बनाया गया था.
वह राजीव गांधी के प्रतिनिधि बनकर यहां काम करते थे. तिलोई के बाद वह जगदीशपुर के कोऑर्डिनेटर बने. सतीश शर्मा और फिर सोनिया गांधी के सांसद बनने पर के एल शर्मा ही उनके प्रतिनिधि हुआ करते थे. बाद में जब राहुल गांधी सांसद बने तब भी के एल शर्मा ने ही यहां अहम भूमिका निभाई. शायद यही वजह रही कि आज नामांकन से ठीक पहले प्रियंका गांधी ने उनके साथ रोडशो किया और लोगों से अपील की कि के एल शर्मा को भारी वोटों से जिताएं.
गांधी परिवार अभी भी 2019 की अमेठी की हार को भूला नहीं है. शायद यही वजह है कि इस बार यहां से कोई रिस्क नहीं लिया गया है. 2014 में राहुल गांधी से हारने वाली स्मृति ईरानी ने 2019 में अमेठी में बाजी मार ली थी. उन्होंने राहुल गांधी को लगभग 50 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हराकर बड़ा उलटफेर कर दिया था. पिछले 6-7 साल से स्मृति ईरानी अमेठी में लगातार सक्रिय हैं. वहीं, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के दौरे लगभग न के बराबर रहे हैं. गांधी परिवार ने अमेठी से अपना वो कनेक्ट भी कम कर दिया है जिसके लिए उसे हमेशा से जाना जाता रहा है.
ऐसे में के एल शर्मा चुनाव में अकेले पड़ते दिख सकते हैं. दूसरी तरफ, सहयोगी समाजवादी पार्टी खुद भी अमेठी में कमजोर दिख रही है. राज्यसभा चुनाव में सपा में हुई बगावत के दौरान गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह और महाराजी प्रजापति ने खेल कर दिया था. राकेश सिंह ने जहां बीजेपी को वोट दिया था, वहीं महाराजी प्रजापति वोट डालने ही नहीं गईं. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा यही दो सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. गौरीगंज और अमेठी की सीट पर भी कांग्रेस तीसरी नंबर पर रह गई थी.
अमेठी में कांग्रेस को अगर जीत हासिल करनी है तो उसे खूब पसीना बहाना होगा. हालांकि, अब इसके लिए समय शायद बहुत कम बचा है. उम्मीद जताई जा रही है कि राहुल गांधी के रायबरेली से लड़ने के चलते कांग्रेस पार्टी एकसाथ दोनों सीटों पर जोर लगाएगी. चर्चाएं हैं कि इन दोनों सीटों पर कांग्रेस जोर-शोर से प्रचार करने जा रही है. अगर रणनीतिक रूप से कांग्रेस लोगों तक पहुंच पाती है और पिछली बार के अंतर को कम कर पाती है तभी उसकी किस्मत खुल सकती है.
इस सबके बीच कांग्रेस को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि पिछली बार स्मृति ईरानी के सामने खुद राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे थे और इस बार उनकी जगह पर के एल शर्मा प्रत्याशी हैं. ऐसे में कांग्रेस को इस पर्सनालिटी कल्ट का भी नुकसान हो सकता है.