रूस के साथ भारत की दोस्ती से जलता क्यों है अमेरिका? समझिए कहानी
अमेरिकी जनप्रतिनिधियों की ओर से बार-बार कहा जा रहा है कि भारत को रूस के साथ अपने पुराने संबंधों का इस्तेमाल, यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए करना चाहिए. भारत और रूस की दोस्ती अटूट है, ऐसे में भारत, इस युद्ध को रोकने में निर्णायक भूमिका में आ सकता है. यूक्रेन युद्ध का हवाला देकर, अमेरिका ने एक बार फिर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.
भारत और अमेरिका के रक्षा सहयोग पर आयोजित एक सम्मेलन में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा है कि भारत को रूस से अपनी दोस्ती का इस्तेमाल, यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए करना चाहिए. भारत, व्लादिमीर पुतिन पर दबाव बनाए, जिससे वे यूक्रेन युद्ध रोक दें. ऐसी आशा है कि भारत सरकार, व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन में युद्ध रोकने की अपील करेगी. एरिक गार्सेटी ने अमेरिका के साथ रक्षा सौदे को लेकर चिंता भी जाहिर की है. अमेरिका को रूस और भारत की दोस्ती रास नहीं आती.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौरे का जिक्र किए बिना, भारत के रुख की आलोचना कर रहे थे. उन्होंने कहा कि युद्ध के मैदान में समाधान नहीं खोजा जा सकता है और भारत संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए खड़ी है. एरिक गार्सेटी ने रूस के यूक्रेन की सीमा में दाखिल होने की तुलना वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध से कर दी.
हार बार भारत को सीख देता है अमेरिका
एरिक गार्सेटी ने कहा, 'मैं जानता हूं और मैं इस बात का सम्मान करता हूं कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को पसंद करता है, लेकिन संघर्ष के समय, रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती है. संकट के क्षणों में, हमें एक-दूसरे को समझने की जरूरत है. मुझे परवाह नहीं कि हम इसे क्या नाम देते हैं, लेकिन हमें यह जानना होगा कि हम भरोसेमंद दोस्त, भाई और बहन, सहकर्मी हैं.' एरिक गार्सेटी ने डिफेंस थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान ये बातें कही हैं.
अमेरिका के इस बयान पर भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. एरिक गार्सेटी ने कहा है कि भारत और अमेरिका संयुक्त रूप से हथियारों को अत्याधुनिक बनाने से लेकर सैन्य अभ्यास तक की चली आ रही प्रैक्टिस को जारी रखेंगे. एशिया और दुनिया के दूसरे हिस्सों में आने वाली घटनाओं पर नजर रखेंगे. उन्होंने कहा है कि लोगों के संबंध बेहद घनिष्ठ हैं.
शांति के लिए खड़े होने नहीं, एक्शन लेने की जरूरत
यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने दो टूक कहा, 'अब जंग दूर नहीं है. हमें केवल शांति के लिए खड़े नहीं होना चाहिए, हमें ठोस कदम उठाने चाहिए. जो लोग शांति के नियमों का पालन नहीं करते हैं, उनकी वार मशीनें बेरोक-टोक जराी न रहने पाएं.'
'रूस और अमेरिका के बीच किसी एक को चुने भारत'
भारत और रूस के बीच शिखर सम्मेलन के दौरान दो संयुक्त वक्तव्य सामने आए और 9 समझौते हुए. यह भी अमेरिका को रास नहीं आया है. एरिक ने कहा, 'हम नेताओं के समझौतों को पढ़ सकते हैं. उन समझौतों को देखें जो थोड़े बहुत दिखावटी हैं.' गर्सेटी ने कहा है कि भारत को लंबे समय तक के लिए अपनी सैन्य जरूरतों के लिए रूस और अमेरिका के बीच चुनना होगा.
उन्होंने कहा, 'अमेरिका 2008 में लगभग शून्य से 2023 में लगभग 25 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है. हम समझते हैं आपको युद्ध के लिए तैयार रहना होगा. आपको उसके लिए स्पेयर पार्ट्स की जरूरत है लेकिन जैसा भविष्य दिख रहा है, हमें पता है कि सबसे अच्छा सिस्टम, सबसे अच्छे हथियार कहां से आ रहे हैं. इसे संदेह की दृष्टि से न देखें.'
'भारत-अमेरिका अपने संबंधों को हल्के में न लें,' ये वार्निंग है या कुछ और...?
गर्सेटी ने अपने भाषण के दौरान कई बार कहा कि भारत और अमेरिका को अपने संबंधों को हल्के में नहीं लेना चाहिए. दोनों के संबंध गहरे हैं लेकिन अभी पर्याप्त नहीं हैं. एरिक गार्सेटी ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की तुलना भारत की उत्तरी सीमा की स्थिति से करने की कोशिश की.
एरिक ने कहा, 'मुझे भारत को यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि सीमाएं कितनी महत्वपूर्ण हैं. जब हम उन सिद्धांतों पर खड़े होते हैं और एक साथ खड़े होते हैं, हम दिखा सकते हैं कि सिद्धांत हमारी दुनिया में शांति के मार्गदर्शक प्रकाश हैं और साथ मिलकर दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ा सकते हैं.'
रूस से दोस्ती अमेरिका को क्यों रास नहीं आती है?
अमेरिका मानवाधिकारों की आड़ लेकर, भारत और रूस की दोस्ती से नाखुश नजर आता है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुतिन से मिले थे, तभी एक रूसी मिसाइल ने यूक्रेन के चाइल्ड केयर हॉस्पिटल पर हमला किया था. तब कहा गया कि युद्ध के मैदान में शांति की उम्मीद बेमानी है. अमेरिका बार-बार रूस के साथ भारतीय संबंधों को लेकर चिंता जाहिर कर रहा है. अमेरिकी विदेश विभाग के मैथ्यू मिलर ने कहा है कि अमेरिकी पक्ष ने मोदी के रूस दौरे के दौरान भी भारत के साथ इन चिंताओं को उठाया था.
व्हाइट हाउस की ओर से कहा जा चुका है कि भारत और रूस के दीर्घकालिक संबंध यूक्रेन युद्ध को रोक सकते हैं. अमेरिका, पीएम मोदी के रूस दौरे से खुश नहीं था. अमेरिका का यह कहना है कि जब अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भारत गए थे, तब भी इस दौरे का जिक्र नहीं किया गया था. भारत पहले ही यह साफ कर चुका है कि वह अपने हितों के आधार पर वैश्विक संबंधों को तय करेगा. भारत पश्चिमी देशों या यूरोप के नजरिए से दुनिया को नहीं देगा, अपने हितों के लिए वैश्विक संबंधों को तोड़ेगा या जोड़ेगा.
क्या है अमेरिका का जलन की असली वजह
भारत, दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है. साल 2014-18 और 2019-23 के बीच भारत का हथियार आयात तेजी से बढ़ा है. देश ने कुल 4.7 फीसदी ज्यादा हथियार खरीदे हैं. भारत 9.8 फीसदी हथियार आयात के साथ दुनिया में टॉप पर है. भारत, रूस से सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है. यही बात अमेरिका को रास नहीं आती है. अब अमेरिका भी भारत को हथियार बेचने लगा है.
अमेरिका भारत को जेट टेक्नोलॉजी देता है. अमेरिका M-777 लाइट होवित्जर तोपों को अपग्रेड करने के लिए भारत से डील कर चुका है. स्ट्राइकर बख्तरबंद गाड़ियों पर भी डील हुई है. अमेरिका, भारत को प्रीडेटर ड्रोन दे रहा है, इनकी मैन्युफैक्चरिंग तकनीक भी अमेरिका देगा.
अमेरिका चाहता है कि हथियारों के मामले में भारत, रूस का साथ छोड़कर पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर हो जाए. अमेरिका हथियारों में भी मोनोपॉली चाहता है. सच्चाई ये है कि अमेरिका, पाकिस्तान को भी हथियार बेचता है. ऐसे में भारत, चाहकर भी सिर्फ अमेरिका पर निर्भर नहीं हो सकता है. भारत रूस के साथ अपनी डिफेंस डील कम करने से रहा. यही बात अमेरिका को बार-बार खटकती है. अमेरिका के जलन की ये एक वजह भी है.