सिक्किम हाई कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की सुनवाई के दौरान कहा है कि एक साढ़े तीन साल की बच्ची, शायद ही ये समझ पाए कि कोई उसके प्राइवेट पार्ट को छू रहा है या नहीं, वह कैसे इसे समझकर घबरा सकती है कि उसका यौन उत्पीड़न हो रहा है. यह हैरान करने वाला है विश्वसनीय नहीं है. कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है कि जिस पर लंबी बहस हो सकती है. कानून के जानकारों को शायद हाई कोर्ट का यह फैसला रास न आए.
याचिकाकर्ता को स्पेशल ट्रायल कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा 5(एम) के तहत दोषी माना था. उसे पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असल्ट का दोषी माना गया था. हाई कोर्ट ने उसे इस केस में जमानत दे दी. सिक्किम हाई कोर्ट की जज मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान ने याचिकर्ता को बरी कर दिया. कोर्ट ने इस आधार पर बरी किया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि पीड़िता के साथ यौन अपराध हुआ है.
FIR तब दर्ज की गई थी, जब एक केस की पहले ही जांच चल रही थी. आरोपी ने एक 9 साल के बच्चे का भी यौन उत्पीड़न किया था. वह पीड़िता का भाई है. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में पाया कि ऐसे सबूत नहीं पाए गए हैं, जिनमें यह साबित हो सके कि पीड़िता के साथ ही रेप हुआ है. हाई कोर्ट ने गवाहों के बयानों को गलत माना. मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बयान में याचिकाकर्ता के गवाह 1 ने कहा था कि आरोपी ने पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में अपना लिंग डाला था. केस दर्ज कराने के दौरान यह कहा गया कि उंगली डाली गई. पीड़िता के पिता (गवाह संख्या 5) ने कहा कि उसकी बेटी के प्राइवेट पार्ट्स को आरोपी ने छुआ है.
कोर्ट ने पाया कि पहले गवाह के बयान, उसकी मां के बयान से मेल नहीं खाते हैं. आरोपी ने पीड़िता का फ्रॉक हटाया और उसके पूरे शरीर को टच किया. मां ने कहा कि वह इन हरकतों से घबरा गई. कोर्ट ने कहा कि एक यह संभव नहीं है कि साढ़े तीन साल की बच्ची समझ सके कि यौन उत्पीड़न क्या होता है.
हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के साथ जो हुआ, उस पर गवाहों के दावे-अलग हैं. अभियोजन पक्ष गवाहों के साक्ष्यों की पुष्टि नहीं कर पाए. कोर्ट ने कहा कि दो पक्षों ने घटना के बारे में कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई. रिकॉर्डिंग के दौरान ही उसने अपनी बहन पर ये बातें कही हैं. पीड़ित पक्ष यह साबित नहीं हो पाया कि आरोपी दोषी है.