देश की राजधानी दिल्ली के गाजीपुर में स्थित लैंडफिल साइट एक पहाड़ जैसी है. लंबे समय से इसे हटाने को लेकर राजनीति हो रही है, कई तरह के काम भी शुरू किए गए हैं लेकिन कूड़े का यह पहाड़ अभी भी बना हुआ है. रिहायशी बस्तियों के बीच बसे इस डंपिंग ग्राउंड में आग लगने से एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. आम लोगों को हो रही समस्याओं के बीच दिल्ली नगर निगम (MCD) की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जुबानी हमला बोल दिया है. वहीं, आग बुझाने के तमाम प्रयास भी किए जा रहे हैं लेकिन कूड़े की आग को बुझाना हमेशा की तरह ही काफी मुश्किल साबित हो रहा है.
बीते कुछ सालों में दिल्ली के भलस्वा डंपिंग ग्राउंड और गाजीपुर लैंडफिल साइट पर आग लगने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. सैकड़ों फीट ऊंचे हो चुके कूड़े के इन पहाड़ों पर कई दिन पुराना कचरा भी जमा रहता है जिसके चलते यहां से तेज बदबू निकलीत है जो आसपास के लोगों का जीना बेहाल कर देती है. ऐसे में आग लगने की स्थिति में यहां से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों के लिए कई तरह की बीमारियां भी लेकर आता है. आसपास के लोगों का कहना है कि उनके लिए आग की घटनाएं बेहद आम हो गई हैं. बड़ी आग न लगने की स्थिति में भी अक्सर जहरीली गैस का एहसास होता है.
दिल्ली में हर दिन लगभग 10 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा कूड़े का निस्तारण किया जा रहा है. इसके बावजूद कूड़े के पहाड़ पर कचरे का अंबार होने और हर दिन लगभग 1100 टन कचरा फिर से आ जाने के चलते यह कचरा कम होने का नाम ही नहीं लेता है. कचरे को अलग-अलग करने के बावजूद इन डंपिंग ग्राउंड पर आने वाले कचरों में बासी खाना, सब्जियों का कूड़ा, प्लास्टिक, मिट्टी, पानी और कई अन्य कार्बनिक पदार्थों के साथ-साथ तरह-तरह के अकार्बनिक पदार्थ भी होते हैं.
लंबे समय तक पड़े रहने, पानी और धूप मिलने के कारण यह कचरा धीरे-धीरे यहीं सड़ने लगता है. ऐसी स्थिति में इस कचरे में कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी जहरीली गैस बनती हैं. मीथेन गैस इतनी ज्वलनशील होती है कि गर्मी में सूरज की रोशनी के चलते एक छोटी सी चिनगारी इसे बड़ी आग में बदल देती है. आग लगने के बाद प्लास्टिक और मीथेन गैस का मिश्रण इस आग को आसानी से बुझने नहीं देता है. यही वजह है कि डंपिंग ग्राउंड पर एक बार आग लगने के बाद कई बार वह महीनों तक सुलगती रहती है.
कई बार यह आग डंपिंग ग्राउंड पर काम करने वाले लोग भी लगा देते हैं. इस तरह इनकी कोशिश होती है कि प्लास्टिक और कागज जैसी चीजें जल जाएं जिससे धातु और मिट्टी जैसी चीजों को कूड़े से अलग करना उनके लिए आसान हो जाए. हालांकि, यह कदम कई बार बेहद खतरनाक साबित होता है और यह आग बुझने का नाम नहीं लेती है.