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कठुआ, डोडा और रियासी..., आखिर क्यों आतंकी हमलों का शिकार हुए कश्मीर के ये इलाके?

जम्मू-कश्मीर के कई इलाके ऐसे हैं जो बार-बार आतंकी हमलों का शिकार बनते हैं. हाल ही में कठुआ, रियासी और डोडा के ऐसे इलाकों में हमले हुए हैं जो LoC के कुछ ही किलोमीटर के रेंज में आते हैं. अक्सर आतंकी पहाड़ों और जंगलों में छिपे रहते हैं और वहीं से आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते हैं. हाल में हुए आतंकी हमलों के बाद भी जिन आतंकियों को ढेर किया गया, वे भी जंगल में ही छिपने की कोशिश कर रहे थे लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें ढूंढ निकाला और ढेर कर दिया.

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बीते कुछ सालों में देखा गया है कि जम्मू-कश्मीर में होने वाली आतंकी घटनाएं उत्तर कश्मीर के बजाय दक्षिण कश्मीर में शिफ्ट हो गई हैं. पहले की तुलना में अब उत्तर कश्मीर में थोड़ी बहुत शांति दिखती है लेकिन दक्षिण कश्मीर में आने वाले कठुआ, डोडा और रियासी जैसे इलाकों में आतंकी हमले हो रहे हैं. आतंकी हमलों की प्रकृति में भी बदलाव हुआ है. अब आतंकी संगठन टारगेट किलिंग पर उतर आए हैं. जम्मू-कश्मीर से बाहर के निवासियों, सरकारी कर्मचारियों, सुरक्षा बलों से जुड़े लोगों या आम नागरिकों को अब निशाना बनाया जा रहा है. सुरक्षाबलों के बढ़ते दखल के चलते अब यह भी देखा गया है कि ये दहशतगर्द सीमा पार से ट्रेनिंग लेकर आते हैं और कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

हाल ही में कठुआ के हीरानगर, रियासी और डोडा में तीन आतंकी हमले हुए. एक बार श्रद्धालुओं की बस को निशाना बनाया गया. एक बार पुलिस अधिकारियों पर गोलीबारी हुई और एक आम नागरिक को गोली मार दी गई. इन सभी हमलों में एक बात यह समझ आ रही है कि इन आतंकियों की तैयारी पूरी थी. एनकाउंटर में मारे गए दो आतंकियों के पास से खाने-पीने की चीजें, हथियार और कई अन्य जरूरी सामान होते हैं. इन चीजों की बदौलत ये आतंकी जरूरत पड़ने पर जंगल में ही छिपे रह सकते हैं. इसके अलावा, इनके पास भारी मात्रा में कैश भी होता है जिससे ये आम लोगों को लालच देकर अपना काम निकलवाते हैं या उन्हें अपने बारे में किसी को न बताने को लेकर भी राजी कर लेते हैं.

कठुआ क्यों बनता है शिकार?

कठुआ जिले की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं. यही वजह है कि सालों से शांत रहा यह जिला बीते कुछ सालों से आतंकवाद और नशे का कारोबार का अड्डा बन गया है. बॉर्डर से लगे इलाकों के जरिए न सिर्फ हथियार और ड्रग्स की तस्करी होती है बल्कि इन्हीं रास्तों से आतंकी भी घुस जाते हैं. लंबे समय से भौगोलिक स्थितियां भी कश्मीर के लिए चुनौती बनी हुई हैं. पहाड़ी इलाकों और जंगलों में आतंकी और ड्रग्स के तस्कर भी अपना ठिकाना बना लेते हैं. कई बार सेना और पुलिस ने ऐसी सुरंगों का खुलासा भी किया है.

मुश्कित होते हैं रास्ते Indian Army

एक तरफ रावी नदी, दूसरी तरफ मागर नाला और बीच से गुजरती माधोपुर बराज नहर. ऐसी ही भौगोलिक स्थितियां कठुआ समेत कश्मीर के कई इलाकों को संवेदनशील बनाती है. घने जंगल, नदियां और पहाड़ी इलाके, मिलकर ऐसी परिस्थितियां पैदा करते हैं जहां अपराधियों का छिपना आसान हो जाता है. यही वजह है कि आतंकियों के छिपे होने की सूचना के बावजूद कई-कई दिनों तक सर्च ऑपरेशन चलाना पड़ता है. कई बार बुरी तरह घिर जाने के बाद आतंकी मारे जाते हैं. कई बार ऐसा भी होता है जब आतंकी बचकर निकल जाते हैं.

भौगोलिक स्थितियां बनाती हैं संवेदनशील

कश्मीर के ज्यादातर इलाकों में ऊंचे पहाड़, घने जंगल, तेज बहाव वाली नदियां और नाले हैं. कुछ नाले और नदियां सीमापार से आती और जाती हैं. इन पर भी सेना की ओर से निगरानी रखी जाती है लेकिन यह काफी चुनौतीपूर्ण होता है. इसी का फायदा आतंकी उठाते हैं. लंबे समय तक जंगलों में रहने, स्थानीय चरवाहों से रास्ते जानकर ये आतंकी कई गुप्त रास्ते खोज लेते हैं, जिनका किसी को पता नहीं होता. इसके अलावा, जहां सेना की नजर में आने की आशंका होती है, वहां कई बार ये सुरंगें भी खोद डालते हैं. ऐसी कई सुरंगें सुरक्षाबलों ने पिछले कुछ सालों में खोद निकाली हैं.

इन सुरंगों में पाया गया है कि न सिर्फ इनका इस्तेमाल आने-जाने में होता है, बल्कि सर्च ऑपरेशन शुरू होने पर ये इन्हीं सुरंगों में छिप भी जाते हैं. डोडा, कठुआ और रियासी जैसे इलाकों की LoC से दूरी कुछ किलोमीटर ही है. इतनी दूरी ये आतंकी छिपते-छिपाते नदी, नालों और जंगलों के रास्ते तय करते हैं. कई बार रास्ते में दिख जाने पर ये एनकाउंटर में मारे भी जाते हैं लेकिन आतंकी संगठनों की कोशिशें नहीं रुकती हैं.

Hideouts CISF

ट्रेनिंग होती है जबरदस्त

बीते कई सालों के ट्रेंड के हिसाब से समझें तो ये आतंकी चॉकलेट और ड्राईफ्रूट पर जिंदा रहने, जंगलों में लंबे समय तक रहने और हथियार चलाने में ट्रेंड होते हैं. इन लोगों के पास लाखों की रकम भी होती है जिसका इस्तेमाल ये गरीब गांववालों को बरगलाने के लिए करते हैं. बंदूक और पैसे के जोर पर ये आतंकी कमजोर गांववालों को डराते-धमकाते हैं और कई बार अकेले बसे घरों में ही छिप भी जाते हैं.

सिर्फ सीमापार के आतंकी नहीं हैं समस्या

लंबे समय से यह देखा गया है कि सीमा पार से जितने आतंकी आते हैं, उससे ज्यादा आतंकी यहीं तैयार कर दिए जाते हैं. भारत में बैठे हैंडलर युवाओं को आइडेंटिफाई करते हैं, उन्हें बरगलाते हैं, उनको तरह-तरह के लालच देते हैं या फिर कई बार ब्लैकमेल करके भी उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल कर लेते हैं. इस तरह से तैयार हुए युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है और हथियारों की सप्लाई भी कर देती है. यही वजह है कि एनकाउंटर में मारे जाने के बाद कई आतंकी स्थानीय ही निकलते हैं.