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Lok Sabha Elections: नेहरू का पीछा कब छोड़ेंगी वे गलतियां, जिन्हें बार-बार याद दिलाता है विपक्ष?

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का संसद से लेकर सड़क तक जिक्र होता रहता है. आजादी के 7 दशकों बाद भी विपक्ष उन्हें उनकी कथित गलतियों को लेकर घेरता है. ऐसा क्या है कि इतने दशकों बाद भी उन्हें निशाना बनाया जाता है, आइए जानते हैं.

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Edited By: India Daily Live
Jawahar Lal Nehru

चुनाव का माहौल हो और पंडित जवाहर लाल नेहरूर को लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) कांग्रेस को न घेरे, ऐसा हो नहीं सकता है. 7 दशकों बाद भी जवाहर लाल नेहरू भारतीय राजनीति में प्रसांगिक बने हुए हैं. संसद भवन से लेकर सोशल मीडिया तक, हर दक्षिणपंथी पार्टी के निशाने पर जवाहर लाल नेहरू का नाम होता है.

27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरू ने दुनिया तो छोड़ दी थी लेकिन भारतीय राजनीति उनका पीछा नहीं छोड़ती है. तिब्बत से लेकर कच्चाथीवू द्वीप तक, जवाहर लाल नेहरू के कुछ फैसले ऐसे हैं, जिन्हें लेकर उन्हें कोसा जाता है. बच्चे-बच्चे की जुबान पर नेहरू की गलतियां होती हैं. आइए हम भी जान लेते हैं किन फैसलों को लेकर उन्हें घेरा जाता है.

1. नेहरू की पहली गलती!
दक्षिणपंथी नेताओं का एक धड़ा ऐसा है जो महात्मा गांधी के साथ-साथ नेहरू को भी देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार बताता है. उनका कहना है कि जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की शर्त की वजह वजह से देश का विभाजन हुआ. हालांकि यह तथ्य एकदम गलत है.

2. नेहरू की दूसरी गलती!
जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति हमेशा आलोचना के दायरे में रही है. साल 1947 में कश्मीर पर पाकिस्तानी से आए हमलावरों ने धावा बोला और काबिज हुए, तब नेहरू ने सेना को ढंग से काउंटर अटैक नहीं करने दिया. उन्होंने अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंट बेटेन की बात मानी और कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में लेकर चले गए. कहा जाता है कि उन्होंने कश्मीर पर जनमत संग्रह की बात भी कही थी, जो कभी हो नहीं सका. अगर यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में न पहुंचा होता तो भारत के पास अपनी छीनी हुई जमीन पर दोबारा कब्जा करने का अधिकार होता.

3. नेहरू की तीसरी गलती!
नेहरू समाजवादी विचारधारा के मानने वाले थे. उनकी नीतियों में उनके समाजवादी विचार झलकते थे. उन्होंने प्राइवेट सेक्टर पर कुछ ऐसे प्रतिबंध लागू किए थे, जिसकी वजह से एक अरसे तक भारत में निवेश नहीं हो सकता था. नेहरू के विरोधी इसी रुख का विरोध करते हैं. 

4. नेहरू की चौथी गलती!
नेहरू गुटनिरपेक्ष नीति के पक्षधर रहे हैं. उन्होंने पंचशील सिद्धांत भी दिया था, जिसका पालन आज भी भारत करता है. 1947 तक, दुनिया कई धुरी में बंटी थी. कुछ अमेरिका के पक्षधर थे, कुछ रूस के. भारत किसी के साथ नहीं था. भारत गुटनिरपेक्षता में भरोसा रखता है. नेहरू एशिया और अफ्रीका में मैत्रिपूर्ण रिश्तों की पहल करते थे. उन्होंने हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा भी दिया था. जब साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला बोला तो उन्होंने विरोध नहीं किया, जिसकी वजह से आजाद तिब्बत चीन का गुलाम हो गया. तिब्बत कब्जाने की वजह से चीन अब अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों पर अपना दावा ठोकता है.  

5. नेहरू की पांचवी गलती!
जब चीन ने साल 1962 में भारत पर आक्रमण किया था. इस जंग में देश हार गया था. इस हार ने नेहरू की छवि को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था. वे बेहद कमजोर प्रधानमंत्री साबित हुए थे. जिस चीन के साथ वे बेहतर रिश्तों की वकालत कर रहे थे, उसी ने देश पर हमला बोल दिया था. हम चीन के हमले की वजह से जमीन का एक बड़ा टुकड़ा गंवा चुके हैं.

अब चुनावी मौसम में बीजेपी ने गिनाई कौन सी गलती?
भारतीय जनता पार्टी दावा करती है कि जवाहर लाल नेहरू ने रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच समुद्र में स्थित कच्चाथीवू द्वीप को आप्रसांगिक बताया था. उन्होंने कहा था कि इसे रखने का कोई कारण नहीं है. बीजेपी इसे लेकर भी नेहरू को घेर रही है. 

कब नेहरू का पीछा छोड़ेंगी उनकी ऐतिहासिक गलतियां?
जवाहर लाल नेहरू कश्मीर से लेकर तिब्बत तक ऐसे कई मुद्दे हैं, जिन पर नेहरू की आलोचना कभी बंद नहीं होगी. बीजेपी कांग्रेस को इन्हीं मु्द्दों पर घेरती है. कांग्रेस अपनी सेक्युलर अप्रोच को लेकर भी बीजेपी के निशाने पर रहती है. बीजेपी हर बार इन्हीं गलतियों को गिनाकर चुनावी माहौल तैयार करती है.