हाल ही में माफिया डॉन और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत हो गई थी. जेल में बंद मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसके बेटे अब्बास अंसारी को कोर्ट से रियायत नहीं मिल पाई. नतीजा यह हुआ कि अब्बास अंसारी अपने पिता मुख्तार अंसारी के जनाजे और मिट्टी में शामिल नहीं हो पाए थे. अब सुप्रीम कोर्ट ने अब्बास को बड़ी राहत दी है और अपने पिता की कब्र पर फातिहा पढ़ने की इजाजत दे दी है.
10 अप्रैल को मुख्तार अंसारी की कब्र पर फातिहा पढ़ा जाना है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि इसमें शामिल होने के लिए अब्बास अंसारी को कासगंज जेलस से गाजीपुर ले जाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि पुलिस कस्टडी में अब्बास अंसारी को ले जाते समय सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाएं. कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि 13 अप्रैल से पहले-पहले अब्बास अंसारी को फिर से कासगंज जेल लाया जाएगा.
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा है कि जेल प्रशासन यह सुनिश्चित करे अब्बास अंसारी की यह यात्रा आज शाम 5 बहजे से पहले ही शुरू हो जाए. अब्बास अंसारी 11 और 12 अप्रैल को अपने परिवार के लोगों से मिल सकें. इस दौरान पुलिस अन्य लोगों की अच्छे से चेकिंग करेगी और किसी भी तरह के हथियार लेकर कोई भी मिलने नहीं जा सकेगा. इस दौरान अब्बास अंसारी मीडिया से बातचीत नहीं कर सकेंगे.
Supreme Court allows Abbas Ansari to participate in the 'Fatiha' ceremony, scheduled for April 10 in memory of his father Mukhtar Ansari, who died in jail recently.
— ANI (@ANI) April 9, 2024
Supreme Court directs that Abbas Ansari be taken from Kasganj jail to his hometown Ghazipur in police custody with… pic.twitter.com/Zyg00oe4ZF
इस्लाम में किसी शख्स की मौत होने के बाद उसे कब्र में दफनाया जाता है. इसे मिट्टी देना कहा जाता है. मिट्टी देते समय उस शख्स के करीबी और परिवार के लोग भी मिट्टी देते हैं. इस्लाम में मान्यता है कि इस दुनिया को छोड़ने वाला शख्स किसी दूसरी दुनिया में चला जाता है. मिट्टी दिए जाने के कुछ दिन बाद लोग कब्र पर फातिहा पढ़ते हैं. इस दौरान अल्लाह से माफी मांगी जाती है और शांति की अपील की जाती है. फातिहा पढ़ने वाले लोग मृतक को संबोधित करके कहते हैं कि अगर अल्लाह ने चाहा तो फिर से मुलाकात होगी.
मान्यता है कि दुनिया से विदाई से पहले हर किसी को अपने गुनाहों की माफी मांग लेनी चाहिए. मौत के मामलों में यह माना जाता है कि मरहूम होने वाला शख्स तो अपने गुनाहों की माफी नहीं मांग सकता, ऐसे में उसके करीबी जैसे कि बेटे या परिवार के लोग फातिहा पढ़ते हैं. इस तरह वे अपने करीबी के लिए माफी मांगते हैं, दुआ पढ़ते हैं और अल्लाह से उसके लिए गुहार लगाते हैं.