menu-icon
India Daily

चुनाव आयुक्त के चयन से पहले क्यों बरसे उपराष्ट्रपति? मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर उठे सवाल

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुख्य न्यायाधीश की कार्यकारी नियुक्तियों में उनकी भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं. उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया. यह टिप्पणी तब आई है जब नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया नजदीक है.

auth-image
Edited By: Ritu Sharma
Jagdeep Dhankar
Courtesy: Jagdeep Dhankar

Jagdeep Dhankar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कार्यकारी नियुक्तियों में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की भागीदारी को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि सीबीआई निदेशक जैसे कार्यकारी पदों की नियुक्ति में CJI कैसे शामिल हो सकते हैं. धनखड़ ने कहा कि ऐसे मामलों में अब पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

कार्यकारी शासन पर न्यायिक हस्तक्षेप लोकतंत्र के लिए चुनौती

आपको बता दें कि भोपाल स्थित राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायिक आदेशों के माध्यम से कार्यकारी शासन को नियंत्रित करना एक संवैधानिक विरोधाभास है, जिसे अब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और बर्दाश्त नहीं कर सकता. उन्होंने स्पष्ट किया कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अपनी-अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर कार्य करना चाहिए.

''कार्यकारी जिम्मेदारी न्यायपालिका पर नहीं हो सकती''

बता दें कि धनखड़ ने कहा, ''सरकारें विधायिका के प्रति जवाबदेह होती हैं और समय-समय पर मतदाताओं के प्रति भी, लेकिन यदि कार्यकारी शासन को न्यायपालिका द्वारा नियंत्रित किया जाता है, तो जवाबदेही प्रभावित होती है. कार्यकारी नियुक्तियों में न्यायपालिका की भूमिका का कोई कानूनी आधार नहीं होना चाहिए.'' उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र संस्थागत अलगाव से नहीं, बल्कि समन्वित स्वायत्तता से चलता है. सभी संस्थाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर कार्य करना चाहिए, जिससे लोकतंत्र की शक्ति बनी रहे.

मूल संरचना सिद्धांत पर उठे सवाल

वहीं उपराष्ट्रपति ने 'मूल संरचना सिद्धांत' की व्याख्या पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि इस सिद्धांत का न्यायशास्त्रीय आधार बहस का विषय है.  इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व सॉलिसिटर जनरल अंध्या अर्जुन की पुस्तक का उल्लेख किया, जिसमें यह सिद्धांत स्पष्ट किया गया था. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की भूमिका मुख्य रूप से न्यायिक निर्णयों के माध्यम से ही होनी चाहिए. आगे उन्होंने कहा, ''न्यायपालिका की सार्वजनिक उपस्थिति फैसलों के जरिए ही होनी चाहिए. निर्णय स्वयं अपनी बात कहते हैं. न्यायाधीशों द्वारा अन्य माध्यमों से अभिव्यक्ति संस्थागत गरिमा को कमजोर करती है,'' 

संविधान संशोधन पर संसद का अंतिम अधिकार

इसके अलावा, उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि संविधान संशोधन का अंतिम अधिकार संसद के पास होना चाहिए. उन्होंने अनुच्छेद 145(3) का उल्लेख करते हुए बताया कि संविधान की व्याख्या के लिए न्यूनतम पांच न्यायाधीशों की पीठ आवश्यक होती है. धनखड़ ने कहा, ''संविधान की व्याख्या करने के लिए बहुमत का विचार जरूरी है, लेकिन इसकी आड़ में न्यायिक अहंकार को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता.'' उन्होंने यह भी कहा कि यदि संवाद और विचार-विमर्श की प्रक्रिया बाधित होती है, तो लोकतंत्र कमजोर हो सकता है.

बहरहाल, इस कार्यक्रम के दौरान, उपराष्ट्रपति ने अपनी दिवंगत मां केसरी देवी की स्मृति में एक पौधा भी लगाया और शहर में आयोजित केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के छोटे बेटे की शादी समारोह में भी शामिल हुए.