menu-icon
India Daily

'मोदी ने जोड़ा, नड्डा ने तोड़ा और भड़क गए स्वंय सेवक,' यूं ही नहीं यूपी में फुस्स हुई है BJP

LokSabha Election Results 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में 400 पार का नारा लेकर चुनाव लड़ने वाली भाजापा खुद बहुमत नहीं पा सकी है. ऐसे में भाजपा के इस हालात में पहुंचने के कई फैक्टर्स सामने आए हैं. इनमें से प्रमुख फैक्टर भाजापा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा RSS और स्वयंसेवकों की अनदेखी भी रहा है.

auth-image
Edited By: Mohit Tiwari
modi
Courtesy: IDL

LokSabha Election Results 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे 4 जून को सामने आ चुके हैं. इन नतीजों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. इनमें सबसे बड़ी बात ये रही कि 400 पार सीटों का दम भरने वाली बीजेपी खुद भी बहुमत से वंचित रह गई. एनडीए गठबंधन को 292 सीटे मिली हैं और INDIA गठबंधन को 234, इसके साथ ही 17 सीटों पर निर्दलीय चुनाव जीते हैं. चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिल पाना, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी हजम नहीं हो पा रहा है. 

राममंदिर, अनुच्छेद 370, फ्री राशन, आदि कई अहम मुद्दों पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिल पाने का कारण क्या है. यह सवाल हर किसी की जेहन में है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत लाने वाली भाजपा ने 2024 में कहां ऐसी चूक कर दी, जिससे उसको बहुमत से वंचित रहना पड़ गया.यूपी के फैजाबाद जैसी लोकसभा सीट, जहां पर राम मंदिर बना है. वहां से भी बीजेपी को हार का सामना करना, क्या मोदी मैजिक का कम हो जाना है या इसकी वजह कुछ और ही है. 

यह हो सकती है मुख्य वजह 

लोकसभा चुनावों में एग्जिट पोल्स के उलट परिणाम आना और बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने की वजह काफी हद तक पार्टी को संघ का साथ न मिलना भी हो सकता है. स्वयं सेवक संघ (RSS) हमेशा भरतीय जनता पार्टी के लिए एक मजबूत कड़ी रहा है. हर बार संघ के स्वयंसेवक चुनाव में बीजेपी के लिए सीधे तौर पर काम नहीं करते हैं पर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का जिम्मा संघ के कार्यकर्ताओं पर ही होता है. 

संघ को कर दिया दरकिनार 

हर बार चुनावों में बीजेपी समर्थक वोटर पोलिंग बूथ पर पहुंच जाएं, इसकी जिम्मेदारी संघ हमेशा से निभाता आया है. वहीं, इस बार 2024 के चुनावों में स्वयंसेवक एक्टिव नहीं दिखे. सूत्रों की मानें तो चुनावों के पांच चरणों में भी संघ के अलग-अलग स्तर के पदाधिकारियों ने चुनाव को लेकर किसी भी प्रकार की मीटिंग नहीं की. स्वयंसेवकों तक भी मैसेज नहीं गया कि उन्हें क्या काम करना है. 

जेपी नड्डा के बयान का पड़ा असर

पांचवें चरण के बाद संघ की एक मीटिंग हुई थी, जिसमें आगे काम को लेकर बातचीत हुई थी. वहीं, छठवें दौर की वोटिंग की दौरान बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आया कि भाजपा को संघ की जरूरत पहले होती थी. अब भाजपा को संघ की कोई भी जरूरत नहीं है. पार्टी खुद में सक्षम है. नड्डा का यह बयान संघ के भीतर काफी चर्चा में रहा और इसका असर यहां तक हुआ कि चुनाव में स्वयंसेवक एक्टिव नहीं दिखे. 

मतदाताओं का पोलिंग बूथ पर जाना करते थे सुनिश्चित

हर चुनाव में संघ एक सेट तरीके से कामकाम करता था. स्वयंसेवक घर-घर जाकर वोटर्स से मिलकर उनको पर्ची देते थे. इस पर्ची में मतदाता सूची में उनका क्रमांक आदि लिखा होता था. मतदान वाले दिन भी स्वयंसेवक अपने एरिया या मोहल्ले के मतदाताओं का पोलिंग बूथ तक पहुंचना सुनिश्चित करते थे. संघ के कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करते थे कि उनके क्षेत्र में रहने वाला मतदाता वोट देने अवश्य जाए. 

फोन से भी मतदान के लिए करते थे प्रेरित 

अगर लंच टाइम तक भी मतदाता वोट डालने नहीं पहुंचता था तो कार्यकर्ता फोन करके भी मतदान के लिए प्रेरित करते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिखाई दिया. हालांकि कुछ सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने संघ के स्वयंसेवकों से व्यक्तिगत स्तर पर सक्रियता सुनिश्चित करने की बात की थी,लेकिन काफी जगहों पर उम्मीदवारों से ये भी नहीं हो सका. सूत्रों की मानें तो दिल्ली के झंडेवालान को संघ का गढ़ माना जाता है, इस बार वहां भी मतदाता क्रमांक की पर्ची नहीं पहुंची. 

मोदी ने संघ का रखा था ध्यान

प्रधानमंत्री खुद एक स्वयंसेवक रह चुके हैं. अयोध्या में राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत थे.ऐसे में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भाजपा और संघ साथ रहा. चुनाव में हुए टिकट के बंटवारे में संघ की अनदेखी के बाद से स्वयंसेवक भाजपा से दूर ही नजर आए.

उम्मीदवारों के चयन में भी संघ को किया दूर

संघ के कुछ कार्यकर्ताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस बार भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन में संघ को दरकिनार कर दिया था. इसके चलते संघ के लोगों में नाराजगी दिखी और जिसका असर नतीजों में देखने को मिला. उन्होंने बताया कि खुलकर किसी ने विरोध तो नहीं किया पर सपोर्ट के लिए भी उतना इफर्ट नहीं दिखाया.