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Resolve Tibet Act  क्या है जिस पर चिढ़ गया है चीन? दलाई लामा से अमेरिकी नेताओं की मुलाकात से लग रही मिर्ची!

Resolve Tibet Act: भारत में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल मौजूद है. यह टीम तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा से मुलाकात कर रही. तिब्बत को लेकर अमेरिकी संसद ने रिजॉल्ब तिब्बत एक्ट नाम का एक कानून पास किया है, जिस पर राष्ट्रपति जो बाइडेन के दस्तखत होने बाकी है. चीन इस पर एक टेंशन में आ गया है, उसने अमेरिका को साफ  कहा है कि जो बाइडेन इस कानून पर दस्तखत न करें. दलाई लामा से अमेरिकियों की मुलाकात भी चीन को नागवार गुजरी है.

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Edited By: Nilesh Mishra
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Courtesy: IDL

तिब्बत, दलाई लामा, भारत और अमेरिका. ये चार शब्द एक वाक्य में सुनकर ही चीन का खून खौल उठता है. अमेरिका की नेता नैंसो पेलोसी की अगुवाई में एक प्रतिनिधि मंडल इन दिनों भारत में है. इस प्रतिनिधि मंडल ने तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा से धर्मशाला में मुलाकात की है. इस दौरे पर हो रही मुलाकातों और वहां हो रही बातों से चीन को जबरदस्त मिर्ची लग रही है. इस दौरे पर रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर भी खूब बातें हो रही हैं, जिससे चीन और चिढ़ रहा है. चीन ने अमेरिका को धमकी भी दे डाली है कि वह इस कानून को लेकर आगे न बढ़े. बता दें जो बाइडेन की अगुवाई में अमेरिका कांग्रेस ने पिछले हफ्ते ही इस रिजॉल्व तिब्बत एक्ट को पास किया है. अब भारत में रह रहे तिब्बती लोगों ने भी इसके लिए अमेरिका को धन्यवाद कह डाला है.

बुधवार को धर्मशाला में आयोजित एक कार्यक्रम में अमेरिकी डेलिगेशन को धन्यवाद दिया गया और उन्हें सम्मानित भी किया गया. इस दौरान सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन के सिक्योंग पेंगा त्सेरिंग ने कहा, 'हम यहां इकट्ठा हुए हैं ताकि इन डेलिगेट्स को धन्यवाद कह सकें क्योंकि उन्होंने अमेरिका कांग्रेस में द रिजॉल्व तिब्बत एक्ट को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई है. यह हमारे लिए बेहद खास है. आपको (अमेरिकी डेलिगेट्स को)  भी अमेरिकी सीनेट में इसे पास कराने के लिए बहुत ऊर्जा की जरूरत है.'

भारत आते ही अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने ने कहा कि जल्द ही अमेरिकी राष्ट्रपति रिजॉल्ब तिब्बत एक्ट पर दस्तखत कर देंगे. बता दें कि यह एक्ट चीन से मांग करता है कि वह फिर से तिब्बती नेताओं से बातचीत करे और उनकी सरकार को लेकर जारी विवाद का हल वार्ता के जरिए निकाले. यानी अमेरिका इस विवाद में मध्यस्थता करने की कोशिश में है ताकि तिब्बत के लोगों को उनका हक मिल सके और चीन भी इस बात पर मान जाए. अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने यह मानने से इनकार किया है कि तिब्बत शुरू से ही चीन का हिस्सा रहा है.

चीन को क्यों आ रहा है गुस्सा?

दरअसल, चीन हमेशा से तिब्बत को अपना हिस्सा बताता रहा है. ऐसे में तिब्बत या उससे जुड़ी किसी भी चर्चा को वह अपने देश में दूसरों का हस्तक्षेप मानता है. साथ ही, चीन का नेतृत्व दलाई लामा या भारत में रहकर तिब्बत के हक की बात करने वाले लोगों को बिल्कुल भी नहीं पसंद करता है. वह दलाई लामा से कभी भी बात नहीं करना चाहता है. यही वजह है कि अमेरिका के इस प्रस्ताव पर वह बिल्कुल भी तैयार नहीं है. साल 2010 के बाद से इन दो पक्षों के बीच कोई बातचीत भी नहीं हुई है. यही वजह है कि चीन जो बाइडेन को सलाह दे रहा है कि वह इस रिजॉल्ब तिब्बत एक्ट पर दस्तखत न करें.

दूसरी तरफ, अमेरिका प्रतिनिधिमंडल भारत में दलाई लामा से मिला और उसने तिब्बती लोगों के हक की बात करके चीन को और गुस्सा दिला दिया है. दरअसल, अमेरिका के एक एक्ट में उन क्षेत्रों को भी तिब्बत में शामिल करने की बात की गई है जो फिलहाल तिब्बत ऑटोनॉमस रीजन (TAR) से बाहर हैं और चीन के कब्जे में हैं. निर्वासन में रह रहे तिब्बती नेताओं का कहना है कि तिब्बत में TAR के अलावा क्विंघाई, सिचुआन, गांसू और युनन जैसे क्षेत्र भी आते हैं.बता दें कि चीन ने साल 1965 में TAR की स्थापना की थी.

इस एक्ट पर जो बाइडेन के दस्तखत होते ही यह कानून बन जाएगा. इसके जरिए तिब्बत को धनराशि भी मुहैया कराई जाएगी ताकि वह चीन के 'भ्रामक प्रचारों' का मुकाबला कर सके. यानी अमेरिका सीधे तौर पर दलाई लामा के गुट को उकसा रहा है जिसे चीन एक चुनौती के रूप में देख रहा है.बता दें कि चीन आधिकारिक तौर पर तिब्बत को शिजांग कहता है इसीलिए वह अमेरिका से कह रहा कि वह शिजांग में कोई दखल न दे. उसने अमेरिका को स्पष्ट तौर पर कहा है कि शिजांग की शांति को भंग करने और उसे कंट्रोल करने की कोशिशें न की जाएं, ऐसी कोशिशें कभी कामयाब नहीं होंगी.

भारत कैसे आए थे दलाई लामा?

तिब्बत की यह जंग लगभग 6 दशक पुरानी है. 1950 में चीन ने सेना भेजकर तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. 1954 में दलाई लामा ने चीन के नेताओं से मुलाकात की. उन्होंने कोशिशें कीं कि चीन मान जाए और तिब्बत को आजाद कर दे. हालांकि, चीन नहीं माना. धीरे-धीरे दलाई लामा चीनी सत्ता के निशाने पर आते गए. चीन ने उन सभी को टारगेट करना शुरू कर दिया जो तिब्बत को आजाद बनाना चाहते थे. 10 मार्च 1959 को ल्हासा में एक सांस्कृतिक समारोह रखा गया और दलाई लामा को बुलाया गया. दलाई लामा के समर्थकों का मानना था कि यह चीन की साजिश है और उन्हें गिरफ्तार करने की तैयारी की गई है.

चीन ने यह भी कहा था कि दलाई लामा इस कार्यक्रम में अपने अंगरक्षकों के बिना ही आएं. इससे शक और गहराया. आखिर में तय हुआ कि दलाई लामा नहीं जाएंगे. लोगों की भीड़ ल्हासा में दलाई लामा के महल के बाहर जुटी थी. इसी का बहाना बताया गया कि भीड़ के कारण वह अपने घर से नहीं निकल पा रहे हैं. धीरे-धीरे खबरें आने लगीं कि चीनी सेना ल्हासा को घेर रही है और जल्द ही कुछ बड़ा होने वाला है. 17 मार्च को दलाई लामा ने अपने परिवार के साथ भेष बदलकर अपना महल छोड़ दिया. इसकी पुष्टि खुद दलाई लामान ने अपनी आत्मकथा में की है.

मसूरी में हुई थी पंडित नेहरू और दलाई लामा की मुलाकात

25 मार्च को अमेरिकी एजेंसी ISI को संदेश भेजा गया कि दलाई लामा सुरक्षित हैं. दलाई लामा ने पंडित नेहरू तक संदेश भिजवाया कि वह भारत में शरण चाहते हैं. 31 मार्च 1959 को दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग से भारत में प्रवेश किया. पंडित नेहरू की ओर से टी एस मूर्ति ने उनका स्वागत किया. दलाई लामा के परिवार के अलावा बाकी लोगों के हथियार भारतीय प्रशासन ने ले लिए. कुछ दिन तक दलाई लामा और उनके साथ आए लोग तवांग में ही रहे. फिर उन्हें बोमडिला ले जाया गया. 18 अप्रैल को दलाई लामा मसूरी के लिए रवाना हुए. 24 अप्रैल 1959 को पंडित नेहरू मसूरी पहुंचे और दलाई लामा से मुलाकात की. उधर, दलाई लामा के बच निकलने का गुस्सा चीन ने तिब्बती लोगों पर निकाला और जमकर अत्याचार किए.

19 मार्च 1959 को चीन की हजारों महिलाएं सड़कों पर उतर आईं और दलाई लामा के समर्थन में नारेबाजी की. चीनी सेना ने दलाई लामा के महल नोरबुलिंगका पर गोले बरसाए. 15वीं शताब्दी का बना तिब्बती मेडिकल कॉलेज तबाह हो गया. दलाई लामा के समर्थकों पर गोली चलाई गई. 24 मार्च तक तिब्बती लोगों के विद्रोह को कुचल दिया गया और 28 मार्च तक स्थानीय सरकार को बर्खास्त कर दिया गया.