Lok Sabha Elections 2024 : बिहार में नीतीश कुमार के द्वारा कई बार पाला बदलने का बाद अब बिहार में NDA की सरकार है. वहीं सीएम की कुर्सी पर नीतीश कुमार हैं. इसके बाद भी बिहार में एनडीए के ज्यादतर सांसदों को अपनी टिकट कटने का डर सता रहा है. भाजपा के सांसदों को अपनी उम्र और क्षेत्र में उनकी सक्रियता या उपलब्धियों को लेकर दुविधा है.
एनडीए के उन सांसदों को ज्यादा डर सता रहे है, जिनकी उम्र 72 साल से अधिक है. अगर उम्र वाला फार्मूला लागू हुआ तो भाजपा के तीन सांसदों रमा देवी (शिवहर) राधा मोहन सिंह (पूर्वी चंपारण) और गिरिराज सिंह (बेगूसराय) टिकट से वंचित हो जाएंगे. लेकिन ये सांसद अपनी उपब्धियों को सहारे खुद को दिलासा दिला रहे हैं.
पांच साल पहले बिहार से लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे बहुत सारे सांसद टिकट को लकेर दुविधा में हैं. दुविधा इस बात को लेकर है कि आखिर वोटरों का रुख उनकों लेकर क्या होगा. उम्मीदवार इस दुविधाओं से निजात पाने के लिए आला कमान नेताओं के दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं. इसके बाद भी उनको टिकट मिलने को लेकर कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है.
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां एडीए की एकतरफा जीत हुई थी. राज्य की 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी. महागठबंधन में कांग्रेस को केवल एक किशनगंज सीट पर सफलता मिली थी. इस सीट से मोहम्मद जावेद कांग्रेस के सांसद हैं. इनकी उम्मीदवारी निर्विवाद मानी जा रही है.
पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में लोजपा एक दल था, लेकिन अब वह दो भागों में बंट गया है. लोकसभा के रिकार्ड के अनुसार, चिराग पासवान लोजपा (आर) के इकलौते सांसद हैं. वहीं उनके चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की पार्टी रालोजपा के 5 सांसद हैं. ऐसे में यह तय होना बाकी है कि राजग में मुखिया की हैसियत रखने वाली भाजपा किस गुट को असली मानकर सीटों का बंटवारा करती है. ऐसे में दोनों गुटों के सांसदों के लिए तय नहीं है कि वे किस सीट से चुनाव लड़ेंगे.
बिहार में एनडीए में टिरट मिलने की गारंटी चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस की है. इनके बीच भी संघर्ष वाली स्थिति है. पारस और चिराग दोनों ही हाजीपुर सीट के लिए अड़े हैं. चिराग फिलहाल जमुई के सांसद हैं। हाजीपुर अभी पारस के कब्जे में है। दोनों गुटों के बाकी चार सांसदों-वीणा देवी, चंदन सिंह, प्रिंस राज और महबूब अली कैसर भी दुविधा में हैं। अगर चिराग की चली तो वे प्रिंस और चंदन सिंह को बेटिकट करने से परहेज नहीं करेंगे।
2019 में सीतामढ़ी सीट से जदयू की टिकट पर जीत दर्ज कराने वाले सुनील कुमार पिंटू बुरे फंसे हैं. फिलहाल वो बीजेपी में हैं. 2019 में भाजपा ने जदयू को सीतामढ़ी क्षेत्र के साथ उम्मीदवार भी दे दिया था. अगस्त 2022 में जदयू का भाजपा से अलगाव हुआ तो पिंटू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुखर विरोधी हो गए. उस अवधि में जदयू ने विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को सीतामढ़ी से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि वे क्षेत्र में सक्रिय हैं.
ऐसी बाते सामने आ रही हैं कि 72 साल की उम्र पार कर चुके सांसदों को अब उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा. अगर यह फार्मूला लागू हुआ तो भाजपा के तीन सांसद रमा देवी (शिवहर), राधा मोहन सिंह (पूर्वी चंपारण) एवं गिरिराज सिंह (बेगूसराय) को टिकट नहीं मिलेगा. मगर, यह चर्चा इन सांसदों को दिलासा देती है कि अच्छी उपलब्धियां उन्हें उम्र की सीमा से राहत देंगी. उम्र के अलावा भाजपा के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर भी कुछ सांसदों को बेटिकट किया जा सकता है.
बिहार में भाजपा या एनडीए गठबंधन के कई सारे ऐसे सांसद ऐसे हैं, जिनकी उम्र 65 साल के पार पहुंच गई है. बीजेपी 65 साल से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट नहीं देती और उम्र दराज उम्मीदवारों की जगह युवा उम्मीदवारों को मौका देती है. इसके अलावा बीजेपी सांसदों की दुविधा उम्र के अलावा क्षेत्र में उनकी सक्रियता और उपलब्धियों को लेकर है.
अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी सभी उम्र दराज और वर्तमान सांसदों को टिकट दे देती है तो नए लोगों को अवसर नहीं मिलेगा. एक फार्मूला यह भी कि लगातार तीन बार सांसद रहे लोग बेटिकट हों जाएंगे. ऐसी सूचनाएं नए लोगों में उम्मीद जगाती हैं तो पुराने सांसदों को निराश भी करती हैं. पिछले चुनाव में जदयू के 17 में 16 उम्मीदवार सांसद चुन लिए गए थे.
जदयू ने बेटिकट करने का कोई फार्मूला नहीं बनाया है. उम्र की सीमा भी तय नहीं है। हां, उपलब्धियों के आधार पर कुछ सांसदों को छूट मिल सकती है. जदयू के टिकट का निर्णय मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ही करेंगे. वह घोषणा कर चुके हैं कि टिकट का वितरण किसी की राय पर नहीं करेंगे. इसका मतलब यह है कि जदयू के टिकट का निर्धारण जीत की संभावना और नेतृत्व के प्रति निष्ठा के आधार पर होगा.