वो हैवान जिसने बनाई थी कटे हुए सिरों की मीनार, दिल्ली में तीन दिन तक चला था कत्लेआम

भारत पर एक ऐसे मंगोली शासक ने आक्रमण किया था. जिसने तीन दिन तक लगातार कत्लेआम कर ऐसा कोहराम मचाया कि उससे उबरने में दिल्ली को 100 बरस लग गए. 

Mohit Tiwari

बात साल 1398 की है. जब समरकंद का शासक तैमूर लंग मध्य एशिया समेत ईरान और इराक जैसे इलाकों में लूटपाट करके वापस आ रहा था. जब वह अफगानिस्तान आया तो वहां उसके गुप्तचर ने दिल्ली के खराब हालात के बारे में उसको जानकारी दी. उसने बताया कि दिल्ली के बादशाह फिरोज शाह तुगलक की मौत के बाद के बाद से दिल्ली काफी कमजोर हो गई है. इसके साथ ही दिल्ली में तुगलक वंश की आंतरिक कलह भी चल रही है. आप इसका फायदा उठा सकते हैं. 

अमीर देश था हिंदुस्तान

ये बात उन दिनों की है जब हिंदुस्तान को काफी अमीर देश माना जाता था. दिल्ली की दौलत के बारे में सभी ने काफी चर्चे सुने थे. ऐसे में जब तैमूर लंग के गुप्तचर ने उसे दिल्ली के हालातों के बारे में बताया तो उसने वापस जाने का प्लान बदल दिया और दिल्ली की ओर कूच कर दी. 

प्रसिद्ध थे भारतीय हाथी

उन दिनों दिल्ली में भारतीय हाथी काफी प्रसिद्ध थे. तैमूर लंग ने खुद अपनी आत्मकथा में लिखा है कि 'मैंने दिल्ली के हाथियों के बारे में काफी सारी कहानियां सुन रखी थीं. उनके चारों ओर बख्तर लगा होता था और उनके बाहरी दांतों में जहर लगाया जाता था. जिससे वे युद्ध में सैनिकों को मार दिया करते थे. इन हाथियों पर तीर और भालों का कोई भी असर नहीं होता था. ये किसी को भी सूंड में लपेटकर कुचल दिया करते थे. सामने वाली सेना इन हाथियों के सामने परास्त हो जाती थी.'

दिल्ली की ओर कर दी कूच

तैमूर ने अपने सिपाहियों से कहा कि अगर दिल्ली जीत ली तो मालामाल हो जाएंगे वरना वापस आ जाएंगे. इसके बाद उसने दिल्ली की ओर कूच कर दी. अगस्त के महीने में वो सेना समेत दिल्ली की ओर निकला था. 

बेहद कठिन था रास्ता

इतिहासकार बताते हैं कि तैमूर के सामने दिल्ली जीतने से ज्यादा बड़ी चुनौती दिल्ली तक पहुंचने की थी. उसके पास एक लाख सैनिक थे. इसकी दोगुनी संख्या में घोड़े थे. इन घोड़ों पर राशन था और उसे 1000 किमी का रास्ता तय करना था. 

इतिहासकारों का कहना है कि तैमूर की सेना को लड़ने का भले ही अच्छा अनुभव था, लेकिन दिल्ली के लिए उन्हें जो रास्ता तय करना पड़ा उसका अनुभव उनको बिल्कुल भी नहीं था. रास्ते में मरते घोड़ों और सैनिकों को देखकर भी वह पीछे नहीं हटा और दिल्ली पहुंचा. 

फिर हुआ कत्लेआम

जब तैमूर लंग सिंधु नदी पर पहुंचा तो सारंग खां ने उसे आगे बढ़ने से रोका लेकिन उसकी सेना और उसने सारंग को सेना समेत कुचल दिया. 

हिंदुओं का बनाया था बंदी

दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते उसने एक लाख हिंदुओं को बंदी बना लिया था. हिंदु कहीं युद्ध के दौरान दिल्ली के मददगार न बन जाएं. इस डर से उसने एक -एक करके सारे 1 लाख हिंदू बंदियों को मार दिया. 

दिल्ली के बादशाह से हुआ युद्ध

17 दिसंबर 1398 में मल्लू खां और बादशाह महमूद शाह की सेना और तैमूर लंग में युद्ध हुआ. तैमूर की सेना ने हाथियों के सामने आग लगा दी, जिससे हाथी पीछे भागने लगे और अपनी ही सेना को कुचलने लगे. ऐसे में मल्लू खां और बादशाह महमूद जंगलों में भाग गए. ऐसे तैमूर ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया. 

कटे सिरों की बनाई मीनार

दिल्ली में मंगोली सैनिकों ने आतंक मचा दिया. महिलाओं को छेड़ने लगे. रुपया-पैसा और अनाज लूटने लगे. ऐसे में सड़कों पर जमकर खूनखराबा हुआ. जब ये बात तैमूर लंग को पता चली तो उसने सभी हिंदुओं को ढूंढ-ढूंढकर मारने का आदेश दे दिया. इसके बाद लगातार तीन दिनों तक कत्लेआम हुआ. इसके बाद उनके कटे हुए सिरों का एक ऊंचा सा ढेर लगा दिया गया. हालांकि, दिल्ली में तैमूर लंग महज 15 दिन ही रहा, लेकिन इतने कम समय में भी उसके सैनिकों ने दिल्ली को बेरहमी से लूटा. उसने दिल्ली को ऐसा दर्द दिया, जिससे उबरने में 100 साल से ज्यादा का समय लग गया. तैमूर लंग का मकसद सिर्फ दिल्ली को लूटना था.