हुस्न से लबरेज एक चेहरा, आंखों पर धूप से बचने के लिए बड़ा सा चश्मा, बेहतरीन कद और लंबी जुल्फें, पूरब और पश्चिम के मिले-जुले हुस्न वाली एक महिला जब खुली जीप में बैठकर पुरानी दिल्ली के मुस्लिम इलाकों से निकलती थी तो सब कांप जाया करते थे. जिसको भी उसके आने की खबर मिलती थी वो अपने पैर सिर पर रखकर दौड़ने लगता था. अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी हसीन महिला को देखकर आखिर लोगों में खौफ क्यों आ जाता था? तो इसका जवाब है नसबंदी और महिला का नाम है रुखसाना सुल्ताना.
रुखसाना के संजय गांधी के साथ रिश्तों को लेकर कुछ लोग चौंकाने वाले दावे करते हैं. वहीं कुछ लोग रुखसाना को संजय गांधी की दोस्त या प्रेमिका बताते हैं. रशीद किदवई अपनी किताब '24 अकबर रोड' में लिखते हैं कि हीरों के जेवरात की अपनी दुकान पर रुखसाना की मुलाकात संजय गांधी से हुई थी. रुखसाना ने संजय गांधी से कहा था कि वो उनकी खूबियों से बहुत प्रभावित हैं और वो उनके लिए काम करना चाहती हैं. चंद ही मुलाकातों में वो संजय गांधी के काफी करीब आ गई थीं. जिसके बाद संजय गांधी ने रुखसाना को इमरजेंसी के दौरान कच्ची आबादी और जामा मस्जिद के इलाके में भेजा जहां पर मुसलमान बड़ी तादाद में रहते थे.
1975 में इमरजेंसी के दौरान रुखसाना ने अहम किरदार अदा किया था. रुखसाना को लेकर कहा जाता है कि वो इंदिरा गांधी के बाद सबसे ताकतवर महिला थी. इस महिला के सामने मंत्री, मुख्यमंत्री समेत बड़े-बड़े नेता हाथ बांधे खड़े रहते थे. क्योंकि हर कोई इस महिला की अहमियत से वाकिफ था. रुखसाना के एक इशारे से पूरी कैबिनेट हिल जाया करती थी. कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि जो इंदिरा गांधी से नहीं डरता था, वे रुखसाना सुल्ताना की गहरी और गुस्सैली आंखों से कांप जाया करता था. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि रुखसाना से सभी लोग खुश थे. उनके बढ़े हुए कद की वजह से कई उन्हें नापसंद करते थे. रुखसाना से संजय गांधी की बीवी और मां इंदिरा गांधी भी खफा थीं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मैथ्यू कॉनली लिखते हैं कि झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने की मुहिम छेड़ी गई और जिन लोगों को बेघर किया जा रहा था उनसे कहा गया था कि उन्हें तब तक दूसरी जगह घर नहीं बनाने दिया जाएगा तब तक वे नसबंदी नहीं कराते. कई कस्बों और शहरों में तो लोगों पर सिर्फ इसलिए गोलियां चलाई गईं ताकि नसबंदी वाले कैंप चलते रहें. कहा जाता है कि इस कार्रवाई में रुखसाना अहम किरदार अदा कर रही थीं. क़िदवई के अनुसार, एक समय पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ आठ हज़ार पुरुषों की नसबंदी कराने के बदले रुखसाना को कथित तौर पर 84,000 रुपये भी दिए गए थे.
थोड़ा आगे बढ़ें तो 1977 में लोकसभा चुनाव हुए कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1980 में संजय गांधी भी प्लेन हादसे में मारे गए. हालांकि, रुखसाना को अंदाजा हो गया था कि उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं लेकिन उन्होंने चालाकी से खुद को इंदिरा गांधी का करीबी बना लिया. रुखसाना इंदिरा गांधी के करीब तो आ गई थीं लेकिन अब उन्हें पार्टी में वो इज्ज़त नहीं मिलती थी जो संजय गांधी के वक्त में मिलती थी. संजय गांधी के देहांत के 4 साल बाद इंदिरा गांधी को मार दिया गया और फिर कांग्रेस की कमान राजीव गांधी के हाथों में आई उन्होंने रुखसाना को पार्टी से कुछ इस तरह बाहर किया जैसे दूध में पड़ी हुई मक्खी को निकालकर फेंकते हैं.