History of Ibn Battuta : ('इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अबुल्लाह') यह कोई वाक्य नहीं बल्कि एक व्यक्ति का नाम है. एक ऐसा व्यक्ति जो 14वीं सदी का यात्री था. विश्व भ्रमण करने वाले खानाबदोशों में आज भी इब्न बतूता का नाम सर्वोपरि है. इतिहासकारों की मानें तो इस जांबाज यात्री ने महज 28 साल की उम्र में ही 75 हजार मील का सफर किया था.
उत्तर अफ्रीका में मोरक्को के तांजियर में 24 फरवरी 1304 ई. में इब्न बतूता का जन्म हुआ था. यह एक यात्री था. कहा जाता है कि 1334ई. में यह यात्री मक्का-मदीना, ईरान, क्रीमियां, खीवा, बुखारा होता हुआ अफगानिस्तान के रास्ते भारत के सिंध प्रांत में पहुंचा था.
ये बात उस समय की है जब दिल्ली में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का राज हुआ करता था. इब्न बतूता जब दिल्ली आया तो उसने तुगलक के यहां पर नौकरी करने का सोचा. इसके साथ ही उसने मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में शाही काजी का पद 12 हजार दिनार की पगार पर स्वीकार कर लिया. माना जाता है कि तुगलक इस्लामिक दुनिया का सबसे अमीर शासक था. तुगलक के लिए इब्न बतूता ने तो यहां तक लिखा है कि 'सम्राट सबके लिए एक जैसा है. वह रोज किसी भिखारी को अमीर बनाता है और हर रोज किसी न किसी आदमी को मृत्यु दंड देता है. एक बार सम्राट ने अपनी ही गलती पर खुद को 21 छड़ी से मार खाने की सजा दे डाली थी.'
इब्न बतूता के लिए सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखते हैं कि 'इब्न बतूता पहन के जूता निकल पड़ा तूफान में, थोड़ी हवा घुसी नाक में तो थोड़ी घुस गई कान में'
इब्न बतूता के समय का एक किस्सा है कि एक बार मुहम्मद बिन तुगलक ने एक सूफी संत को बुलावा भेजा तो संत ने वहां आने से मना कर दिया. इस पर तुगलक ने इसे अपनी शान में गुस्ताखी मानते हुआ संत का सिर धड़ से अलग करवा दिया था. इसके साथ ही उसने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की एक सूची बनवाई थी. इस सूची में इब्न बतूता का भी नाम था. इसके साथ ही तुगलक ने इब्न बतूता को 3 हफ्ते तक नजरबंद रहने की सजा सुनाई थी.
जब इब्न बतूता 3 हफ्ते तक नजरबंद रहा तो उसको शक हो गया था कि तुगलक उसको भी मरवा देगा. इस कारण वह दिल्ली से भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन हर कोशिश में वह नाकाम हो गया.
इब्न बतूता ने तुगलक को सलाह देते हुए कहा कि उसे चीन के राजा के पास अपना एक दूत भेजना चाहिए. इस बात पर तुगलक दूत को भेजने के लिए राजी हो गया और उसने इब्न बतूता को तोहफा देकर चीन के लिए रवाना कर दिया. भागने का यह अच्छा मौका पाकर 1341ई. में इब्न बतूता भारत से भाग गया.