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BJP से प्यार, फिर भी तकरार, कौन हैं राजस्थान के लिए गुजरात और महाराष्ट्र तक प्रचार करने वाले रविंद्र सिंह भाटी?

Ravindra Singh Bhati: राजस्थान की शिव विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी अब लोकसभा चुनाव में भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतर गए हैं.

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Edited By: Nilesh Mishra
Ravindra Singh Bhati
Courtesy: Social Media

खांटी राजस्थानी अंदाज, चेहरे पर चमकता आत्मविश्वास और पीछे हजारों समर्थकों की भीड़. राजस्थान में बीते कुछ महीनों से एक चेहरा लगातार छाया है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बार-बार रविंद्र सिंह भाटी को टिकट नहीं दे रही है. नाराज होने के बावजूद रविंद्र सिंह भाटी बीजेपी के करीबी बने हुए हैं और चुनाव दर चुनाव मुश्किलें पैदा करके भी प्यार जता रहे हैं. पिछले साल राजस्थान के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते रविंद्र सिंह भाटी अब लोकसभा चुनाव में भी उतर गए हैं. हैरानी की बात यह है कि वह अपने लोकसभा क्षेत्र बाड़मेर-जैसलमेर में तो प्रचार कर ही रहे हैं, वह वोट मांगने गुजरात और महाराष्ट्र तक भी जा रहे हैं.

यह कहानी शुरू होती है साल 2019 में जोधपुर यूनिवर्सिटी से. छात्रसंघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की ओर से रविंद्र सिंह भाटी अपना दमखम लगा रहे थे. हालांकि, ABVP ने उन्हें टिकट नहीं दिया. चुनाव के लिए पूरी तैयारी कर चुके रविंद्र सिंह भाटी न सिर्फ मैदान में उतर गए बल्कि निर्दलीय होकर भी बाजी मार ली. बाड़मेर के एक शिक्षक के घर में पैदा हुए रविंद्र सिंह भाटी इन दिनों चर्चा का केंद्र बने हुए हैं.

मोदी के मंत्री को दे डाली चुनौती

ABVP में रहते हुए विरोध करने वाले रविंद्र सिंह भाटी बीजेपी में शामिल हुए थे. उन्हें उम्मीद थी कि शिव विधानसभा सीट से बीजेपी उन्हें टिकट दे देगी. 2023 में हुए चुनाव में बीजेपी ने रविंद्र को टिकट न देकर स्वरूप सिंह खारा को चुनाव में उतारा. रविंद्र सिंह ने एक बार फिर बगावत की और निर्दलीय चुनाव लड़ गए. यह चुनाव इतना रोचक हुआ कि रविंद्र सिंह भाटी 79 हजार वोट पाकर चुनाव जीते. दूसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार फतेह खान को 75 हजार वोट मिले. कांग्रेस के अमीन खान को 55 हजार तो बीजेपी के स्वरूप सिंह खारा को 22 हजार वोट ही मिले.

विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के बावजूद रविंद्र सिंह भाटी बीजेपी के विरोध में नहीं गए. गाहे-बगाहे वह बीजेपी नेताओं से मिलते रहे. इस बार उन्होंने अपनी विधानसभा को मिलाकर बनने वाली बाड़मेर-जैसलमेर की लोकसभा सीट पर दावा ठोंका. रविंद्र को पूरी उम्मीद थी कि तीसरी बार उन्हें नकारा नहीं जाएगा. हालांकि, इस बार भी बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और केंद्र सरकार के मंत्री और यहां के मौजूदा सांसद कैलाश चौधरी को एक बार फिर से टिकट दे दिया. रविंद्र भाटी फिर नहीं माने और अब लोकसभा चुनाव में भी उतर गए हैं.

कौन हैं रविंद्र सिंह भाटी?

एक शिक्षक के बेटे रविंद्र सिंह भाचटी बाड़मेर के दूधोड़ा गांव के रहने वाले हैं. पास के गांव से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी पहुंचे तो ABVP के जरिए वह छात्र राजनीति में उतर गए. टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और यूनिवर्सिटी के 57 साल के इतिहास में पहली बार चुनाव जीतने वाले निर्दलीय उम्मीदवार बने. कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ उन्होंने जमकर छात्रों के मुद्दे उठाए. धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ी और पूरे राजस्थान में लोग उन्हें पहचानने लगे.

साल 2022 में रविंद्र भाटी ने अपने दोस्त अरविंद सिंह भाटी को भी छात्रसंघ का चुनाव लड़वाया और जीत भी हासिल की. अब लोकसभा चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी के उतरने से इस सीट पर बीजेपी की चिंताएं बढ़ गई हैं. बीते कुछ दिनों में वह बेंगलुरु, सूरत और पुणे जैसे शहरों में जाकर अपनी सभाएं कर चुके हैं. 

गुजरात और महाराष्ट्र में प्रचार क्यों?

अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए रविंद्र सिंह भाटी ऐसे तरीके अपना रहे हैं जिसे देखकर हर कोई हैरान है. राजस्थान में अपनी शानदार सभाएं करने वाले रविंद्र अब कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात के उन शहरों में जाकर सभाएं कर रहे हैं, जहां उनकी लोकसभा सीट के प्रवासी लोग रहते हैं. बीते कुछ दिनों में रविंद्र सिंह भाटी ने बेंगलुरु, पुणे, मुंबई और सूरत शहर में सभाएं की हैं. इन सभाओं में बंपर भीड़ देखी जा रही है.

रविंद्र की सभाओं में हर वर्ग के लोग भी आ रहे हैं. खांटी राजस्थानी भाषा में बोलने वाले रविंद्र लोगों से सीधे कनेक्ट करते हैं और जनता के मुद्दों को उठाते हैं. ऐसे में अब यह देखना काफी रोचक होगा कि वह इस भीड़ को वोटों में बदलकर संसद जा पाएंगे या फिर वह विधानसभा में ही रह जाएंगे.