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नीतीश के फेवरेट और शिक्षा माफियाओं के खौफ का कारण... जानें कौन हैं हमेश सुर्खियों में रहने वाले केके पाठक?

K. K Pathak: कभी लालू यादव से तकरार तो कभी डिप्टी सीएम लीगल नोटिस भेजना... इस तरह के फैसलों से IAS केके पाठक हमेशा चर्चा में रहे हैं. ताजा मामला उनके और बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री और पटना के डीएम के बीच तकरार का है.

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Edited By: Aparajita Singh
K.K Pathak

केशव कुमार पाठक, ये नाम आज कल बिहार की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में काफी गूंज रहा है. इस नाम की गूंज सबसे ज्यादा बिहार के शिक्षा माफियाओं को सुनाई दे रही है. केशव कुमार पाठक (के.के पाठक) बिहार के शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव हैं. केके पाठक जब भी, जिस विभाग में रहें, अपने आदेशों और त्वरित फैसलों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे हैं. अब जब शिक्षा विभाग बिहार का हो और उसके मुखिया केके पाठक हो, तो इनका सुर्खियों में बने रहना तो तय था. एक ओर जहां के.के पाठक बिहार की सुस्त शिक्षा व्यवस्था में नई ऊर्जा लाने का प्रयास कर रहे हैं, तो वहीं उनके कुछ फैसलों ने शिक्षा माफिया के रातों की नींद उड़ा दी है. हाल ही में एक मामले को लेकर वे एक बार फिर सुर्खियों में बने हुए हैं. 

क्या है ताजा मामला?  

वैसे तो केके पाठक हमेशा ही विवादों में बने रहते हैं. लेकिन इस बार मामला वर्चस्व का है. दरअसल, ये पूरा मामला स्कूलों की छुट्टियों को लेकर है. पटना के जिलाधिकारी यानी डीएम चंद्र शेखर ने धारा 144 के तहत पटना जिले के सभी प्राइवेट और सरकारी स्कूलों (प्री-स्कूल, आंगनबाड़ी केन्द्रों एवं कोचिंग सेंटर) में कक्षा आठवीं तक शैक्षणिक गतिविधियों पर लगाए गए बैन को 23 जनवरी तक बढ़ाने का आदेश दिया था. जिसके विरोध में पाठक ने राज्य के सभी प्रमंडलीय आयुक्त को पत्र लिख कर इस आदेश पर सवाल उठा दिया. 

केके पाठक ने पत्र में कहा था कि डीएम ने जिस तरह का आदेश धारा-144 में पारित किया है, उसमें केवल स्कूलों को ही बंद किया गया है. जबकि अन्य संस्थानों का जिक्र नहीं किया गया है. उन्होंने जिले के कोचिंग संस्थाओं, सिनेमा हॉल, मॉल, दुकानें या व्यावसायिक संस्थानों इत्यादि की गतिविधियों या समयावधि को नियंत्रित नहीं करने को लेकर सवाल उठाया. उन्होंने जिला प्रशासन से सवाल पूछा कि ये कैसी सर्दी या शीतलहर है, जो केवल विद्यालयों में ही गिरती है और कोचिंग संस्थाओं में नहीं गिरती?

इसके बाद जहां भी इस तरह के आदेश जारी किए गए थे, वापस ले लिए गए. इसके साथ ही ये कहा गया कि बात-बात पर स्कूलों को बंद रखने की परंपरा पर रोक लगनी चाहिए और इस तरह का आदेश देने से पहले शिक्षा विभाग की अनुमति लेना अनिवार्य है. इस मामले ने करवट तब बदली, जब पटना के जिलाधिकारी ने इसे मानने से इंकार करते हुए कहा कि इसमें न तो विभागीय आदेश लेने का प्रावधान है और न ही इसे किसी गैर-न्यायिक आदेश या पत्र से बदला जा सकता है. सिर्फ सक्षम न्यायालय ही आदेश की न्यायिक समीक्षा कर सकता है.

कौन हैं केके पाठक?

1990 बैच के आईएएस अधिकारी केके पाठक उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. उनकी छवि एक त्वरित और कड़े फैसले लेने वाले आईएएस अधिकारी वाली रही है. बड़े मंत्रियों और राजनेताओं से उनकी तकरार की वजह से वो हमेशा विवादों में रहे हैं. अपने फैसलों से वो लालू यादव से भी लड़ चुके हैं और इतना ही नहीं, साल 2016 में उन्होंने पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी को मानहानि का लीगल नोटिस ही भिजवा दिया था. 

विवादों से है पुराना रिश्ता 

केके पाठक सबसे पहले चर्चा में तब आए थे, जब 1996 में उन्होंने एमपी लैड के पैसों से बने एक अस्पताल का उद्घाटन एक सफाई कर्मचारी से करवा दिया था. इसके अलावा 2018 में पटना हाईकोर्ट ने केके पाठक पर 1.75 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. साथ ही SBI के 7 बैंक मैनेजरों ने उन पर मनमानी का आरोप लगाया था. स्टैंप ड्यूटी देर से जमा करने से जुड़े इस मामले में कोर्ट ने आरोप सही पाए थे. पटना हाईकोर्ट में हाजिरी ना लगाने को लेकर वॉरंट से लेकर विभागीय बैठक में अपशब्दों के कथित इस्तेमाल तक केके पाठक के खिलाफ आरोपों की एक लंबी फेहरिस्त है. 

नीतीश कुमार ने की थी तारीफ

के.के पाठक  के कड़े फैसले से एक ओर जहां शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा है, वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के.के पाठक से बेहद खुश हैं. नीतीश कुमार ने बिहार में शिक्षक भर्ती को लेकर के.के पाठक की खुल कर तारीफ की थी. के.के पाठक नीतीश के कितने चहेते हैं, इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि नीतीश ने के.के पाठक की सहूलियत के लिए शिक्षा मंत्री को ही बदल दिया. दरअसल पूर्व शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर और के.के पाठक के बीच तनातनी चल रही थी. ऐसा माना जा रहा था कि इसी वजह से के.के पाठक छुट्टी पर चले गए हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया कि नीतीश कुमार भी शिक्षा मंत्री और के.के पाठक के बीच तकरार से बेहद खफा थे. खास बात ये है कि जिस दिन के.के पाठक अपनी छुट्टी से लौटे, उसी दिन चंद्र शेखर को शिक्षा मंत्री के पद से हटा कर आलोक मेहता को कमान दे दी गई. इसके बाद अब शिक्षा विभाग की पूरी कमान के.के पाठक के हाथों में आ गई है. 

सिर्फ छुट्टी पर जाने से मच गया था हड़कंप 

के.के पाठक का खौफ कहें या जनता में उनकी अच्छी छवि, पिछले दिनों जब के.के पाठक 8 दिन की छुट्टी पर गए थे, तो शिक्षा विभाग से आम जनता और शिक्षा माफियाओं तक में हड़कंप मच गया था. आम जनता में निराशा तो शिक्षा माफिया में खुशी का माहौल था. लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर नहीं टिकी. दरअसल, के.के पाठक आधिकारिक रूप से 8 जनवरी से 16 जनवरी 2024 तक आधिकारिक छुट्टी पर थे. उनके छुट्टी पर जाते ही ये खबर फैल गई कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उनके छुट्टी पर रहने के दौरान शिक्षा विभाग के ही कुछ तत्वों द्वारा उनके कार्यालय से उनका नेम प्लेट हटा दिया गया. उसके बाद जैसे ही सूचना मिली कि के.के पाठक कार्यालय आ रहे हैं, आनन-फानन में उनके नेम प्लेट को लगा दिया गया. 

शिक्षा माफियाओं का सिरदर्द बने के.के पाठक

के.के पाठक बिहार के शिक्षा माफियाओं के आंखों में सबसे ज्यादा खटक रहे हैं. के.के पाठक के अपर मुख्य सचिव बनने से उन लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है, जिन्होंने सालों से बिहार की शिक्षा पर कब्जा कर के उसे गर्त में ले जाने का काम किया है. केके पाठक ने आने के बाद जैसे ही 11वीं 12वीं और बाकी कक्षा के पढ़ाई का स्तर सुधारा, शिक्षा माफिया सक्रिय हो गए. ये सक्रियता सबसे ज्यादा तब बढ़ी, जब जब केके पाठक ने बॉयोमीट्रिक टेस्ट की जिम्मेदारी जिलों के जिलाधिकारियों को दे दी. उन्होंने इससे शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दूर कर दिया. इसके अलावा शिक्षकों की पोस्टिंग में जिला शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों को भी बाहर कर दिया गया है. 

खास बात ये है कि बिहार की आम जनता के.के पाठक के फैसलों को पसंद कर रही है. इसके साथ ही उनके आने के बाद स्कूलों में हुए बदलाव से खुश है. लेकिन यही बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही है. बिहार में शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार और बदलाव शिक्षा माफिया नहीं चाहते हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सालों बाद बिहार की मूर्छित शिक्षा व्यवस्था में संजीवनी लेकर आए के.के पाठक इसे फिर से जीवित कर पाते हैं या नहीं.