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इस राजपूत राजा के सामने थर-थर कांपता था सबसे क्रूर मुगल बादशाह, सिर्फ दोस्ती के लिए औरंगजेब से छेड़ा था युद्ध

Battle of Dharmatpur: भारतीय इतिहास में यूं तो कई युद्धों का जिक्र है पर 15 अप्रैल 1658 को मुगल बादशाह औरंगजेब और राजपूत राजा जसवंत सिंह के बीच धर्मतपुर के मैदान पर हुई जंग का खास महत्व है. आखिर क्यों इस युद्ध में राजा जसवंत सिंह ने जीत हासिल करने की योजना पर जाने के बजाय एक ऐसा फैसला लिया जिससे औरंगजेब की जीत तय हो गई. आइए एक नजर इतिहास के पन्नों पर डालते हैं.

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Edited By: India Daily Live
Aurangzeb vs Jaswant Singh

Battle of Dharmatpur: भारतीय इतिहास में 1658 का साल मुगल साम्राज्य के संघर्ष और राजपूत वीरता का पर्याय बन गया. इसी साल 15 अप्रैल को नर्मदा नदी के तट पर धर्मतपुर के मैदान में एक ऐसा युद्ध हुआ जिसने इतिहास की धारा को मोड़ दिया. ये युद्ध मुगल बादशाह औरंगजेब और राजपूत शिरोमणि, मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह के बीच लड़ा गया था. लेकिन इस युद्ध के पीछे का मकसद सिर्फ इतना ही नहीं था.

आंतरिक कलह से जूझ रहा था मुगल साम्राज्य

दरअसल, मुगल साम्राज्य उस वक्त उत्तराधिकार की लड़ाई से जूझ रहा था. शाहजहां बीमार पड़ चुके थे और उनके चार बेटों - दारा शिकोह, शुजा, शाह आलम और मुराद - के बीच सत्ता हथियाने की होड़ मची हुई थी. औरंगजेब, जो अपने कठोर रवैये और महत्वाकांक्षा के लिए जाना जाता था, इस लड़ाई में सबसे आगे था. उसने अपने भाइयों को कमजोर करने के लिए कूटनीति और युद्ध दोनों का सहारा लिया. 

दोस्ती की खातिर युद्ध में कूदे राजा जसवंत सिंह

वहीं दूसरी ओर, राजा जसवंत सिंह, जो न केवल वीर योद्धा थे बल्कि दूरदृष्टि रखने वाले राजनीतिज्ञ भी थे, उन्होंने दारा शिकोह का साथ दिया. दारा शिकोह को उदार शासक माना जाता था जो हिंदू धर्म को सम्मान देता था. राजा जसवंत सिंह को उम्मीद थी कि दारा शिकोह के राज में मुगलों और राजपूतों के बीच बेहतर संबंध बनेंगे.

युद्ध से पहले, राजपूत सेना अपनी पारंपरिक वीरता और घुड़सवार दलों के लिए विख्यात थी. मगर मुगल सेना तोपखाने और आधुनिक हथियारों से लैस थी. सैन्य रणनीति में भी मुगल सलाहकार माहिर थे. जसवंत सिंह के सामने चुनौती थी कि किस तरह से कम संख्या में होने के बावजूद मुगलों का सामना किया जाए. 

अगर मानी होती ये बात तो हार सकता था औरंगजेब

राजा जसवंत सिंह के सलाहकारों ने रात के समय छापेमार कार्रवाई कर मुगल तोपखाने को निष्क्रिय करने का सुझाव दिया, लेकिन राजा जसवंत सिंह ने इसे वीरता के सिद्धांतों के विरुद्ध माना. उनका मानना था कि युद्ध कौशल से ही नहीं, शौर्य और सम्मान से भी विजय प्राप्त की जा सकती है.

युद्ध के दिन धूप आग बरसा रही थी. खुले मैदान में दोनों सेनाएं आमने-सामने आईं. राजपूत वीरों ने अदम्य साहस का परिचय दिया. युद्ध भूमि पर तलवारें गरजाईं और वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धाओं का रक्त धरती को सींचने लगा. परंतु मुगल सेना की तोपों की अविरल साला रोक पाना मुश्किल था. 

इस वजह से एकतरफा हो गया धर्मतपुर का युद्ध

वीरतापूर्वक लड़ने के बाद भी राजा जसवंत सिंह को हार का सामना करना पड़ा. हजारों राजपूत वीर धर्मयुद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए. राठौड़ वंश के रतन सिंह राठौड़ और कोटा के राव मोखंद दास हाड़ा जैसे प्रमुख राजपूत सरदार भी इस युद्ध में शहीद हो गए.

धर्मतपुर का युद्ध मुगल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है. इस जीत ने औरंगजेब को अपने भाइयों पर निर्णायक बढ़त दिलाई और अंततः उसे मुगल साम्राज्य का बादशाह बना दिया. वहीं दूसरी ओर, इस युद्ध ने राजपूत राजाओं के शौर्य और बलिदान की गाथा को इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित कर दिया.