अक्साई चिन को नेहरू ने बताया था बंजर, मंत्री ने संसद में अपना गंजा सिर दिखाया और बोले, 'इसे भी चीन को दे दें?'

Mahavir Tyagi Memorable Comment on Aksai China: 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद जब संसद में बहस हो रही थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अक्साई चिन को लेकर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि वहां तिनके के बराबर भी घास तक नहीं उगती, वो बंजर इलाका है. लेकिन उनके ही मंत्रिमंडल के एक सदस्य, महावीर त्यागी, नेहरू के इस बयान का विरोध किया.

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Vineet Kumar

Mahavir Tyagi Memorable Comment on Aksai China: 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद जब संसद में बहस हो रही थी, तब विपक्ष ने अक्साई चिन (चीन के कब्जे वाला जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र) चीन के कब्जे में जाने पर हंगामा मचा दिया था. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि अक्साई चिन में घास का तिनका भी नहीं उगता, वो बंजर इलाका है.

लेकिन तत्कालीन मंत्री और स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने नेहरू के इस बयान का विरोध करते हुए अपना गंजा सिर दिखाते हुए कहा, "यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं?" त्यागी का यह जवाब नेहरू के लिए शर्मनाक था. यह घटना त्यागी के बेबाक और निडर व्यक्तित्व का एक उदाहरण है.

महावीर त्यागी, जिन्हें प्यार से "बाबा त्यागी" भी कहा जाता था, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर सेनानी, सख्त नेता और प्रखर राष्ट्रवादी थे. उनका जन्म 31 दिसंबर 1899 को मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था.

अपने विद्रोही नेचर के लिए थे मशहूर

नेहरू के विरोध में आवाज: 1962 के युद्ध के अलावा भी, त्यागी ने कई मौकों पर नेहरू की नीतियों का विरोध किया था. उन्होंने नेहरू की 'अहिंसा' की नीति पर सवाल उठाए और युद्ध में चीन का मुकाबला करने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की.

धारा 356 का विरोध: उन्होंने केरल की ईएस नम्बूरापाद की सरकार को पदमुक्त करने के लिए धारा 356 लगाने का विरोध किया था. उनका मानना था कि यह लोकतंत्र की हत्या थी.

कांग्रेस में आलोचना: उन्होंने कांग्रेस में बढ़ते जातिवाद और संप्रदायवाद की भी आलोचना की थी. उनका कहना था कि कांग्रेस यदि जातिवाद और संप्रदायवाद के जाल में फंस गई तो वह कभी भी देश की सच्ची सेवा नहीं कर पाएगी.

आपातकाल का विरोध: इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई आपातकालीन स्थिति का उन्होंने कड़ा विरोध किया था. उन्होंने इसे 'तानाशाही' करार दिया और नागरिक स्वतंत्रता के हनन के खिलाफ आवाज उठाई.

निडरता के एक नहीं कई उदाहरण

जेल में प्रताड़ना: 1928 में, जब त्यागी किसान आंदोलन में भाग ले रहे थे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर क्रूर अत्याचार किए गए. उनकी पसलियां टूट गईं और उन्हें बुरी तरह से पीटा गया. लेकिन त्यागी ने कभी भी अंग्रेजों के सामने झुकने से इनकार कर दिया.

संसद में विरोध: 1962 के युद्ध के बाद, जब नेहरू ने अक्साई चीन पर विवादित बयान दिया, तो त्यागी ने संसद में ही उनका विरोध किया. उन्होंने नेहरू को ललकारा और कहा कि वे देश के हितों को दांव पर नहीं लगा सकते.

देश के विकास में त्यागी का योगदान

स्वतंत्रता सेनानी: त्यागी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई बार जेल यात्रा की और अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया.

राजनीतिक नेता: स्वतंत्रता के बाद, त्यागी एक प्रमुख राजनीतिक नेता बन गए. उन्होंने कई मंत्रालयों में काम किया और पांचवें वित्त आयोग के अध्यक्ष भी रहे.

सामाजिक सुधारक: त्यागी एक सामाजिक सुधारक भी थे. उन्होंने जातिवाद और संप्रदायवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई.

व्यक्ति पूजा के खिलाफ और देशभक्ति का ज्वाला

महावीर त्यागी कांग्रेस के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने पैर छूने की परंपरा पर रोक लगाने की मांग की थी. उनका मानना था कि देश की सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है, व्यक्ति पूजा नहीं. उनके लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि था. देश की एक इंच जमीन भी किसी को देना उन्हें गवारा नहीं था, चाहे वो बंजर ही क्यों ना हो.

आज के दौर में त्यागी की विरासत

आज के राजनीतिक परिदृश्य में, जहां नेता अक्सर पार्टी लाइन के अनुसार चलते हैं और पार्टी नेतृत्व का विरोध करने से कतराते हैं, वहीं महावीर त्यागी जैसे नेताओं की कमी खलती है. उनकी बेबाकी और निष्ठा एक आदर्श है, जिससे वर्तमान राजनेता सीख सकते हैं.

महावीर त्यागी की विरासत देशभक्ति, निडरता और सत्यनिष्ठा की सीख देती है. उन्होंने हमें यह सिखाया कि सत्ता या पार्टी से ऊपर राष्ट्रहित सर्वोपरि है. उन्होंने साबित किया कि असहमति जताना कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है. आने वाली पीढ़ी के लिए त्यागी एक प्रेरणा हैं. उनका जीवन संघर्ष और निष्ठा का एक प्रतीक है, जो हमें यह याद दिलाता है कि सत्ता का सही इस्तेमाल किस तरह करना चाहिए.