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'फिलिस्तीन की जय' बोलकर ओवैसी ने मचाया हंगामा, जान लीजिए Palestine पर क्या कहते थे महात्मा गांधी

Gandhi On Palestine: 18वीं लोकसभा की कार्यवाही के दूसरे दिन एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ के बाद जय फिलिस्तीन का नारा लगा दिया. उनके इस नारे के बाद सदन में खासा हंगामा हो गया. बीजेपी के नेताओं ने उनके इस बयान पर आपत्ति जताई. बीजेपी ने उनके इस बयान को सदन के रिकॉर्ड से भी हटाने की मांग की है. देश की संसद में दिए गए बयान पर हुए संग्राम के बीच यह जानना अहम हो जाता है कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी फिलिस्तीन को लेकर क्या राय रखते थे?

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Shubhank Agnihotri
Gandhi
Courtesy: Social Media

Gandhi On Palestine: 18वीं लोकसभा की कार्यवाही के दूसरे दिन प्रोटेम स्पीकर महताब भर्तृहरि नए सांसदों को शपथ दिला रहे थे. इस दौरान एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी सांसदी की शपथ ली.ओवैसी ने शपथ लेने के बाद हंगामा खड़ा कर दिया. दरअसल एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने जय फिलिस्तीन का नारा लगा दिया. उनके इस नारे पर बीजेपी सांसदों ने जमकर हंगामा काटा और उनके बयान को संसद के रिकॉर्ड से बाहर करने की मांग कर डाली. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी ओवैसी के बयान पर प्रतिक्रिया दी. उनका कहना था कि ओवैसी को संसद के अंदर इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए. हालांकि इस हंगामे के बीच यह जानना अहम हो जाता है कि इजरायल फिलिस्तीन के विवाद पर महात्मा गांधी क्या कहते थे, उनका क्या रुख था. 

 

इजरायल फिलिस्तीन विवाद पर महात्मा गांधी की शुरुआत से ही नजर थी. वे यूरोप में यहूदियों की दशा से काफी ज्यादा प्रभावित थे. 1938 में जब वे सीमांत प्रदेश की यात्रा से लौटे तो उन्होंने इस विषय पर अपना पहला संपादकीय लेख लिखा. इस लेख का शीर्षक था 'ईसाइयत के अछूत'.  इसमें उन्होंने लिखा कि मेरी सारी सहानुभूति यहूदियों के साथ है. मैं साउथ अफ्रीका के दिनों से उन्हें जानता हूं, उनके जरिये ही मैनें उन पर हुई ज्यादतियों के बारे में जाना है. गांधी का कहना था कि ये लोग ईसाइयत के अछूत बना दिए गए हैं. यदि मुझे तुलना ही करनी है तो मैं कहूंगा कि यहूदियों के साथ ईसाइयों ने जैसा व्यवहार किया है वैसा ही हिंदुओं ने अछूतों के साथ किया है.

क्या मौज के लिए चाहिए दो घर? 

महात्मा गांधी का कहना था कि फिलिस्तीनी जगह उसी तरह से अरबों की है जैसे इंग्लैंड अंग्रेंजों का है फ्रांस फ्रांसीसियों का है. यह बेहद गलत होगा कि यहूदियों को जबरन अरबों पर थोप दिया जाए. सही तो यह होगा कि यहूदी जहां जन्में हैं वहां उनके साथ सम्मापूर्ण व्यवहार हो. उन्होंने कहा कि यदि यहूदियों को फिलिस्तीनी जगह ही चाहिए तो क्या यह उन्हें स्वीकार होगा कि दुनिया के अन्य हिस्सों से जबरन हटाया जाए, जहां वे आज हैं? या वे सिर्फ अपनी मौज के लिए दो घर चाहते हैं? 

जीतना चाहिए था अरबियों का दिल 

गांधी ने कहा कि यदि मैं यहूदी होता और जर्मनी में पैदा हुआ होता और वहां से अपनी आजीविका चला रहा होता तो मैं कहता कि जर्मनी भी मेरा वैसा ही घर है जैसा यह किसी जर्मन का है. मैं उसे चुनौती देता कि चाहें तो तुम मुझे गोली मार दो लेकिन मैं उनका भेदभाव पूर्ण व्यवहार स्वीकार नहीं करता. गांधी ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि फिलिस्तीनी इलाके में रहने वाले यहूदी गलत रास्ते पर जा रहे हैं. बाइबिल में जिस फिलिस्तीन की बात की गई है उसका कोई भौगोलिक आकार नहीं है. वे वहां अरबों की सदाशयता पर ही रुक सकते हैं. उन्हें अरबी लोगों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए. अरबियों के दिल में भी ईश्वर बसता है यह ईश्वर ठीक वैसा ही है जैसा यहूदियों के मन में बसता है. वे अरबी लोगों के सामने सत्याग्रह करें उनके खिलाफ एक अंगुली भी ना उठाएं. इसके बाद चाहें अरबी उन्हें समंदर में फेंक दें या गोलियों से भून डाले.

यहूदी क्यों लौटे फिलिस्तीन?

1946 में गांधी ने यहूदी और फिलिस्तीन शीर्षक से एक और संपादकीय लिखा. इसमें उन्होंने लिखा कि यहूदी और अरबों के बीच किसी भी विवाद पर मैं बोलने से बचता हूं लेकिन एक अखबार में इस पर छपी कुछ पंक्तियों ने मुझे इस पर बोलने को मजबूर कर दिया है. मेरा मानना है कि संसार ने यहूदियों के साथ ज्यादती की है. जहां तक मुझे पता है यूरोप के कई हिस्सों में यहूदी बस्तियों को घेटो कहा जाता है. उनके साथ जिस निर्दयतापूर्ण व्यवहार हुआ है यदि ऐसा ना होता तो कभी फिलिस्तीन इलाके में लौटने का सवाल ना पैदा होता. अपनी प्रतिभा विशिष्ट पहचान और आविष्कार के कारण सारी दुनिया ही उनका घर होती.यहूदियों की सबसे बड़ी गलती थी कि उन्होंने खुद को अमेरिका, इंग्लैंड की मदद से जबरन फिलिस्तीनी इलाके पर थोप दिया. 

गांधी ने पहले ही बता दिया था हल 

साल 1947 में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक रिपोर्टर दून कैंपबेल ने पूछा था कि आप फिलिस्तीनी समस्या का क्या समाधान देखते हैं? इस पर गांधी का जवाब था कि यह ऐसी समस्या बन गई है जिसका कोई हल नहीं है. यदि मैं यहूदी होता तो मैं उनसे कहता कि यह गलती कतई ना करना जिससे तुम आतंकी रास्ता अपना लो. ऐसा करके तुम अपने अस्तित्व को खतरे में डाल लोगे. उन्होंने कहा कि यहूदियों को आगे बढ़कर अरबियों से दोस्ती करनी चाहिए और उन्हें बगैर अमेरिका, ब्रिटेन की सहायता के बिना यहोवा के उत्तराधिकारियों से मिली सीख और विरासत संभालनी चाहिए. गांधी कैंपबेल से कहते-कहते कह गए कि यह मुद्दा ऐसी समस्या बन गया है जिसका करीब-करीब कोई हल नहीं है. 

अब भी बड़े पैमाने पर हो रही तबाही 

इजरायल का गठन 14 मई 1948 को हुआ, लेकिन इससे तीन महीने पहले ही भारत के शीर्ष नेता को गोली मारकर हत्या कर दी गई. गांधी ने जो इजरायल फिलिस्तीन को लेकर आज से दशकों पहले जो आशंका प्रकट की थी, उसको अब 78 साल हो गए हैं जो अब भी बदस्तूर जारी है. इजरायल और फिलिस्तीन के लोग आज भी युद्ध के साये में रहने को मजबूर हैं. विश्व की महाशक्तियां और दोनों पक्षों के सत्ताधीश यदि समझौता कर लें तो बड़े पैमाने पर हो रही मानवीय तबाही एक पल में रुक जाए.