Electoral Bonds Scheme: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसला में इलेक्ट्रोल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी. चीफ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे ने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग और सर्वसम्मत फैसले सुनाए.
पांच पॉइन्ट्स में समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में क्या कहा...
1. इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी दे चुनाव आयोग और SBI
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(SBI) को 2019 से अब तक सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी तीन हफ्ते में देने को कहा है. बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड एसबीआई द्वारा ही जारी किए जाते थे. इसके अलावा कोर्ड ने अब इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि ये बॉन्ड पूरी तरह से लेनदेन के लिए किए जाते हैं. इसके अलावा कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से इन जानकारियों को अपनी वेबसाइट पर पब्लिश करने का भी निर्देश दिया.
2. सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. मतदाताओं को जानकारी होनी चाहिए कि पार्टियों को कहां से चंदा मिल रहा है. चंदा मिलने की जानकारी सार्वजनिक ना करना नियमों के खिलाफ है और मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.
3. काले धन को रोकने के लिए और भी कई विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन को रोकने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा कई दूसरे विकल्प भी हैं. इस तरह की प्रक्रिया से काले धन को बढ़ावा ही मिलेगा और पारदर्शिता में कमी आएगी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम केवल इस आधार पर चुप नहीं रह सकते कि इसके दुरुपयोग की संभावना है. चुनावी बांड कोर्ट की राय में काले धन को रोकने का आधार नहीं है. सीजेआई ने यह भी कहा कि काले धन को रोकने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है.
4. आर्टिकल 19 (1)(A) का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड आर्टिकल 19 (1)(A) का उल्लंघन है. आर्टिकल 19 (1)(A) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. इसमें नागरिकों को सूचनाओं तक पहुंचने का भी अधिकार दिया गया है.
5. कंपनी अधिनियम में संशोधन पर जताई नाराजगी
चीफ जस्टिस ने कहा कि राजनीतिक प्रक्रिया पर किसी व्यक्ति के योगदान की तुलना में किसी कंपनी के योगदान का अधिक गहरा प्रभाव पड़ता है. कंपनी द्वारा योगदान पूरी तरह से एक व्यावसायिक लेनदेन है. कोर्ट ने कहा कि धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करता है.
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