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Explainer: सनातन धर्म में शंकराचार्य पद की क्या है महत्ता, जानें चारों मठों से जुड़ी हुई आदि काल की प्राचीन परंपरा?

सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सर्वोच्च माना जाता है. इस पद की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. आदि शंकराचार्य ने भारत के चार हिस्सों में चार मठों की स्थापना की थी. उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल है.

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Edited By: Avinash Kumar Singh
Adi Shankaracharya

नई दिल्ली: सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सर्वोच्च माना जाता है. इस पद की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. आदि शंकराचार्य ने भारत के चार हिस्सों में चार मठों की स्थापना की थी. उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल है. देश में इन दिनों चारों मठों के शंकराचार्य चर्चा के केंद्र में बने हुए है. इसकी वजह रामलला प्राण प्रतिष्ठा है. आईए हम चारों मठों के बारे में जानते है.  

गोवर्धन मठ 

ओडिशा के पुरी राज्य में गोवर्धन मठ स्थापित है. इसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं. भारत के पूर्वी भाग में गोवर्धन मठ है जो ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित है. इस मठ के अंतर्गत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद वन और आरण्य विशेषण लगाए जाते हैं. मठ का वेद ऋग्वेद को माना जाता है और मठ का महावाक्य प्रज्ञानं ब्रह्म है. 

शारदा मठ

शारदा मठ गुजरात के द्वारकाधाम में स्थित है. इस मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं. शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ और आश्रम सम्प्रदाय नाम का उपमा लगाया जाता है. मठ का वेद सामवेद को माना जाता है मठ का महावाक्य तत्त्वमसि है. 

ज्योतिर्मठ

उत्तरांचल के बद्रीनाथ में स्थित है ज्योतिर्मठ. यहां दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद गिरि, पर्वत एवं सागर संप्रदाय नाम का विशेषण लगाया जाता है. इस मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं. मठ का वेद अथर्ववेद को माना जाता है मठ का महावाक्य अयमात्मा ब्रह्म है. 

श्रृंगेरी मठ

दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ है. जिसके शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं. इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती या भारती का प्रयोग किया जाता है. मठ का वेद यजुर्वेद को माना जाता है और मठ का महावाक्य अहं ब्रह्मास्मि है. 

जानें कौन है आदि शंकराचार्य? 

सनातन धर्म में शंकराचार्य पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक थे. धार्मिक मान्यता में उन्हें भगवान शंकर का अवतार भी माना जाता है. 

सनातन धर्म में शंकराचार्य की भूमिका 

सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं यानी शंकराचार्य की हैसियत सनातन धर्म के सबसे बड़े गुरु की होती है. मान्यता है कि चारों वेद और छह वेदांगों का प्रकांड विद्वान ही शंकराचार्य बन सकता है. चार मठों के प्रमुखों को ही मठाधीश कहा जाता है और उन्हीं को शंकराचार्य की उपाधी दी जाती है. चारों शकंराचार्य धर्म दीक्षा देते है. इसके अलावा वे सामाजिक सेवा से जुड़ा तमाम प्रकल्पों में हिस्सा लेते है. 

रामलला प्राण प्रतिष्ठा में 2 शकंराचार्य ने हिस्सा लेने से किया इनकार 

22 जनवरी को होने वाले रामलला प्राण प्रतिष्ठा में 2 शकंराचार्य ने हिस्सा लेने से मना कर दिया है. पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस कार्यक्रम में आने से इनकार कर दिया है. इनका मानना है कि राम मंदिर का निर्माण कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा समारोह हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार नहीं किया जा रहा है. राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुए बिना भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करना सनातन धर्म के नियमों का पहला उल्लंघन है. 

श्रृंगेरी और शारदा मठ के शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा का किया स्वागत 

वहीं श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती और शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने रामलला प्राण प्रतिष्ठा का स्वागत किया है. दो शंकराचार्यों स्वामी भारती कृष्णा और स्वामी सदानंद सरस्वती ने रामलला प्राण प्रतिष्ठा में हिस्सा बनने को लेकर कोई बयान नहीं दिया है. ऐसे में इस बात पर संशय बना हुआ है कि क्या ये दोनों शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा क्रार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे.