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संसद में स्थापित सेंगोल का दक्षिण भारत से क्या है कनेक्शन? समझ लीजिए कितनी है अहमियत

Sengol Controversy: देश के सियासी गलियारों में राजनीतिक बयानबाजी न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता. 18वीं लोकसभा का पहला सेशन जारी है और इस बीच नेताओं की तरफ से दिया जाने वाला बयान भी. ऐसा ही एक बयान गुरुवार को समाजवादी पार्टी के सांसद की ओर से संसद में स्थापित सेंगोल पर हुआ जिसके जवाब में बीजेपी ने सपा सांसद को जमकर घेरा और कड़ी आलोचना भी की. ऐसा क्या हुआ जो संसद में सेंगोल अचानक इतना बड़ा मुद्दा बन गया और इसका दक्षिण भारत से क्या कनेक्शन है आइए इसे समझते हैं.

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Vineet Kumar
Sengol Controversy
Courtesy: IDL

Sengol Controversy: समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद आरके चौधरी की टिप्पणी पर चल रहे विवाद के बीच गुरुवार को संसद में 'सेंगोल' के मुद्दे ने सेंटर स्टेज ले लिया. चौधरी ने इसे 'राजा का डंडा' बताते हुए कहा था कि संविधान लोकतंत्र का प्रतीक है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने संसद में सेंगोल की स्थापना की है. 'सेनगोल' का मतलब है 'राज-दंड' या 'राजा का डंडा'. राजसी व्यवस्था समाप्त होने के बाद देश स्वतंत्र हुआ. क्या देश 'राजा का डंडा' से चलेगा या संविधान से? मैं मांग करता हूं कि संविधान को बचाने के लिए सेंगोल को संसद से हटाया जाए.

अखिलेश यादव ने किया चौधरी का बचाव

जहां चौधरी के इस बयान पर बवाल मचा हुआ है, वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनका बचाव करते हुए कहा, 'यह टिप्पणी प्रधानमंत्री के लिए एक रिमाइंडर के रूप में काम कर सकती है, जिन्होंने सेंगोल की स्थापना के दौरान उसके सामने सिर झुकाया था. शपथ लेते समय शायद वह यह भूल गए हों. शायद हमारे सांसद की टिप्पणी उन्हें यह याद दिलाने के लिए थी.' वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने सेंगोल पर समाजवादी पार्टी के रुख की कड़ी निंदा की और उस पर भारतीय और तमिल संस्कृति का अपमान करने का आरोप लगाया.

बीजेपी ने नजरिए पर उठाए सवाल

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, 'समाजवादी पार्टी संसद में सेंगोल का विरोध करती है और इसे 'राजा का दंड' कहती है. अगर ऐसा था, तो जवाहरलाल नेहरू ने इसे क्यों स्वीकार किया? यह उनकी मानसिकता को दर्शाता है. वे रामचरितमानस और अब सेंगोल पर हमला करते हैं. क्या डीएमके इस अपमान का समर्थन करती है? उन्हें साफ करना चाहिए.' 

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी चौधरी के विवादित बयान पर हैरानी जताते हुए सवाल किया कि क्या उन्हें विकास के लिए चुना गया है या ऐसी विभाजनकारी राजनीति में शामिल होने के लिए. पासवान ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सेंगोल जैसे प्रतीक, जिनका दशकों से अपमान किया गया है, अब प्रधानमंत्री की ओर से उनका सम्मान किया जाता है. उन्होंने यह भी सवाल किया कि विपक्षी नेता अधिक पॉजिटिव राजनीतिक नजरिया क्यों नहीं अपना सकते. वहीं, यूपी के सीएम योगी ने भी विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि उनके अंदर भारतीय संस्कृति के लिए कोई सम्मान नहीं है और उनका ये बयान इसी को दर्शाता है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐतिहासिक सेंगोल को 28 मई, 2023 को पारंपरिक पूजा के बाद नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के बगल में लोकसभा कक्ष में स्थापित किया था. हालांकि, हालिया विवाद के बाद यह जानना जरूरी है कि इसका क्या महत्व है और इसका दक्षिण भारत से क्या कनेक्शन है. आइये इसे समझते हैं-

दक्षिण भारत से है खासा कनेक्शन

हाल ही में स्थापित संसद भवन में 'सेंगोल' नामक राजदण्ड, भारत के इतिहास और परंपराओं से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण प्रतीक है. सेंगोल सोने या चांदी का बना हुआ एक राजदण्ड है, जिस पर कीमती पत्थर जड़े होते हैं. ऐतिहासिक रूप से, इसका संबंध दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य से रहा है. चोल साम्राज्य (9वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी) दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसका शासन कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और श्रीलंका जैसे क्षेत्रों तक फैला हुआ था. 

चोल साम्राज्य अपनी मजबूत नौसेना, कुशल प्रशासन और कला-संस्कृति के लिए विख्यात था. सेंगोल चोल राजाओं के लिए शक्ति और वैधता का प्रतीक था. यह राज्याभिषेक समारोहों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता था. नये राजा को सिंहासन ग्रहण करने से पहले पूर्ववर्ती राजा या किसी सम्मानित व्यक्ति द्वारा सेंगोल प्रदान किया जाता था. यह परंपरा इस बात को रेखांकित करती है कि सत्ता का हस्तांतरण सुव्यवस्थित और विधिपूर्वक होता था.

आजादी से भी है गहरा नाता

1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय सेंगोल का एक दिलचस्प जुड़ाव सामने आया. तमिलनाडु के एक हिंदू मठ, तिरुवदुत्तुराई अधीनम से आए प्रतिनिधियों ने स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर एक सेंगोल भेंट किया. इस सेंगोल को ब्रिटिश शासन से भारतीय शासन को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना गया. यह सेंगोल उस समय उपहारस्वरूप भेंट किया गया था, जब औपचारिक सत्ता हस्तांतरण का कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ था. इस प्रकार, सेंगोल ने एक अनऑफिशियल, ट्रेडिशनल तरीके से सत्ता के परिवर्तन को चिन्हित किया.

संसद में सेंगोल- आधुनिक मंच में परंपरा का समावेश

2023 में, नई दिल्ली स्थित संसद भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सेंगोल को स्थापित करने का निर्णय लिया था. यह निर्णय भारत के लोकतंत्र को उसकी प्राचीन परंपराओं से जोड़ने का एक प्रतीक माना गया. संसद में सेंगोल की उपस्थिति दक्षिण भारत के इतिहास और विरासत को राष्ट्रीय राजधानी में सम्मान प्रदान करती है. यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है और प्राचीन परंपराओं से सीखता है.

संसद में सेंगोल के मायने हैं खास

सेंगोल की स्थापना से संसद में दक्षिण भारत के योगदान को रेखांकित किया गया है. यह दर्शाता है कि भारत का इतिहास और परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों से मिलकर बनी हैं. संसद में सेंगोल की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि भारत एक बहु-धर्मीय, बहु-भाषी और बहु-सांस्कृतिक देश है, जहां विविधता ही उसकी एकता की शक्ति है.

संसद में स्थापित सेंगोल सिर्फ एक राजदण्ड नहीं है, बल्कि यह दक्षिण भारत के समृद्ध इतिहास और विरासत से भारत के लोकतंत्र के संबंध को दर्शाता है. यह एक प्रतीक है जो भारतीय संघवाद की एकता और विविधता का जश्न मनाता है.