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क्या है Places of Worship Act 1991, जिसे लेकर आज SC में होगी 'सुप्रीम' सुनवाई

Places of Worship Act: पिछले काफी समय से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर खबरें आ रही हैं और आज इसकी सुनवाई भी होने जा रही है. यह एक्ट क्या है और क्यों जरूरी है, चलिए जानते हैं यहां...

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Edited By: Shilpa Srivastava
Places of Worship Act
Courtesy: Freepik

Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट में प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से एक दिन पहले, कई क्षेत्रों से जुड़े नागरिकों, जैसे कि प्रमुख अकादमिक, इतिहासकार, पूर्व IAS और IPS अधिकारी, सांसद और राजनीतिक पार्टियों ने इस कानून के सपोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने और साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए लाया गया था.

याचिका में क्या कहा गया था: इन याचिकाओं में कहा गया है कि Places of Worship Act को हटाने की मांग गलत है और यह पूरी तरह से इतिहास को अनदेखा करना है. यह मांग इस तथ्य को भी नजरअंदाज करती है कि हिंदू राजाओं ने भी उन जगहों पर हिंदू मंदिरों, बौद्ध स्तूपों और जैन मंदिरों को तोड़ा था, जहां उन्होंने विजय हासिल की थी. 

कई याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान कई धार्मिक जगहों को मस्जिदों में बदल दिया गया, लेकिन अगर यह माना भी जाए कि कुछ मस्जिदें हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं, तो यह दावा कभी खत्म नहीं हो सकता, क्योंकि कई हिंदू मंदिर बौद्ध स्तूपों के ऊपर बने थे. ऐसे में बौद्ध समुदाय भी इन मंदिरों को फिर से स्तूपों में बदलने का अधिकार जता सकता है. इस एक्ट को इसीलिए लाया गया था जिससे इस विवाद को खत्म किया जा सके और साम्प्रदायिक शांति बनी रहे. हालांकि, अगर आप अब भी समझ नहीं पाए हैं तो चलिए सरल भाषा में जानते हैं कि आखिर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 है क्या।

क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991?

भारत सरकार द्वारा पारित एक कानून है, जिसका उद्देश्य धार्मिक जगहों के विवादों को खत्म करना और साम्प्रदायिक शांति बनाए रखना है. इस एक्ट को 1991 में पारित किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि किसी भी धार्मिक स्थान को इतिहास की घटनाओं के आधार पर बदलने की कोशिश नहीं की जाएगी. साथ ही इन्हें सही रखने के लिए सरकार पैसा भी खर्च करेगी. 

इस एक्ट के मुख्य बिंदु:

  • इस एक्ट के तहत यह निर्धारित किया गया कि 15 अगस्त 1947 से पहले जिस भी धार्मिक स्थल की स्थिति जैसी थी, वही कायम रहेगी. यानी कि किसी भी धार्मिक स्थल को 1947 के बाद बदलने की कोशिश नहीं की जा सकती, चाहे वह मस्जिद, मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च हो.

  • इस कानून के अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल को किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल में बदलने की कोशिश नहीं की जा सकती. उदाहरण के लिए, अगर कोई मंदिर या मस्जिद किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल में बदला गया था, तो वह स्थिति ज्यों की त्यों ही रहेगी.

  • यह एक्ट धार्मिक विवादों से जुड़ी स्थितियों को सुलझाने का कोशिश करता है जिससे धार्मिक स्थानों पर कोई विवाद न हो और समाज में साम्प्रदायिक शांति बनी रहे.

  • इस एक्ट में यह भी कहा गया कि इस एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून द्वारा जो सुरक्षा दी गई है, उसे कोई कोर्ट या अन्य अधिकारी चुनौती नहीं दे सकता है.