India China Ties: दुनिया के तमाम अर्थशास्त्री इस बात को मानते हैं कि भविष्य की दुनिया में अगर कोई दो एशियाई देश वैश्विक स्तर पर अपना परचम लहराते नजर आएंगे तो वो भारत और चीन है, जिनके बीच अक्सर एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ नजर आती है. दोनों ही देश विकास की रफ्तार को बढ़ाने और खुद को विकसित देशों की लिस्ट में शुमार करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं.
हालांकि ये प्रतिस्पर्धा सिर्फ व्यापार और अर्थव्यवस्था के बीच ही नजर नहीं आती है बल्कि दोनों देशों की सीमा सटे होने के चलते कई बार वहां भी छोटी-मोटी भिड़ंत देखने को मिलती है. इस दौरान कई बार छिटपुट झड़प की खबरें सामने आती हैं लेकिन किसी बड़े स्तर के युद्ध से बचते हुए नजर आते हैं.
इस बीच भारत सरकार ने बड़ा फैसला किया है जिसको लेकर चीन को मिर्ची लगना तय माना जा रहा है. दोनों देशों के बीच तनाव भरे माहौल को देखते हुए भारत सरकार ने हाल ही में अरुणाचल फ्रंटियर हाईवे प्रोजेक्ट के निर्माण का ऐलान किया है जिस पर चीन ने अपनी आपत्ति भी दर्ज करा दी है. हालांकि भारत का इस आपत्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और वो इस योजना के तहत 6000 करोड़ रुपए के 11 अलग-अलग पैकेजों का ऐलान कर चुका है. आइये समझते हैं कि अरुणाचल फ्रंटियर हाइवे प्रोजेक्ट क्या है और कैसे भारत इसके जरिए चीन को पछाड़ने की योजना बना रहा है.
अरुणाचल फ्रंटियर हाइवे (AFH), जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजमार्ग NH-913 के रूप में जाना जाता है, भारत द्वारा अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास बनाया जा रहा एक लगभग 1,700 किलोमीटर लंबा राजमार्ग है. इस परियोजना का उद्देश्य सैनिकों और आपूर्तियों को LAC तक जल्दी और आसानी से पहुंचाना, साथ ही अरुणाचल प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है.
चीन भारत के अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र पर अपना दावा करता है और इसे अपना "दक्षिण तिब्बत" मानता है. अरुणाचल फ्रंटियर हाइवे को चीन इस दावे को कमजोर करने और LAC के पास भारतीय सैन्य शक्ति बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखता है. इस प्रोजेक्ट के चलते चीन को ये चिंताएं हैं:
सैन्य लाभ: हाइवे से भारतीय सेना को सीमा पर तेजी से पहुँचने और सैन्य कार्रवाई करने में मदद मिलेगी.
राजनीतिक दावे: भारत इस परियोजना का उपयोग अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को मजबूत करने के लिए कर सकता है.
भूरणनीतिक प्रभाव: हाइवे पूर्वी लद्दाख (जहां भारत और चीन के बीच 2020 में झड़पें हुई थीं) से जुड़ सकता है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है.
हालांकि चीन इस परियोजना का विरोध करता है, "पैनिक" शब्द शायद अतिशयोक्ति है. चीन नियमित रूप से सीमा पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण करता है और भारत के इसी तरह के कार्यों का विरोध करता रहा है. लेकिन यह जरूर है कि यह चीन की चिंताओं को बढ़ा देता है और संभावित रूप से दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है.
भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण समाधान के लिए, सीमा विवाद के व्यापक समाधान के साथ-साथ सीमावर्ती इलाकों में सैन्य तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक वार्ता की आवश्यकता है.