सुप्रीम कोर्ट के कमेंट से बाबा रामदेव के छूटे पसीने! कोर्टरूम में अफसर परेशान, पढ़ें क्या-क्या हुआ
SC on Baba Ramdev: बाबा रामदेव की आयुर्वेदिक उत्पादों की कंपनी पतंजलि की ओर से मनमाने और भ्रामक एड दिखाने के मामले में बुधवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जहां पर जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच ने उनके दूसरे माफीनामे को भी खारिज करते हुए कार्रवाई के लिए तैयार रहने को कहा है.
SC on Baba Ramdev: पतंजलि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पर जानबूझकर कोर्ट की बात को अनदेखी करने और नियमों का उल्लंघन करने को लेकर जमकर फटकारा है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के वकील विपिन सांघी और मुकुल रोहतगी पर आदेश का उल्लंघन करने के लिए भी डांट लगाई है. पतंजलि की तरफ से 2 अप्रैल को भी माफीनामा दिया गया था लेकिन बेंच ने इसे महज खानापूर्ति बताते हुए मानने से इंकार कर दिया और 10 अप्रैल को सुनवाई की अगली तारीख तय की थी.
इसे देखते हुए 9 अप्रैल को बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की ओर से एक नया हलफनामा दाखिल किया गया जिसमें उन्होंने बिना शर्त माफी मांगते हुए गलती मानने और दोबारा न करने का आश्वासन दिया था. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पूरे प्रकरण को अवमानना के तौर पर देखा है और पतंजलि को कार्रवाई के लिए तैयार रहने को कहा है.
मामले में अगली सुनवाई 16 अप्रैल को की जाएगी लेकिन उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 6 बार केंद्र की ओर से जारी किए गए लेटर पर कोई कार्रवाई नहीं होने के मामले में तीनों लाइसेंसिंग ऑफिसर्स को सस्पेंड करने का आदेश दिया है.
आखिर क्या है पूरा मामला जिस पर हो रही सुनवाई
दरअसल यह पूरी सुनवाई इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से पतंजलि के खिलाफ दायर की गई उस पर याचिका पर है जिसमें कोरोना काल के दौरान बाबा रामदेव की आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट्स वाली कंपनी ने कोविड वैक्सिनेशन और एलोपैथी के खिलाफ नेगेटिव प्रमोशन किया था. इतना ही नहीं पतंजलि ने कुछ बीमारियों के इलाज को लेकर झूठे दावे भी किए थे जिसको लेकर आईएमए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.
इस मामले पर सरकार की ओर से 6 बार नोटिस भी जारी किया गया था लेकिन राज्य के लाइसेंसिंग ऑफिसर्स ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे अवमानना का मुद्दा मान लिया है.
जहां एक ओर बाबा रामदेव लगातार अपनी कंपनी की तरफ से माफी मांगते नजर आ रहे हैं तो वहीं पर सुप्रीम कोर्ट का दिल पसीज नहीं रहा है. आखिरकार कोर्टरूम में ऐसा क्या हुआ जिसके चलते बाबा रामदेव की किसी भी बात को सुप्रीम कोर्ट सुनने से इंकार कर रही है. आइये समझते हैं कोर्टरूम की पूरी बातचीत में-
जानें कैसी रही कोर्टरूम में हुई पूरी बातचीत
- कोर्टरूम में 10 अप्रैल 2024 को हुई सुनवाई की शुरुआत SG तुषार मेहता की ओर से वकील साहब को दी गई बिना शर्त माफी की सलाह के साथ होती है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एफिडेविट पर असंतुष्टि जताते हुए कहा कि हमें इन लोगों को सिफारिशों पर भरोसा नहीं है. मुफ्त की सलाह हमेशा ऐसे ही ली जाती है.
- इसके बाद सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने बताया कि कोर्टरूम में 2 एफिडेविट जमा किए गये हैं, एक मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण का है तो वहीं दूसरा पतंजलि की ओर से दायर किया गया है. दोनों में लिखा है कि हम बिना शर्त माफी मांगते हैं, हमारा इरादा आदेश का उल्लंघन करने का नहीं था और आगे से ऐसी कोई गलती नहीं होगी.
- इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब रामदेव और बालकृष्ण को पता चल गया कि वो गलत हैं तब जाकर उन्होंने डॉक्यूमेंट्स में माफीनामा दिया है, हम इसे अस्वीकार करते हैं और हम मानते हैं कि दोनों ने जानबूझकर कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है और अब उन्हें कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए.
- जवाब में मुकुल रोहतगी ने अगले हफ्ते सुनवाई करने की मांग की तो सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में फटकार लगाते हुए साफ किया कि ये सिर्फ एक कंपनी का मामला नहीं है बल्कि कानून का उल्लंघन करने की बात है. समाज में यह बात साफ होनी चाहिए कि कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, ये बात वो भी जानते हैं कि वो गलत हैं. जब राज्य सरकार ने आपसे विज्ञापन वापस लेने के लिए कहा तो आपने ही दलील दी थी कि हाईकोर्ट ने किसी भी एक्शन पर रोक लगा रखी है.
- वहीं कोर्टरूम में उत्तराखंड सरकार की ओर से ध्रुव मेहता और वंशजा शुक्ला ने भी एफिडेविट पढ़ा जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भी आड़े हाथ लिया. जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अंधे नहीं हैं, केंद्र से जवाब आता है कि मामला आपके पास है और आपको कानून का पालन करना चाहिए तो वहां आपने चुप्पी साध रखी थी. 6 बार ऐसा हुआ और हर बार लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहे, किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद जो उन्होंने भी यही प्रक्रिया दोहराई, हमें लगता है कि तीनों अफसरों को तुरंत सस्पेंड कर देना चाहिए.
- वहीं जस्टिस हिमा कोहली ने इस मामले को लापरवाही का बताया और कहा कि पूरे मामले में साफ नजर आता है कि ड्रग ऑफिसर ने अपना काम नहीं किया और लापरवाही दिखाई, ऐसे में उन पर क्यों कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. अफसरों को तुरंत सस्पेंड करना चाहिए.
- जहां जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह खान ने अफसरों को सिर्फ फाइल खिसकाने और लापरवाही दिखाने के लिए फटकार लगाई तो वहीं पर उत्तराखंड सरकार के आंख मूंद कर बैठने को लेकर वकील ध्रुव मेहता को भी फटकारा है. जस्टिस हिमा कोहली ने उत्तराखंड सरकार के वकील को मिस्टर मेहता कहकर संबोधित किया और कहा कि आपने जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर रखी थी. आपने जिस लेटर का जिक्र किया जरा उसे पढ़िए और बताइये क्या लिखा है उसमें, आपने लिखा है कि दवाइयां बनाने वाली कंपनियों के विज्ञापन सांकेतिक हैं. आपकी नाक के नीचे ऐसा होता रहा और सिर्फ उनके कहने पर आपने मान लिया, क्या सरकार ने अपना मकसद लोगों को आयुर्वेद से जोड़ना बना लिया है, ऐसा लग रहा था कि वो दुनिया के पहले आदमी हैं जिनके पास आयुर्वेदिक दवाओं का ज्ञान है.
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एफिडेविट दायर करने वाले ऑफिसर्स को भी आड़े हाथ लिया और सुप्रीम कोर्ट को फटकारते हुए कहा कि सिर्फ कागजी कार्यवाही हुई है, अभी आपने ऐसा कौन सा चूरन या घुट्टी ले ली है जो अब आपकी बात मान ली जाए. आपने कहा आपने चेतावनी दी है लेकिन उस चेतावनी के बाद फुल पेज एड आता है. आप चाहते हैं कि हम एक आदमी को माफ कर दें लेकिन उन सभी लोगों का क्या करें जिन्होंने आपकी दवा सिर्फ वादे पर खाई कि उनकी वो बामारी दूर हो जाएगी जिसका इलाज ही नहीं हो सकता. क्या आप किसी आम आदमी के साथ ऐसा कर सकते हैं, हमें अफसर से एफिडेविट चाहिए कि उन्होंने 3 साल तक फाइलें बढ़ाने के अलावा क्या किया?
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सख्त लहजे में कहा कि राज्य को सलाह देता हूं कि वो पहले के सभी एफिडेविट फेंक दें, जिस तरह से कथित शब्दों का एफिडेविट में भरपूर तरीके से इस्तेमाल है उससे साफ है कि उन्हें वकीलों ने बनाया है. इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम एक सार्वजनिक माफीनामा दे सकते हैं लेकिन हिमा कोहली ने साफ किया कि ये हमारा काम है, हम डिसाइड करेंगे कि क्या करना है. अभी हमें ऑर्डर देने दीजिए.