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India Daily

'आजाद कश्मीर, फ्री फिलिस्तीन...', जादवपुर विश्वविद्यालय में लगे भारत विरोधी पोस्टर, कोलकाता में मचा बवाल तो पुलिस ने दर्ज की FIR

जादवपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहा है. 1 मार्च को पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु विश्वविद्यालय आए थे, जहां उनके काफिले के पास से गुजरते समय दो छात्रों के घायल होने का आरोप भी लगा.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
West Bengal Free Palestine Azad Kashmir graffiti at Jadavpur University Of Kolkata
Courtesy: Social Media

Jadavpur University Free Palestine Azad Kashmir Poster: कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में लगे भारत विरोधी पोस्टरों को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है. विश्वविद्यालय की दीवारों पर 'आजाद कश्मीर' और 'फ्री फिलिस्तीन' जैसे नारे लिखे गए थे. पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की है. इस मामले को लेकर राजनीति और छात्र संगठनों के बीच भी तीखी बयानबाजी हो रही है.

जादवपुर विश्वविद्यालय की दीवार पर जो पोस्टर और ग्रेफिटी पाई गई, उसमें एक हाथ दिखाई दे रहा है. पोस्टर के साथ कांटेदार तार से बंधे हुए फूल हैं. इसके साथ ही 'आजाद कश्मीर' और 'फ्री फिलिस्तीन' जैसे नारे लिखे गए थे. इस ग्रेफिटी के बाद से विश्वविद्यालय परिसर में तनाव बढ़ गया और घटना के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए FIR दर्ज की.

इन धाराओं के तहत दर्ज हुई FIR

कोलकाता पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की है, जो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 61(ii) (साजिश का अपराध) और धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को अपराध मानने) के तहत की गई है. पुलिस मामले की जांच कर रही है और CCTV फुटेज सहित अन्य साक्ष्यों का विश्लेषण कर रही है, ताकि आरोपियों की पहचान की जा सके.

क्या बोला विश्वविद्यालय प्रशासन

जादवपुर विश्वविद्यालय के त्रिणमूल छात्र परिषद (JUTMCP) ने इस घटना को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है और पुलिस से मामले की गहराई से जांच करने की मांग की है. JUTMCP के अध्यक्ष किशलय रॉय ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिए ताकि परिसर में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोका जा सके. उनका कहना है कि छात्रों को शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक वातावरण में अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन किसी भी तरह की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को सहन नहीं किया जाएगा.

वामपंथी छात्र संगठनों का कहना है कि जब तक विश्वविद्यालयों में चुनाव नहीं होते, तब तक छात्रों के पास अपनी आवाज़ उठाने का कोई उचित मंच नहीं होता. उनका मानना है कि बिना चुनाव के छात्रों के मुद्दों को दबाया जाता है, और इससे भ्रष्टाचार का रास्ता खुलता है. वहीं, कुछ छात्रों का यह भी कहना है कि जब तक चुनाव नहीं होते, छात्र आंदोलनों के जरिए ही वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं.