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पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन, पद्म भूषण ठुकराया, 11 साल रहे CM, 80 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन हो गया है. उन्होंने 80 साल की उम्र में अंतिम सांस ली है. वे लंबे समय से बीमार थे. वे वामपंथी राजनीति के चर्चित चेहरों में से एक थे. पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक जमाने में उनकी तूती बोलती थी. वे अपने आदर्शों के लिए जाने जाते थे.

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पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं रहे. कोलकाता स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली. गुरुवार 8.20 सुबह, उन्होंने अंतिम सांस लिया है. वे एक अरसे से बीमार थे. 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है. बुद्धदेव भट्टाचा्य क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) से जूझ रहे थे. उन्हों उम्र संबंधी दूसरी दिक्कतें भी थीं. कोलकाता में ही उनका ट्रीटमेंट चल रहा है. वह अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़कर गए हैं. 

बुद्धदेव भट्टाचार्य, राजनीति से संन्यास ले चुके थे. वे 2015 तक सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो से जुड़े थे. उन्होंने पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दे दिया था. वे साल 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे थे. बुद्धदेव भट्टाचार्य, ज्योति बसु की जगह कमान संभाली थी. उन्होंने साल 2000 से 2011 तक उन्होंने पार्टी की कमान संभाली थी. 2011 के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने कमान संभाली थी लेकिन ममता बनर्जी का उदय, उनके राजनीतिक जीवन का अंत बन गया था.

ममता के उदय ने खत्म किया था उनका दबदबा 

ममता बनर्जी के उदय के बाद राज्य में वामपंथी पार्टी हाशिए पर पहुंच गई. ममता बनर्जी ने 34 साल से अडिग वामपंथी सरकार के वर्चस्व को ध्वस्त कर दिया था. बुद्धदेव भट्टाचार्य का अंतिम संस्कार भी राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा, अगर उनका परिवार इसकी इजाजत देगा. उन्हें केंद्र की ओर से पद्म पुरस्कार देने का ऐलान हुआ था लेकिन उन्होंने लेने से मना कर दिया था. 

कौन थे बुद्धदेव भट्टाचार्य?

बुद्धदेव भट्टाचार्य का जन्म 1 मार्च 1944 को उत्तर कोलकाता में हुआ था. उनके परिवार की जड़ें बांग्लादेश से जुड़ी हैं. वे बांग्ला साहित्य में बीए थे. वे सीपीआई से जुड़े. वे डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव भी रहे. यही संस्था बाद में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध हुई. पश्चिम बंगाल में औद्योगीकरण की शुरुआत करने का श्रेय इन्हें ही जाता है. इन्होंने टाटा नैनो का एक प्लांट कोलकाता के पास सिंगुर में कराया था.