किरेन रिजिजू ने लोकसभा में गुरुवार को वक्फ विधेयक पेश किया. विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने या संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने की मंशा से इनकार किया. वहीं, विधेयक को विपक्ष ने 'संविधान पर हमला, संघीय ढांचे का उल्लंघन' बताया है. विपक्ष की ओर से वक्फ (संशोधन) विधेयक का पुरजोर विरोध किए जाने के बाद NDA सरकार के सहयोगियों की ओर से भी इसमें प्रस्तावित व्यापक बदलावों को लेकर चिंता जताई गई. इसके बाद सरकार ने गुरुवार को इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया.
संयुक्त समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला करेंगे और इसमें संसद के दोनों सदनों और सभी दलों के सदस्य शामिल होंगे. रिजिजू ने कहा कि एक बार समिति बन जाने के बाद वे इसके भीतर हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करने के लिए तैयार हैं. मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की मुख्य शिकायत ये है कि वे विधेयकों को विचार के लिए समितियों के पास भेजने से इनकार कर रही है और इसके बजाय उन्हें आगे बढ़ा रही है.
विधेयक पेश करते हुए रिजिजू ने किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने या संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने के किसी भी इरादे से इनकार किया. उन्होंने तर्क दिया कि मौजूदा कानून यानी वक्फ अधिनियम, 1995 अपने उद्देश्य को पूरा नहीं करता है. उन्होंने कहा कि संशोधन के जरिए गलतियों को सुधारेंगे और अनुशासन लाएंगे, जो पिछली कांग्रेस सरकारें करने में विफल रही थीं. उन्होंने कहा कि संशोधन के जरिए वक्फ बोर्ड के कामकाज में सुधार करेंगे और उन लोगों को अधिकार देंगे जिन्हें वंचित किया गया है.
सूत्रों ने बताया कि भाजपा के सहयोगी दल टीडीपी, जनसेना पार्टी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सलाह दी कि विधेयक को विस्तृत चर्चा के बिना पारित नहीं किया जाना चाहिए और सभी दलों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए. वहीं, एलजेपी ने विधेयक पर कुछ नहीं कहा, जबकि टीडीपी, जेएसपी, जेडीयू और शिवसेना (शिंदे) जैसे अन्य सहयोगियों ने सदन में इसका समर्थन किया.
विधेयक को समिति को सौंपे जाने की मांग करने वाली पार्टियों में से एक के सांसद ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उनका समर्थन इस शर्त पर था कि सरकार ने आश्वासन दिया कि विधेयक को व्यापक परामर्श के लिए संसदीय समिति को भेजा जाएगाय इसलिए हम विधेयक का समर्थन करने के लिए सहमत हो गए.
टीडीपी सांसद जीएम हरीश बालयोगी ने सदन में कहा कि उनकी पार्टी को इस विधेयक को संसदीय समिति को भेजे जाने से कोई आपत्ति नहीं है, भले ही वह विधेयक का समर्थन करती हो. उन्होंने कहा कि मैं उस चिंता की सराहना करता हूं जिसके साथ सरकार की ओर से ये विधेयक लाया गया है. दानदाताओं (वक्फ भूमि के) के उद्देश्य की रक्षा की जानी चाहिए. जब उद्देश्य और शक्ति का दुरुपयोग होता है, तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वो व्यवस्था में सुधार और पारदर्शिता लाए... (लेकिन) अगर गलत धारणाओं और गलत सूचनाओं को दूर करने के लिए व्यापक परामर्श की आवश्यकता है... और विधेयक के उद्देश्य के बारे में (सदस्यों को) शिक्षित करने के लिए, तो हमें इसे चयन समिति को भेजने में कोई समस्या नहीं है.
लोजपा सांसद शांभवी चौधरी ने संसद भवन के बाहर संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन सरकार चाहे तो इसे संसदीय पैनल को भेज सकती है. वाईएसआरसीपी ने भी विधेयक के खिलाफ आवाज उठाई तथा इसके नेता मिथुन रेड्डी ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ खड़े हैं.
रिजिजू ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि अफवाहें फैलाई जा रही है कि भाजपा सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रही है. मंत्री ने कहा कि ये विधेयक…सच्चर समिति की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे आपने (कांग्रेस ने) गठित किया था.
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने प्रस्तावित कानून को संविधान और खास तौर पर आस्था और धर्म पर हमला बताया. वेणुगोपाल ने कहा कि इस विधेयक में कहा गया है कि गैर-मुस्लिम वक्फ बोर्ड की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हो सकते हैं. मैं आपसे पूछता हूं कि क्या आप अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गठित समिति में किसी गैर-हिंदू को स्वीकार करते? हम भारत की संस्कृति में विश्वास करते हैं, हम हिंदू हैं, लेकिन हम अन्य धर्मों का सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार की ओर से ये विधेयक लाया गया है.
रिजिजू ने विपक्षी सांसदों के इस दावे पर आपत्ति जताई कि इस पर पर्याप्त चर्चा नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में इस पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है. उन्होंने कहा कि हमने 2015 से 19 राज्य और यूटी वक्फ बोर्ड के अध्यक्षों और सीईओ से बात की है. बोहरा, अहमदिया, आगाखानी, पसमांदा और मुस्लिम महिलाओं के प्रतिनिधियों से परामर्श किया गया है.
वक्फ (संशोधन) विधेयक का समर्थन करने वाले भाजपा के सहयोगियों में सबसे मुखर जेडीयू ने कहा कि ये विधेयक वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता लाएगा और यह मस्जिदों के संचालन में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं है या ये मुस्लिम विरोधी नहीं है. जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन ने कहा कि यहां अयोध्या का उदाहरण दिया जा रहा है... क्या आप मंदिर और संस्था के बीच अंतर नहीं कर सकते? यह मस्जिदों में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं है। ये कानून संस्था के लिए है.
विधेयक का समर्थन करने वाली शिवसेना (शिंदे) के सांसद श्रीकांत शिंदे ने विपक्ष पर विधेयक का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया. भाजपा की सहयोगी पार्टी ने कहा कि जब उनकी सरकार सत्ता में थी, तो उन्होंने शिरडी जैसे मंदिरों में प्रशासक नियुक्त किए. उस समय उन्हें संघवाद याद नहीं था. उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को पीछे धकेल दिया है.
वक्फ (संशोधन) विधेयक के तहत 'वक्फ अधिनियम, 1995' का नाम बदलकर 'एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995' किया गया है. अधिनियम कहता है कि राजिंदर सच्चर समिति और वक्फ परिषद पर संयुक्त संसदीय समिति समेत कई अन्य समितियों की सिफारिशों के मद्देनजर, कमियों को दूर करने, वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन की दक्षता बढ़ाने के लिए अधिनियम में संशोधन करना आवश्यक हो गया है. यह स्पष्ट रूप से वक्फ को किसी भी व्यक्ति की ओर से कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने और ऐसी संपत्ति का स्वामित्व रखने के रूप में परिभाषित करने और ये सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि वक्फ-अल-औलाद के निर्माण से महिलाओं को विरासत के अधिकारों से वंचित नहीं किया जाता है.
हालांकि, विपक्षी सांसदों ने कहा कि ये विधेयक अनुच्छेद 25 (अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थाओं को बनाने और बनाए रखने का अधिकार) के साथ-साथ अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 15 (केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के विरुद्ध राज्य द्वारा भेदभाव के विरुद्ध अधिकार) का उल्लंघन करता है.