Waqf Amendment Act: वक्फ अधिनियम 2025 में संशोधन ने पूरे भारत में बहस छेड़ दी है. विरोधियों ने इसे मुस्लिम धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप और सांप्रदायिक स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया है. इस पर जमकर बयानबाजी हो रही है. पंजाब के उपजाऊ मैदानों जहां भारत की 9% वक्फ संपत्तियां स्थित हैं उसे लेकर राष्ट्रीय स्तर तक, जहां 8.72 लाख वक्फ संपत्तियां खराब प्रबंधन के अधीन हैं वहां इस बदलाव को लेकर बयानों का सिलसिला जारी है. कई लोगों का दावा है कि ये परिवर्तन विश्वास को कमजोर करते हैं.
इस बीच कई तरह की गलत जानकारी लोगों के बीच फैलाई जा रही है ताकि समाज की शांति को भंग किया जा सके. चलिए अब इन डर और गलत सूचना की परतों को हटा दें, तो एक अलग तस्वीर उभरती है- व्यावहारिकता, समावेशिता और प्रणालीगत खामियों का एक लंबे समय से प्रतीक्षित समाधान. ये संशोधन किसी षड्यंत्र से कहीं दूर, मुसलमानों को एक उपेक्षित विरासत को प्रगति की ताकत में बदलने का अवसर देते हैं.
तो सबसे पहले मिथकों से शुरुआत करें. कई लोग दावा करते हैं कि वक्फ प्रशासन एक पवित्र मामला है, जो सांसारिक निगरानी से मुक्त है. 1964 में सुप्रीम कोर्टने (तिलकायत श्री गोविंदलालजी महाराज बनाम राजस्थान सरकार) इस भ्रम को तोड़ दिया तथा संपत्ति प्रबंधन को धार्मिक अनुष्ठान न मानकर एक धर्मनिरपेक्ष कार्य घोषित किया. 2025 के संशोधन इसका सम्मान करते हैं, तथा कार्यकुशलता पर ध्यान केंद्रित करते हैं - अभिलेखों का डिजिटलीकरण, भ्रष्टाचार को रोकना - जबकि आध्यात्मिक स्वतंत्रता को छूने से बचते हैं. देशभर में वक्फ संपत्तियां 38 लाख एकड़ में फैली हुई हैं, लेकिन पिछले साल सिर्फ 166 करोड़ रुपये की कमाई हुई, जबकि संभावित 12,000 करोड़ रुपये थे (वामसी पोर्टल). पंजाब में 7% भूमि पर कब्जा है, 2% भूमि मुकदमेबाजी में उलझी हुई है तथा 50% भूमि का कोई हिसाब नहीं है. यह कोई ईश्वरीय आदेश नहीं है - यह मानवीय विफलता है। संशोधनों का उद्देश्य इसे ठीक करना है, तथा लाभ को गरीबों तक पहुंचाना है, जैसा कि वक्फ के इस्लामी सिद्धांत की मांग है.
फिर वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर हंगामा हो रहा है - राज्य स्तर पर 11 में से तीन और केंद्रीय स्तर पर 22 में से चार - जिसे धार्मिक पहचान पर हमला बताया जा रहा है. लेकिन पहले के उदाहरण इसके विपरीत हैं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1965 में (हाफिज मुहम्मद जफर अहमद बनाम यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड) फैसला दिया था कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन कर सकते हैं, जो एक धर्मनिरपेक्ष भूमिका है. पंजाब में, जहां भूमि विवाद बहुत अधिक हैं, ऐसी विशेषज्ञता से खोई हुई सम्पत्तियों को पुनः प्राप्त करने में मदद मिल सकती है. आलोचक यह भूल जाते हैं कि सच्चर और रंगनाथ मिश्रा जैसे गैर-मुस्लिम लंबे समय से मुस्लिम समर्थक नीतियां बनाते रहे हैं. यह हस्तक्षेप नहीं है - यह सुदृढ़ीकरण है, जो उस प्रणाली में व्यावसायिकता लाता है जहां ट्रस्टी अक्सर लेखापरीक्षा से बचते हैं.
मस्जिदों को ध्वस्त करने और मदरसों को नष्ट करने की आशंकाएं भी गलत हैं. यह अधिनियम दूरदर्शी है तथा पंजाब में ऐतिहासिक स्थलों जैसी पंजीकृत संपत्तियों की सुरक्षा करता है. 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' जारी है, जिसे इस्लाम की लिखित प्रतिबद्धता (सूरह-ए-बक़रा) की आवाज़ द्वारा समर्थित किया गया है. 2013 के 'किसी को भी' नियम को निरस्त करने से विवेक की पुनर्स्थापना हुई है: केवल मुस्लिम मालिक ही वक्फ को समर्पित कर सकते हैं, जो आस्था और कानून के अनुरूप है और दान-अलल-संतान? ये संशोधन इसके दुरुपयोगों को रोकते हैं - जैसे कि जमींदारी युग के दौरान जमींदारों द्वारा भूमि पर कब्जा करना - जबकि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और विधवाओं और अनाथों के लिए विकल्प जोड़ते हैं. यह घटाव नहीं है - यह समानता है.
आंकड़े एक कठिन कहानी बताते हैं. पंजाब में मुसलमानों के पास भारत की 9% वक्फ संपत्तियां हैं, लेकिन अतिक्रमण और मुकदमेबाजी उनकी क्षमता को नष्ट कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर न्यायाधिकरणों में 32,000 मामले लंबित हैं (2013 में यह संख्या 10,000 थी), जिसके कारण स्कूलों या क्लीनिकों के लिए राजस्व रोका जा रहा है. विवादों को वरिष्ठ अधिकारियों के पास भेजना, सिविल और उच्च न्यायालय में अपील खोलना, तथा परिसीमा अधिनियम लागू करना इस बाधा को कम करता है. सर्वेक्षण आयुक्तों के स्थान पर जिला कलेक्टरों (जो राजस्व अभिलेखों के संरक्षक होते हैं) को नियुक्त करने से पक्षपात नहीं, बल्कि सुचारू निर्णय सुनिश्चित होंगे. समावेशन भी चमकता है: धारा 14 में शिया, सुन्नी, पिछड़े वर्गों और महिलाओं को बोर्डों में लाने का आदेश दिया गया है, क्योंकि पंजाब का पसमांदा मुसलमानों की आवाज को मजबूत करता है.
कर्नाटक में एएसआई भूमि पर अतिक्रमण या तमिलनाडु में 400 एकड़ के मंदिर जैसे निराधार दावे, जो धारा 40 की अत्यधिक शक्ति से प्रेरित थे, अब अवरुद्ध हो गए हैं, तथा वक्फ को अनुच्छेद 300-ए के संपत्ति अधिकारों से जोड़ दिया गया है. धारा 108ए की अध्यारोही शक्ति को हटाना, जिसे सच्चर समिति ने अन्यायपूर्ण पाया था, प्राकृतिक न्याय को बहाल करता है. यह अधिकार नहीं है - यह संतुलन है.
वक्फ संशोधन पूर्ण नहीं हैं; त्रुटियों से बचने के लिए कार्यान्वयन पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है. लेकिन यह इस्लाम पर हमला नहीं है - यह दान और न्याय के उसके आदर्शों की जीवनरेखा है. पंजाब के मुसलमानों के लिए ये पुनः प्राप्त मस्जिदें और वित्तपोषित भविष्य आशाजनक हैं. राष्ट्रीय स्तर पर वे अराजकता की अपेक्षा दक्षता की शपथ लेते हैं. शत्रुता के मिथकों को कायम रखना इस अवसर की बर्बादी है. यह सुधार सशक्तीकरण है - मुसलमान इसे पंजाब से आगे ले जा सकते हैं और अपने धर्म के शाश्वत सपनों को साकार कर सकते हैं.