भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले को लेकर गंभीर चिंता जताई, जिसमें राज्यों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को हस्ताक्षर करने की समय-सीमा तय की गई है. उपराष्ट्रपति ने इसे न्यायपालिका का कार्यपालिका की भूमिका निभाने और 'सुपर संसद' बनने की कोशिश करार दिया.
राज्यसभा इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, "हाल ही के एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. हम किस दिशा में जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? यह केवल पुनर्विचार याचिका दायर करने का सवाल नहीं है.
हमने लोकतंत्र इस रूप में नहीं स्वीकारा था"
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आगे कहा कि हमने ऐसा लोकतंत्र कभी नहीं चाहा था. इस दौरान उन्होंने तमिलनाडु बनाम राज्यपाल केस में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले का हवाला देते हुए कहा, "अब हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की भूमिका निभाएंगे और खुद को जवाबदेही से परे रखेंगे. कानून का शासन उन पर लागू नहीं होता?"
संविधान के अनुच्छेदों की पुनर्समीक्षा की मांग
उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 145(3) की वर्तमान व्यवस्था में भी काफी बदलाव की जरूरत है. उन्होंने कहा, "अगर आठ में से पांच न्यायाधीश किसी मुद्दे की व्याख्या करते हैं, तो यह बहुमत है. लेकिन क्या यही पर्याप्त है? अब अनुच्छेद 142 न्यायपालिका के पास लोकतंत्र विरोधी ताकतों के विरुद्ध ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन चुका है, जो 24x7 उपलब्ध है.
न्यायपालिका में जवाबदेही की ज़रूरत
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के निवास से कथित तौर पर नकदी मिलने की घटना का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ये घटना 14-15 मार्च की रात की है, लेकिन इसकी जानकारी एक हफ्ते तक सबके सामने क्यों नहीं लाई गई. "क्या यह देरी स्वीकार्य है? क्या यह स्थिति न्याय की बुनियादी अवधारणाओं को नहीं झकझोरती?" उन्होंने पूछा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं लेकिन अब तक कोई FIR दर्ज नहीं हुई.
"कानून से परे कोई नहीं"
उप राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, "भारतीय संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को अभियोजन से प्रतिरक्षा देता है. फिर यह विशेषाधिकार न्यायपालिका को कैसे मिल गया?" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्थाएं पारदर्शिता से ही जीवित रहती हैं. उन्होंने कहा, "किसी पर जांच न होना उसकी गिरावट की शुरुआत होती है.
जजों की नियुक्ति पर हो विचार
उन्होंने 27 जनवरी 2025 को लोकपाल द्वारा हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच के आदेश का हवाला दिया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे स्वतंत्रता के नाम पर रोके जाने की आलोचना की. धनखड़ ने यह भी दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति "परामर्श" के तहत होनी चाहिए. ऐसे में पारदर्शिता उसमें भी अहम होनी चाहिए.