Uttarakhand News: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में कई गांवों के बाहर कथित तौर पर ‘गैर-हिंदुओं’ और फेरीवालों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले साइनबोर्ड लगाए गए हैं. मामले की जानकारी के बाद राज्य पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, वहीं मुस्लिम संगठनों ने समुदाय को निशाना बनाकर बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है.
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभिनव कुमार ने कहा कि उन्होंने स्थानीय पुलिस और खुफिया इकाइयों को कई गांवों में ऐसे बोर्ड लगाए जाने की रिपोर्टों की जांच करने का आदेश दिया है. रुद्रप्रयाग के सर्किल अधिकारी प्रबोध कुमार घिल्डियाल ने पुष्टि की कि उन्होंने कई साइनबोर्ड हटा दिए हैं और उन्हें लगाने वाले दोषियों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं.
घिल्डियाल ने कहा कि ये बात सामने आई है कि कुछ गांवों में ऐसे बोर्ड लगे हैं. हम उन्हें हटा रहे हैं. कुछ गांवों से तो बोर्ड हटा भी दिए गए हैं. हम उन लोगों की पहचान का भी पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने ये बोर्ड लगाए हैं. उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न ग्राम प्रधानों के साथ बैठक भी की गई है.
न्यालसू गांव के बाहर लगे साइनबोर्ड पर हिंदी में लिखा था कि गैर-हिंदुओं/रोहिंग्या मुसलमानों और फेरीवालों के लिए गांव में व्यापार करना/घूमना प्रतिबंधित है. अगर वे गांव में कहीं भी पाए गए तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. बोर्ड में दावा किया गया है कि ये निर्देश ग्राम सभा की ओर से आया है.
न्यालसू के प्रधान प्रमोद सिंह ने बताया कि शेरसी, गौरीकुंड, त्रियुगीनारायण, सोनप्रयाग, बारसू, जामू, अरिया, रविग्राम और मैखंडा समेत क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में इसी तरह के बोर्ड लगे हैं. प्रमोद सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उनके गांव के बाहर लगा साइनबोर्ड ग्रामीणों ने लगाया है, न कि ग्राम पंचायत ने.
उन्होंने दावा किया कि पुलिस सत्यापन के बिना फेरीवालों को गांवों में प्रवेश करने से रोकने के लिए बोर्ड लगाए गए हैं. हमारे गांव के ज़्यादातर पुरुष यात्रा पर निर्भर हैं और इसलिए वे यात्रा के दौरान गौरीकुंड और सोनप्रयाग में रहते हैं. महिलाएं घर में अकेली रहती हैं. कई फेरीवाले बिना वैध पहचान पत्र और पुलिस सत्यापन के गांव में आते हैं. सत्यापन वाले लोग नियमित रूप से गांव में आते हैं, उन्हें रोका नहीं जाता. अगर फेरीवाले कोई अपराध करते हैं और भाग जाते हैं, तो उनका पता नहीं लगाया जा सकता है.
मैखंडा गांव की प्रधान चांदनी देवी ने भी पुष्टि की कि उनके गांव के बाहर भी ग्रामीणों ने इसी तरह का बोर्ड लगाया है. उन्होंने दावा किया कि हम नहीं चाहते कि बाहरी लोग हमारे गांव में आएं क्योंकि इससे हमारे बच्चों और महिलाओं को खतरा है.
गौरीकुंड गांव की मुखिया सोनी देवी ने पहले तो पुष्टि की, लेकिन बाद में इस बात से मुकर गईं कि उनके गांव के बाहर ऐसा कोई बोर्ड लगा है. उन्होंने बताया कि गांव वालों ने यह बोर्ड लगाया है कि गैर-हिंदुओं को गांव में प्रवेश नहीं दिया जाएगा. ऐसे बोर्ड सिर्फ हमारी ग्राम सभा में ही नहीं, बल्कि कई अन्य जगहों पर भी लगे हैं. लेकिन बाद में उन्होंने अपना बयान वापस लेते हुए कहा कि हमारे गांव में ऐसा कोई बोर्ड नहीं लगा है. चूंकि मैं गांव से बाहर हूं, इसलिए मैंने अभी इसकी पुष्टि की है.
हालांकि यह तत्काल पता नहीं चल पाया है कि गांवों के बाहर साइनबोर्ड कब लगाए गए थे, लेकिन ये तब सामने आई जब मुस्लिम सेवा संगठन और एआईएमआईएम के दो मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों ने 5 सितंबर को डीजीपी कुमार से मुलाकात की और हिमालयी राज्य में बढ़ती अल्पसंख्यक विरोधी घटनाओं पर अपनी चिंता व्यक्त की.
मुस्लिम सेवा संगठन के नईम कुरैशी ने शीर्ष पुलिस अधिकारी को एक ज्ञापन में लिखा कि ये पाया गया है कि छोटे-मोटे मुद्दों या किसी मुस्लिम द्वारा किसी कथित आपराधिक या असामाजिक गतिविधि पर, दक्षिणपंथी संगठनों की ओर से पहाड़ी इलाकों के कस्बों और शहरों में पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाकर जुलूस निकाले जाते हैं. अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की दुकानों में तोड़फोड़ और लूटपाट की जाती है और मुसलमानों को राज्य छोड़ने की धमकी दी जाती है... राज्य में जातीय सफाए की एक दुष्ट और गैरकानूनी योजना के तहत मुसलमानों को परेशान करने, अपमानित करने और धमकाने के लिए 'इस्लामोफोबिया' की सीमा तक योजनाबद्ध प्रयास किए गए हैं.
डीजीपी कुमार ने कहा कि उन्होंने स्थानीय पुलिस को ऐसे साइनबोर्ड की रिपोर्ट की जांच करने का आदेश दिया है. उन्होंने कहा कि हमने खुफिया विभाग और अपनी स्थानीय इकाई से ऐसी रिपोर्ट की जांच करने को कहा है. अगर ऐसी कोई बात सच पाई जाती है, तो हम उचित कार्रवाई करेंगे.
उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में कई जगहों पर सांप्रदायिक तनाव देखने को मिला है. सबसे ताजा मामला 1 सितंबर को चमोली जिले के नंदानगर कस्बे से आया, जब भीड़ ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की दुकानों और संपत्तियों पर हमला किया. 14 साल की लड़की के साथ छेड़छाड़ करने के आरोपी मुस्लिम व्यक्ति की गिरफ्तारी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा अगले दिन भी जारी रही.
पुलिस ने 26 साल के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और हिंसा के सिलसिले में बड़ी संख्या में अज्ञात लोगों के खिलाफ दो मामले भी दर्ज किए हैं. हालांकि, इस महीने की शुरुआत में हुई हिंसा के बाद से कम से कम 10 मुस्लिम परिवार नंदानगर से पलायन कर चुके हैं.
भाजपा अल्पसंख्यक विंग के पदाधिकारी अहमद हसन पिछले तीन दशकों से पहाड़ी शहर में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमें मौत की धमकियां मिलने के बाद शहर से भागना पड़ा. सैकड़ों हिंसक प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने हमारी दुकानों और हमारे समुदाय के लोगों पर हमला किया, जिसके बाद हम अपनी जान बचाने के लिए आधी रात को लगभग 20 किलोमीटर पैदल चले. बारिश हो रही थी और मौसम तूफानी था, लेकिन हम अपनी जान बचाने के लिए बेताब थे. हम बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में अपने पैतृक स्थान पर आ गए हैं.
उन्होंने बताया कि नंदानगर में दशकों से रह रहे कम से कम 10 मुस्लिम परिवार शहर छोड़ चुके हैं. हालांकि, चमोली के पुलिस अधीक्षक सर्वेश पंवार ने मुस्लिम परिवारों के शहर छोड़ने के दावे का खंडन किया. एसपी ने कहा कि नंदानगर सुरक्षित है. हमने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया है. हमें मुस्लिम परिवारों के शहर छोड़ने की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है.
पिछले साल जून में उत्तरकाशी जिले के पुरोला इलाके में सांप्रदायिक तनाव भड़क गया था, जिसमें दुकानों पर मुस्लिम दुकानदारों को अपनी दुकानें खाली करने की धमकी देने वाले पोस्टर चिपकाए गए थे. सांप्रदायिक तनाव तब भड़क उठा था, जब 26 मई को एक मुस्लिम समेत दो लोगों ने कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की का अपहरण करने की कोशिश की. अगले दिन दो आरोपियों की पहचान स्थानीय दुकानदार उबेद खान (24) और मोटरसाइकिल मैकेनिक जितेंद्र सैनी (23) के रूप में हुई थी. पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. इस साल मई में उत्तरकाशी की एक अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था.