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India Daily

'लाउडस्पीकर का उपयोग धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं', बॉम्बे हाईकोर्ट ने कार्रवाई के दिए आदेश

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. साथ ही सरकार को यह निर्देश दिया कि वह पुलिस अधिकारियों को लाउडस्पीकर या पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) के डेसिबल लिमिट्स को कैलिब्रेट और ऑटो फिक्स करने के लिए निर्देश जारी करने पर गंभीरता से विचार करें.

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Edited By: Kamal Kumar Mishra
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Courtesy: x

Bombay High Court: बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है. गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पूजा स्थलों या अन्य संस्थाओं में लाउडस्पीकर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम (PAS) या अन्य ध्वनि उत्सर्जक उपकरणों के डेसिबल स्तरों को नियंत्रित करने के लिए एक अंतर्निहित प्रणाली लागू करें, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.

हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया. साथ ही सरकार को यह निर्देश दिया कि वह पुलिस अधिकारियों को ऐसे स्थानों पर उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर या PAS के डेसिबल लिमिट्स को कैलिब्रेट और ऑटो फिक्स करने के लिए आदेश जारी करने पर गंभीरता से विचार करें.

इन सोसाइटीज ने दायर की थी याचिका

यह आदेश जॉगो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टी को-ऑप हाउसिंग सोसाइटीज एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया. जिसमें आरोप था कि पुलिस ने इलाके में मस्जिदों द्वारा तय सीमा से अधिक समय तक और अनुमत डेसिबल स्तर से ऊपर लाउडस्पीकर और एम्पलीफायर का उपयोग करने के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.

2016 में बंबई हाईकोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए, कोर्ट ने कहा था कि "लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का आवश्यक हिस्सा नहीं है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत उल्लंघन करने वाली संस्थाओं को सुरक्षा नहीं मिल सकती."

कानून को लागू कराने के निर्देश

न्यायमूर्ति अजय एस गडकरी और श्याम सी चंदक की पीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा, "हमारे अनुसार, यह पुलिस अधिकारियों और सरकार का कर्तव्य है कि वे कानून को लागू करें और सभी आवश्यक उपाय अपनाएं, जैसा कि कानून के प्रावधानों में निर्धारित किया गया है. लोकतांत्रिक राज्य में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि कोई व्यक्ति या समूह यह कहे कि वे कानून का पालन नहीं करेंगे और कानून लागू करने वाले अधिकारी इसे नजरअंदाज करें."

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने नेहरू नगर (कुर्ला पूर्व) और चुनाभट्टी पुलिस स्टेशन में शिकायतें दर्ज कराई थीं, जिसमें 5 बजे सुबह मस्जिदों और मदरसों के पास उच्च आवाज में शोर और त्योहारों पर 1:30 बजे तक लाउडस्पीकर का उपयोग होने की जानकारी दी थी. इसके बावजूद कई शिकायतों के बावजूद पुलिस ने इसे "स्पष्ट रूप से नजरअंदाज" किया, जिससे निवासियों को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा.

चुनाभट्टी और नेहरूनगर का मामला

याचिका में यह भी मांग की गई थी कि चुनाभट्टी और नेहरू नगर पुलिस स्टेशन को शोर प्रदूषण नियमों और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया जाए और मुंबई पुलिस आयुक्त को यह निर्देश दिया जाए कि वे संबंधित जोनल डिप्टी कमिश्नर और स्थानीय पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करें. 

कितना होना चाहिए वॉल्यूम

नॉइज पॉल्यूशन नियमों के अनुसार, आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय डेसिबल लिमिट 55 डेसिबल और रात के समय 45 डेसिबल होनी चाहिए. हालांकि, 2023 के डिप्टी पुलिस कमिश्नर (DCP) के हलफनामे के अनुसार, संबंधित मस्जिदों के डेसिबल स्तर 80 डेसिबल से अधिक थे.

कोर्ट ने प्रदेश सरकार को जारी किए निर्देश

कोर्ट ने कहा कि यदि एक या अधिक धार्मिक स्थल लाउडस्पीकर या PAS का उपयोग कर रहे हैं, तो यह केवल एक व्यक्तिगत पर्यावरण गुणवत्ता सीमा नहीं होती, बल्कि यह सभी लाउडस्पीकरों और आवाज को बढ़ाने वाले उपकरणों के समग्र ध्वनि स्तरों को ध्यान में रखकर होना चाहिए.