भारत साल 2023 तक ड्रोन टेक्नोलाजी में ग्लोबल ड्रोन हब के तौर पर अपनी पहचान बनाने की ओर आगे बढ़ रहा है. इसके लिए सरकारी और निजी कंपनियां पूरे जी जान से जुटी हुई है. अडानी, टाटा, रिलायंस जैसे कॉर्पोरेट दिग्गजों समेत कई स्टार्टअप्स भी मिलिट्री ड्रोन बनाने में जुटी हुई है लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इस तरह के ड्रोन में चाइनीज पार्ट्स का बड़े पैमाने इस्तेमाल हो रहा है.
भारतीय सेना के लिए यह चिंता का विषय है कि निजी कंपनियों से हासिल किए गए ज्यादातर ड्रोनों को देश की पूर्व और उत्तरी सीमाओं पर तैनात किया गया है. वहीं सेना अब स्वदेशी ड्रोन में चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कड़ी नीति बनाने की तैयारी कर रही है.
सेना के लिए चिंता की बात यह है कि खरीदे गए ज्यादातर ड्रोन को संवेदनशील चीनी सीमा पर तैनात किया गया है, जो सेना का सीक्रेट डाटा चीनी हाथों में पड़ने का बड़ा जोखिम है. जिसे देखते हुए सेना और रक्षा मंत्रालय ने ऐसे ड्रोन मैन्युफैक्चरर को ब्लैक लिस्ट भी जारी किया है.
हाल में रक्षा मंत्रालय ने लॉजिस्टिक ड्रोन बनाने वाली एक भारतीय कंपनी के 200 ड्रोन के आर्डर पर भी रोक लगाई है. इसके अलावा सेना उस सभी कंपनियों के ड्रोन की जांच भी कर रही है, जिन्हें हाल ही में खरीदा गया है. साथ ही सेना भी अब ऐसे मामले आने के बाद सचेत हो गई है और उन्हें सप्लाई किए जाने वाले ड्रोन में चीनी पार्ट् को लेकर खास मैकेनिज्म बनाने की तैयारी कर रही है.
बता दें कि रक्षा खरीद में चीनी पार्ट्स के इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध है. कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स में चीनी पार्ट्स न होने को लेकर सेल्फ सर्टिफिकेशन देती है लेकिन प्रोडक्ट्स में चाइनीज पार्ट्स की जांच का कोई तरीका न होने के चलते उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है.
मेजर जनरल मान ने बताया कि इस पर विचार विमर्श जारी है. 'हम डिमार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन के साथ मिल कर काम कर रहे हैं और जल्द ही चीनी पार्ट्स की पहचान करने के लिए उचित तरीका लागू किया जाएगा'. हालांकि यह कब से लागू होगा. उन्होंने इसकी कोई समय सीमा नहीं बताई. बता दें कि सेना ने ड्रोन निर्माताओं को इस महीने के अंत में लद्दाख में ऊंचाई वाले क्षेत्र में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया है. ताकि इन चीनी पुर्जों का पता लगाया जा सके.