नई दिल्ली: बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासत तेज हो चली है. इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद तमाम दलों के नेताओं ने तरह-तरह के बयान दिये है. इसी बीच राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट की आलोचना की है. उन्होंने इसे पूरी तरह से मनगढ़ंत बताते हुए कहा कि उनकी पार्टी इस फर्जी डेटा के खिलाफ आवाज उठाएगी.
कुशवाह ने अपने बयान में आगे कहा कि जाति जनगणना अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर प्रकाशित की गई है. ऐसे में हमारी पार्टी 11 अक्टूबर को बिहार के हर जिला मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन करेगी. इसके साथ 14 अक्टूबर को पटना में राजभवन के बाहर एक मार्च आयोजित किया जाएगा. हमें लगता है कि सरकार ने आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए जल्दबाजी में डेटा जारी किया है. राज्य सरकार का ध्यान केवल चुनावों और राजनीतिक लाभ पर था, लोगों के लाभ पर नहीं. यह डेटा पूरी तरह से गलत और फर्जी है.
राज्य सरकार की ओर से बिहार जाति सर्वेक्षण जारी किए जाने के बाद राष्ट्रव्यापी जातीय जनगणना की मांग जोर पकड़ने लगी है. कांग्रेस समेत तमाम क्षेत्रीय दलों ने इसको लेकर आवाज भी उठा रही है. बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि अब वह समय आ गया है जब हमें हिंदुस्तान का एक्सरे करना है. ये पता लगाना है कि ओबीसी की आबादी कितनी है. हमारी सरकार आई तो पहला काम ये करके दिखाएंगे. जब मैं सवाल पूछता हूं कि देश में कितने दलित, ओबीसी, आदिवासी, जनरल हैं तो इसका जवाब कोई नहीं दे पाता. केंद्र में सरकार बनने के बाद हम सबसे पहला काम जातीय जनगणना का कराएंगे.
बीते दिनों जातीय जनगणना को लेकर सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में सीएम सचिवालय में सर्वदलीय बैठक हुई थी. इस बैठक में जाति आधारित गणना के आंकड़ों पर तमाम दलों के नेताओं के साथ सरकार ने चर्चा की. इस बैठक में बीजेपी और हम संयोजक जीतन राम मांझी ने मौजूदा जाति आधारित गणना में कई खामियों को सरकार के सामने रखा. जिसके बाद सीएम नीतीश कुमार ने गंभीरता से लेते हुए जातीय जनगणना से जुड़े अधिकारीयों को उसे दूर करने की बात कही थी.
जातीय जनगणना का रिपोर्ट सामने आने के बाद आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा. बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद लालू, नीतीश कुमार जैसे नेता पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर सकते हैं. इसके अलावा इन नेताओं की ओर से आरक्षण में बढ़ोत्तरी की डिमांड भी की जा सकती है. जिससे बिहार समेत देश की समाजिक और राजनीतिक मानचित्र पर इसका गहरा असर पड़ेगा.
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