कांग्रेस मांगे 16 पर अखिलेश यादव 11 पर अड़े, आखिर कैसे यूपी में सुलझेगा सीटों का समीकरण
Loksabha Elections 2024: बिहार में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के तहत सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया है हालांकि कांग्रेस ने इस पर असहमति जताई है जिसको देखते सवाल यह उठ रहा है कि यूपी में सीटों का समीकरण कैसे सुलझेगा.
Loksabha Elections 2024: बिहार में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के तहत सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया है. अखिलेश यादव ने कांग्रेस को यूपी में 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात का ऐलान कर साफ कर दिया है कि ज्यादा सीटों पर वो ही चुनाव लड़ेंगे. हालांकि कांग्रेस ने ऐलान होने के महज कुछ घंटे बाद ही इस समझौते पर सहमति होने से इंकार कर दिया.
बिना समझौते के ऐलान करने से बचना चाहिए
कांग्रेस ने साफ किया कि अभी भी इस मुद्दे पर चर्चा जारी है और जब तक किसी निर्णायक समझौते पर बात न बने तब तक इस तरह का ऐलान करने से बचना चाहिए. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने साफ किया कि सीटों के बंटवारे के लिए अशोक गहलोत और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच बातचीत जारी है. एक बार जब यह मुश्किल प्रक्रिया अपने चरम पर पहुंच जाएगी तो हम खुद इसे लोगों के बीच तक पहुंचाएंगे.
यूपी में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है कांग्रेस
रिपोर्ट की मानें तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कम से कम 20 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रही है. इसका मतलब है कि वो 16 सीटों से कम पर लड़ने की इच्छुक नहीं है और यही वजह है कि जब अखिलेश यादव ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही तो उन्होंने मामले को शांति से सुलझाने की बात कही. अखिलेश यादव ने जो सींट बंटवारे का फॉर्मूला तैयार किया है उसके तहत कांग्रेस को 11 और राष्ट्रीय लोक दल को 7 सीटें देने का फैसला किया है.
अखिलेश ने कांग्रेस को इन सीटों पर दी है चुनाव लड़ने की हरी झंडी
अखिलेश यादव के समझौते के अनुसार समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को रायबरेली, अमेठी, वाराणसी, खीरी, कुशीनगर, कानपुर, बाराबंकी, फतेहपुर सीकरी, सहारनपुर और सीतापुर की सीटों पर लड़ने के लिए सहमति दी है. 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने रायबरेली में जीत हासिल की थी तो वहीं पर अमेठी, कानपुर और फतेहपुर सीकरी पर दूसरे पायदान पर रही थी. 2014 में उसे रायबरेली और अमेठी में जीत मिली थी जबकि कुशीनगर, सहारनपुर, गाजियाबाद और कानपुर की सीटों पर दूसरा स्थान मिला था.
मौजूदा बंटवारे से खुश नहीं है कांग्रेस
कांग्रेस की बात करें तो वो मौजूदा सीटों के बंटवारे से खुश नहीं है और वो 2009 के परिणामों के अनुसार सीटों का बंटवारा चाहती थी. 2009 में कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस ने सपा को 20 सीटों की एक लिस्ट भी सौंपी थी जिसमें से उसने कम से कम 16 सीटों पर लड़ने की इच्छा जताई थी. कांग्रेस ने अमरोहा, अलीगढ़, सहारनपुर समेत मुस्लिम बहुल सीटों पर भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी लेकिन सपा सहारनपुर को छोड़कर बाकी सीटों पर जानें के लिए राजी नहीं हुई.
कांग्रेस को ज्यादा सीट देने से क्यों बच रहे हैं अखिलेश?
रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिले थे और उन्हें यूपी से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था. इसके चलते मायावती के दलित वोट बैंक की राजनीति को कमजोर करने का प्लान था लेकिन कांग्रेस इस पर नहीं मानी. अखिलेश यादव ने खड़गे के लिए इटावा और बाराबंकी की सीटों का नाम भी सुझाया था लेकिन कांग्रेस इस पर राजी नहीं हुई.
अखिलेश यादव ने एक इंटरव्यू में ये भी साफ किया था कि अगर कांग्रेस चुनाव जिताऊ उम्मीदवार लेकर आती है तो वो सीटें देने को तैयार हैं और यही हमारा सीट शेयरिंग फॉर्मूला भी है. यही वजह है कि अखिलेश यादव कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने से बच रही है. इतना ही नहीं अमेठी से राहुल गांधी के लड़ने को लेकर भी चीजें तय नहीं है और अगर ऐसे में कांग्रेस को ज्यादा सीटों पर जगह दे दी जाती है तो बीजेपी को उन पर आगे ही माना जाएगा.
क्या दबाव बनाने के लिए अखिलेश यादव ने चली चाल?
वाराणसी के पूर्व सांसद और कांग्रेस के नेता राजेश मिश्रा ने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा है कि जब तक हाईकमान से चर्चा जारी है, तब तक किसी भी बात का ऐलान करने का कोई मतलब नहीं है, हालांकि बिहार में हो रहे राजनीतिक उलटफेर को देखते हुए,इसे दबाव बनाने का एक तरीका जरूर माना जा सकता है.
यूपी में कांग्रेस का जनाधार कितना है?
लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा सीट रखने वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां कांग्रेस की स्थिति काफी नाजुक है और उसका जनाधार लगातार घट ही रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी तो वहीं पर वोट शेयर 2.85 प्रतिशत तक घटा. 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को सिर्फ 6.36 प्रतिशत वोट मिले, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में ये वोट शेयर 6.25 प्रतिशत था. 2014 में यह आंकड़ा 7.53 प्रतिशत था, इसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस का पिछले 4 चुनावों में वोट शेयर लगातार 8 प्रतिशत से कम रहा है.