Ravenshaw University: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शनिवार को 156 साल पुराने रेवेंशॉ यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के अपने सुझाव से बहस छेड़ दी. यूनिवर्सिटी का नाम इस संस्थान की स्थापना में मदद करने वाले ब्रिटिश नौकरशाह थॉमस एडवर्ड रेवेंशॉ के नाम पर रखा गया है. 1868 में रेवेंशॉ कॉलेज के रूप में स्थापित ये संस्थान 2006 में एक पूर्ण यूनिवर्सिटी बन गया. कटक में स्थित इस संस्थान में वर्तमान में नौ स्कूल और 33 विभाग हैं, तथा इसमें लगभग 8,000 छात्र हैं.
इस संस्था की स्थापना 1866 के महान ओडिशा अकाल (ना अंका दुर्भिक्ष्य) के कुछ साल बाद की गई थी. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि अकाल के दौरान ओडिशा में कम से कम 10 लाख लोग मारे गए थे. इस बारे में जिक्र करते हुए प्रधान ने कहा कि मेरी निजी राय है कि संस्था का नाम बदला जाना चाहिए. रेवेंशॉ साहब (जब वे ओडिशा संभाग के आयुक्त थे) के कार्यकाल में ओडिशा में विनाशकारी ना अंका अकाल पड़ा था. ओडिशा के बुद्धिजीवियों को इस बारे में सोचना चाहिए. इस मुद्दे पर बहस की जरूरत है.
कटक में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए प्रधान ने पूछा कि उस समय (1866 के अकाल के समय) प्रशासक क्या कर रहे थे? क्या यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हम उन लोगों के नामों का महिमामंडन करें जो ओडिया लोगों को दुख देने के लिए जिम्मेदार थे? हालांकि, संस्थान के कुछ जाने-माने पूर्व छात्र इस सुझाव से सहमत नहीं थे.
संस्थान के पूर्व छात्र और ओडिशा के पूर्व मुख्य सचिव सहदेव साहू ने कहा कि संस्थान की स्थापना करके, रेवेंशॉ साहब ने वास्तव में उस समय ओडिया गौरव को बरकरार रखा जब ओडिया भाषा अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रही थी. उच्च शिक्षा के प्रसार में उनके प्रयासों के कारण, उस समय लोगों ने संस्थान का नाम उनके नाम पर रखकर ब्रिटिश अधिकारी को सम्मानित किया. साथ ही, रेवेंशॉ साहब ओडिया लोगों को दुख पहुंचाने के लिए जिम्मेदार नहीं थे. साहू 1957 से 1960 तक संस्थान के छात्र रहे हैं.
एक अन्य पूर्व छात्र, शिक्षाविद् सत्यकाम मिश्रा ने कहा कि जो लोग ओडिशा में रेवेंशॉ के योगदान को जानते हैं, वे संस्थान का नाम बदलने के पक्ष में नहीं होंगे. मिश्रा ने कहा कि अगर आज हमारे छात्र ओडिया भाषा में पढ़ पाते हैं, तो यह ब्रिटिश अधिकारी की वजह से है. इस मुद्दे पर यूनिवर्सिटी के छात्रों के बीच भी बहस छिड़ गई है.
1 जुलाई को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जॉन हर्डिस रेवेंशॉ के घर जन्मे थॉमस ने प्रशासन को अपना करियर बनाया. 1865 से 1878 तक उड़ीसा डिवीजन के कमिश्नर के रूप में कार्य किया. उन्होंने क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और ओडिया छात्रों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय प्रशासकों से समर्थन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रेवेंशॉ कॉलेज की स्थापना को उड़ीसा में उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है. 1866 के अकाल ने, जिसमें लगभग 10 लाख लोगों की जान चली गई थी, इस क्षेत्र में बेहतर शिक्षा की सख्त जरूरत को बताया, क्योंकि अपर्याप्त शैक्षिक बुनियादी ढांचे के कारण स्थिति की गंभीरता को पूरी तरह से महसूस नहीं किया जा सका था.
1868 में स्थापित, ये संस्थान शुरू में एक छोटे स्कूल के रूप में संचालित होता था. हालांकि, 1876 में इसे पूरी तरह फर्स्ट कैटेगरी के कॉलेज में बदल दिया गया और इसे आमतौर पर कटक कॉलेज के रूप में जाना जाता था, जब तक कि इसका नाम बदलकर TE Ravenshaw के सम्मान में Ravenshaw कॉलेज नहीं कर दिया गया.
बंगाल सरकार के सचिव को 5 अगस्त 1875 को लिखे गए एक पत्र में रेवेंशॉ ने लिखा कि कटक में एक कॉलेज की स्थापना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण है और उड़ीसा में उच्च शिक्षा के प्रसार के लिए भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है. रेवेंशॉ ने रेवेंशॉ कॉलेज में विभिन्न विषयों के अनेक विभाग बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
रेवेंशॉ ने ओडिशा में महिला शिक्षा की भी वकालत की, क्योंकि उन्होंने देखा कि कोई भी अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं था. इस पहल के लिए वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई, जिसके बाद कटक गर्ल्स स्कूल की स्थापना हुई, जो शुरू में एक प्राइमरी स्कूल के रूप में चलता था. 1873 में, इस गर्ल्स स्कूल का नाम बदलकर रेवेंशॉ हिंदू गर्ल्स स्कूल कर दिया गया.
शिक्षा के प्रसार में एक और महत्वपूर्ण पहल कमिश्नर रेवेंशॉ और कटक के सिविल सर्जन डॉक्टर डब्ल्यूडी स्टीवर्ट ने क्षेत्र में मेडिकल एजुकेशन के विस्तार के लिए हाथ मिलाया. रेवेंशॉ ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इस योजना को मंजूरी देने की सिफारिश की जिसके कारण सरकार ने प्रतिष्ठित संस्थान शुरू किया.