केंद्र सरकार ने मंगलवार (8 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट याचिका दायर की है, जिसमें उसने यह अनुरोध किया है कि वक्फ अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बिना उसकी सुनवाई किए कोई आदेश न दिया जाए. बता दें कि, इस कैविएट याचिका के माध्यम से सरकार ने अपने पक्ष को सुनने का अवसर पाने की कोशिश की है, जो कि इस मामले में उसकी पहली कानूनी प्रतिक्रिया है.
न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि वक्फ संशोधनों में कोई संवैधानिक उल्लंघन नहीं है. ऐसे में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 संविधान का उल्लंघन नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं का जवाब देते हुए मेघवाल ने इस बात पर जोर दिया कि जबकि सभी को न्यायिक सहारा लेने का अधिकार है, कानूनों में संशोधन करने का अधिकार केवल संसद के पास है.
विपक्ष को अदालत जाने का पूरा अधिकार
इस दौरान केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा,'विपक्ष को अदालत जाने का पूरा अधिकार है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें कहीं भी संविधान का उल्लंघन नहीं है. संसद के पास विधेयक में संशोधन करने का पूरा अधिकार है.
जानें वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 कब हुआ लागू?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी. इस बजट सत्र के दौरान पारित इस विधेयक को राज्य सभा में पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 वोट मिले. जिसमें लोकसभा में, विधेयक को लंबी बहस के बाद पारित किया गया, जिसमें 288 सदस्यों ने इसका समर्थन किया और 232 ने इसका विरोध किया.
जानें कैविएट क्या होता है?
केवियट" एक कानूनी नोटिस है जो किसी एक पार्टी द्वारा दायर किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी मुकदमे या न्यायिक कार्यवाही में कोई आदेश या निर्णय दिए जाने से पहले उन्हें सुनवाई का मौका दिया जाए.
कैविएट याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो, यह प्रोबेट या प्रशासनिक पत्र प्रदान करने के खिलाफ उठाया गया एहतियाती उपाय है. हालांकि, वसीयत से जुड़ी कार्यवाही में कैविएट दाखिल करना बहुत आम है. सिविल प्रक्रिया संहिता 1963 की धारा 148-ए में कैविएट दर्ज करने का प्रावधान है.