सुप्रीम कोर्ट ने एक कानून को लागू करने का आदेश दिया है, जिसके तहत पहली बार अपराध करने वाले विचाराधीन कैदियों को रिहा करने का प्रावधान है. इसके तहत जिन्होंने अपनी अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा काट लिया है उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा. जेल अधीक्षकों को आदेश दिया गया है कि वे पात्र कैदियों को दो महीने के भीतर जमानत प्रदान करें, तथा जघन्य अपराधों के आरोपियों को समय से पहले रिहा न करें. रिहा किए गए कैदियों के आंकड़ों की समीक्षा अक्टूबर में की जाएगी.
पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 479 को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने का आदेश दिया, जिसके तहत जेल में बंद विचाराधीन पहली बार अपराध करने वाले अपराधियों को रिहा किया जा सकता है, अगर उन्होंने कथित तौर पर किए गए अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा काट लिया हो.
यह धारा कहती है कि पहली बार जिसने अपराध किया है उन विचाराधीन कैदी ने अगर उस कानून में आरोपित अपराध में दी गई अधिकतम सजा की एक तिहाई जेल काट लेता है तो कोर्ट उसे जमानत पर रिहा कर सकता है.
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि जो विचाराधीन कैदी मानदंड को पूरा करते हैं, उन्हें इस दिवाली अपने परिवारों के साथ बिताने दें. भाटी ने अदालत से जेल अधीक्षकों को उन विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए कदम उठाने के लिए कहने का भी अनुरोध किया, जिन्होंने हालांकि पहली बार अपराध नहीं किया है, लेकिन अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का आधा हिस्सा काट लिया है. हालांकि, विचाराधीन कैदियों के इन दो समूहों को जेल से जल्दी रिहाई का लाभ नहीं मिलेगा यदि उन पर जघन्य अपराध करने का आरोप है.
पीठ ने राज्य सरकारों और संबंधित केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों को विचाराधीन कैदियों की इन दो श्रेणियों की रिहाई का डेटा संकलित करने और दो महीने बाद अदालत को एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा. अदालत ने मामले की सुनवाई अक्टूबर में तय की है.