menu-icon
India Daily

दुनिया के दो अरबपतियों को लेकर संसद में भिड़ रहे बीजेपी-कांग्रेस, जनता के हर मिनट 2.5 लाख रुपये हो रहे स्वाहा

जिस शीतकालीन सत्र में आम जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी, उसमें देश व दुनिया के दो अरबपतियों को लेकर देश के नेता भिड़ गए हैं जिससे भारतीय करदाताओं की गाढ़ी कमाई को हर मिनट 2.5 लाख रुपए का बट्टा लग रहा है और मजे की बात ये है कि नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं है.

auth-image
Edited By: Sagar Bhardwaj
Two and a half lakh rupees are being spent every minute on Parliament  winter session

संसद जिसका निर्माण देश और देश की जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए किया गया वह अब आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बन गई है. जिस शीतकालीन सत्र में आम जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी, उसमें देश व दुनिया के दो अरबपतियों को लेकर देश के नेता भिड़ गए हैं जिससे भारतीय करदाताओं की गाढ़ी कमाई को हर मिनट 2.5 लाख रुपए का बट्टा लग रहा है और मजे की बात ये है कि नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं है.

संसद की कार्यवाही पर हर मिनट 2.5 लाख का खर्च

संसद की हर मिनट की कार्यवाही पर 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं. इस धनराशि का उपयोग जनता के मुद्दों को हल करने और नीतिगत सुधार के लिए होना चाहिए. लेकिन जब संसद ठप हो जाती है, तो यह पैसा व्यर्थ चला जाता है. संसद के ठप होने से न केवल जरूरी कानून पास होने में देरी होती है, बल्कि सरकार को जवाबदेह बनाने का महत्वपूर्ण अवसर भी खो जाता है.

अडाणी और सोरोस पर बहस की भेंट चढ़ रहा शीतकालीन सत्र
इस बार का गतिरोध अदानी ग्रुप और जॉर्ज सोरोस से जुड़े विवादों पर केंद्रित है. कांग्रेस, अडाणी ग्रुप पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर चर्चा की मांग कर रही है, जबकि बीजेपी जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर कांग्रेस नेताओं पर निशाना साध रही है. समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दलों ने दोनों मुद्दों से खुद को अलग कर लिया है. सपा सांसद डिंपल यादव ने कहा, "हम अदानी या सोरोस के मुद्दे के साथ नहीं हैं. हम चाहते हैं कि सदन चले."

टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने भी इस स्थिति पर नाराजगी जताई, यह कहते हुए कि 'राष्ट्रीय दल सदन को हाइजैक कर रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय दलों को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल रहा.'

संसद ठप होने की बढ़ती कीमत
2012 में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल ने कहा था कि संसद की रुकावट से हर मिनट 2.5 लाख रुपये का नुकसान होता है. 2021 में यह आंकड़ा 133 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. संसद के कामकाज में रुकावट के कारण कई जरूरी मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती, जिससे नीतिगत निर्णयों में देरी होती है. यह स्थिति जनता की समस्याओं और देश की प्राथमिकताओं को नजरअंदाज करती है.

संसद सत्रों की घटती संख्या: लोकतंत्र के लिए खतरा
1952-57 की पहली लोकसभा में औसतन 135 दिन सत्र चला करते थे, लेकिन 2019-24 की 17वीं लोकसभा में यह आंकड़ा घटकर 55 दिन प्रतिवर्ष रह गया है. यह गिरावट लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए गंभीर खतरा है.

जनता और करदाताओं को हो रहा नुकसान
संसद के ठप होने से सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता और करदाताओं को हो रहा है. नीतिगत निर्णयों में देरी से गरीब और वंचित वर्ग के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित होता है. टीएमसी ने इस मुद्दे पर कहा, 'हम अपने सांसदों के माध्यम से जनता की आवाज संसद में उठाते रहेंगे.' वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'हम चाहते हैं कि सदन चले और संविधान पर चर्चा हो.'