अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की "लिबरेशन डे" टैरिफ नीति वैश्विक व्यापार युद्ध को भड़का सकती है, जिससे बड़े व्यापारिक साझेदारों की जवाबी कार्रवाई शुरू हो सकती है. प्रभावित देशों ने बातचीत की माँग की है, हालाँकि वे प्रतिक्रिया के लिए भी तैयार हैं.
चीन और भारत का रुख
चीन की भारत से व्यापार बढ़ाने की पेशकश
टैरिफ घोषणा से ठीक पहले, बीजिंग ने कहा कि वह भारत से अधिक उत्पाद आयात करने और व्यापारिक सहयोग को मजबूत करने के लिए तैयार है. नई दिल्ली में चीन के राजदूत जू फीहोंग ने भारतीय उद्यमों से "चीन के विकास के लाभ" साझा करने की अपील की. उन्होंने चीनी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स को बताया, "हम भारतीय पक्ष के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग को मजबूत करने के लिए तैयार हैं और चीनी बाजार के लिए उपयुक्त अधिक भारतीय उत्पाद आयात करना चाहते हैं." उन्होंने आगे कहा, "हम हिमालय को पार कर चीन में सहयोग के अवसर तलाशने और चीन के विकास के लाभ साझा करने के लिए और भारतीय उद्यमों का स्वागत करते हैं."
भारत-चीन व्यापार का इतिहास
2010 के दशक में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया. 2020-21 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत ने चीनी निवेश पर पाबंदियां लगाईं, 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया और FDI की जाँच शुरू की. फिर भी, 2022 में दोनों देशों के बीच व्यापार रिकॉर्ड 135.98 अरब डॉलर तक पहुंचा. 2023-24 में यह 101.7 अरब डॉलर रहा, लेकिन भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर तक पहुँच गया.
ट्रंप टैरिफ: साझा चुनौती और अवसर
ट्रंप के टैरिफ से भारत और चीन दोनों को आर्थिक चुनौतियाँ झेलनी पड़ सकती हैं. इस साझा खतरे ने दोनों देशों को सहयोग के रास्ते तलाशने के लिए प्रेरित किया है. BRICS और SCO जैसे मंच इस सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं.