'अम्मा तू कहां चली गई...', और हाथरस में दफन हो गईं सैकड़ों की हजारों कहानियां, इलाज के लिए नहीं थे डॉक्टर; बिखरी पड़ी थीं लाशें

Hathras Stampede 2024: उत्तर प्रदेश के हाथरस में सत्संग स्थल पर मची भगदड़ ने सैकड़ों जीवन को बर्बाद कर दिया. इन सैकड़ों की हजारों कहानियां हमेशा के लिए दफन हो गई. अब कौन पूरा कर पाएंगे इनकी कहानी. इनके जाने से इनके अपनों की कहानी भी अधूरी हो गई है. घटना दोपहर करीब 1 बजकर 30 से 2 बजे के बीच घटी. लोग जमीन पर तड़प-तड़प कर खुद की जिंदगी को अलविदा कहते रहे लेकिन प्रशासन कुछ कर नहीं पाया. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि लाशों को कफन तक नहीं नसीब हुई. 

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Hathras Stampede 2024: उत्तर प्रदेश का हाथरस आज इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गया. यहां के फुलरई गांव में नारायण साकार हरि उर्फ स्वयंभू संत भोले बाबा का सत्संग का आयोजन चल रहा था. सत्संग समाप्त होने के बाद भोले बाबा की कार निकली और लोग उनका चरण छूने के लिए दौड़ पड़े. दौड़ने से भगदड़ मच गई और लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़कर भागने लगे. भगदड़ मचते ही मौत का तांडव शुरू हो गया. मिनटों में फुलरई गांव में लाशें बिछ गई.

लाशों को देखकर यूपी पुलिस के सिपाही को हार्ट अटैक आ गया, जिससे उसकी मौत हो गई. अब इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि मौत का कैसा तांडव रहा होगा.

'अम्मा तू कहां चली गई....'  

इस हादसे ने किसी की मां छीन ली. बच्चे ने अम्मा के लिए गुहार लगाई होगी कि अम्मा तू कहां चली गई. उस छोटे बच्चे को क्या समझ होगी जो मां की लाश को पीट-पीटकर पूछ रहा होगा कि मां तूं कहां चली गई. उसे क्या पता कि उसकी मां हमेशा के लिए उसे अलविदा कह गई.

एक बच्चे की मां ही नहीं किसी की पत्नी, किसी का पति, किसी का पुत्र किसा को कोई खास अपना आज हाथरस में अंतिम लेते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गया. इस हादसे का जिम्मेदार कौन? ये बात सब लिखकर रहें हैं लेकिन जवाब कोई नहीं दे रहा है.

वह भी नहीं पहुंचे जिन्हें मरने वालों ने चुना था?

पास के सीएचसी में सिर्फ एक डॉक्टर था जो आ रही लाशों और घायलों का इलाज कर रहा था. लाशों को देखकर डॉक्टर भी घबरा गया था. घंटे बीत गए थे. न तो कोई एंबुलेंस पहुंची थी और न कोई सरकारी कर्मचारी. न वो लोग पहुंचे थे जिसे लोगों ने चुनकर देश की संसद और विधानसभा में भेजा.

सैकड़ों  लोगों का परिवार उजड़ गया तो. कोई रो रोकर बेहाल हो रहा है. कोई विधवा होगा तो किसी के घर के चिराग को इस सत्संग ने हमेशा के लिए खामोश कर दिया.

अकेला डॉक्टर लड़ता रहा जंग

सैकड़ों में से बहुतों को बचाया जा सकता था अगर उनमें से कुछ को समय से इलाज मिल पाता लेकिन इलाज करता कौन? सीएचसी में तो एक ही डॉक्टर था. अकेला डॉक्टर जितनों को बचा सकता था उसने बचाया.

एक मीडिया रिपोर्ट बताती है कि सीएचसी के बाहर लाशें बिखरी थी. एक रिपोर्टर ने लाशों को गिना तो गिनती 95 निकली. वहीं, बाद में जब यह खबर आग की तरह फैली तो प्रशासन एक्शन मोड में आया.

.... और दफन हो गईं सैकड़ों की हजारों कहानियां   

कुछ लोगों को एटा के जिला अस्पताल में भेजा गया. वहां भी 27 लोगों को मृतक घोषित कर दिया गया. इस खबर वक्त तक 122 जिंदगियां अपनी अंतिम सांस लेकर इस धरती को अलविदा कह चुकी थी. उनसे जुड़ी हजारों कहानियां उन्हीं के साथ दफन हो गईं.

प्रशासन लाचार दिखा. अगर इलाज की सुचारू व्यवस्था होती तो कई कहानियां दफन होने से बच सकती थी. लेकिन ये सिस्टम की लाचारी कहिए या फिर उन दफन हुई कहानियां का दुभार्ग्य समझिए. कुछ भी जो गए उनका तनिक सा भी कसूर नहीं था.

बिन कफन के ही बिखरी रहीं लाशें   

परिजन रो रहे हैं, बिलख रहे हैं. आंखों देखा हाल बताने वालों का कहना है कि लाशों का ऐसा ढेर लगा था कि सिस्टम के पास लाशों के लिए कफन तक नहीं था. घायल जमीन पर तड़प-तड़प कर दम रहे थे लोग देखते रहे. जो वाहन मिला उसी में लादकर लाशों और घायलों को इस आस में सीएचसी तक पहुंचाया गया कि शायद उसकी जान बच जाए लेकिन तड़प-तड़पकर घायल मर गया उसे इलाज नहीं मिल पाया.

राज्य और केंद्र सरकार अलर्ट मोड पर है. योगी सरकार के मुख्य सचिव  मनोज कुमार सिंह और DGP प्रशांत कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए हैं. योगी सरकार के तीन मंत्री भी इस वक्त घटनास्थल पर मौजूद है.  

उनका क्या था कसूर जो छोड़कर चले गए?

जांच के लिए कमेटी भी गठित कर दी गई है. अब होगी तो बस जांच. कमेटी पता लगाएगी कि हादसा कैसे हुआ. लेकिन उनका क्या जो अपने परिवार से जुदा होकर चले गए. उस परिवार का क्या जिसके घर पर उसका पिता कमाने वाला था और वहीं इस दुनिया को छोड़कर चला गया.

इस हादसे में जान गंवाने वालों का क्या कसूर था? ये सवाल हर , मां, हर बच्चा, हर पिता, हर  बहन, हर भाई पूछेगा जिसने अपने भाई को खोया है. 

हम नहीं पूछेंगे तो पूछेगा कौन?

आज हाथरस में लाशों के साथ हजारों कहानियां अधूरी रह गई. अब उन कहानियों को कौन पूरा करेगा? ये सवाल पूछकर हम भी कहीं न कहीं उस पिता, उस बेटे, उस मां, उस भाई, उस बहन, उस परिवार के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं जिसने अपनों को खोया. लेकिन सवाल ये भी है कि आखिर हम नहीं पूछेंगे तो पूछेगा कौन?